जनपदों की विकास गाथा बयां करता है जिलाधिकारियों का स्थानांतरण पट।
विनोद कोठियाल
उत्तर प्रदेश के समय में विकास की दौड़ से पिछड़े रुद्रप्रयाग को अलग जनपद बनाया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 1997 में चमोली जिले और कुछ भाग टिहरी जिले का काट कर अलग जनपद बनाया गया था।
तब यह उम्मीद जगी थी कि अलग जनपद बनने से नये बने जनपद के विकास को गति मिलेगी, परन्तु प्रदेश सरकारों ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए जिस तरह से बार-बार जिलाधिकारियों को बदला, उससे सरकारों की विकास के लिए इच्छाशक्ति भलीभांति जानी जा सकती है।
रुद्रप्रयाग जनपद के जिलाधिकारियों की सूची देखी जाए तो एक मात्र राघव लंगर के अलावा कोई भी जिलाधिकारी एक साल से अधिक समय पूरा नहीं कर सका।
राघव लंगर को तीन वर्षों तक रखना भी सरकार की मजबूरी ही थी। सन 2013 को रुद्रप्रयाग मे आयी भीषण आपदा के बाद सरकार को वहां पर एक युवा सक्रिय जिलाधिकारी की जरूरत थी जो राघव लंगर के रूप में पूर्ण हो सकी।क्योंकि आपदा के समय में तत्कालीन डी एम विजय ढौडियाल स्वास्थ्य कारणों से आपदा के दबाव को नहीं झेल पाये, जिससे सरकार की काफी किरकिरी हुई। मजबूरी मे ही सही पर सरकार को लंगर को रुद्रप्रयाग में तीन साल डी एम बनाये रखना पड़ा।
बार-बार जिलाधिकारियों के बदले जाने से विकास भी प्रभावित होता है। क्योंकि जब तक कोई नया डी एम चीजों को समझता है, तब तक उनका स्थानांतरण हो जाताहै।
उदाहरण के लिए जनपद टिहरी में भारत सरकार द्वारा संचालित नवाचार निधि में मिलने वाला धन तीन तीन जिलाधिकारियों का कार्यकाल देख चुका है। परन्तु इस धनराशि का उपयोग नहीं हो पाया। स्थानीय लोग जिस भी डीएम से इस सम्बन्ध में बात करते हैं, सबका एक ही जबाब होता है कि यह उनके समय का मामला नहीं है।
यह एक उदाहरण मात्र है। इस प्रकार के सैकड़ों ऐसे विकास कार्यों से सम्बन्धित काम हैं, जिन्हें दूसरे के समय का हवाला देकर अपना पिन्ड छुडाया जाता है। हमारे सिस्टम में कार्यों के लिए जबाबदेही तय न होने के कारण विकास सम्बंधित कार्य ही प्रभावित होते हैं। यह समस्या रुद्रप्रयाग की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रदेश की है। जनपद उत्तरकाशी हो चाहे क़ोई भी सीमान्त जनपद हो, सब इस समस्या से प्रभावित हैं।कुछ दूरस्थ जनपदों में तो कोई रहना नहीं चाहता तो किसी में राजनेताओं के कारण डीएम लम्बे समय तक रुक नहीं पाते। कारण चाहे कुछ भी हो प्रभावित तो प्रदेश की जनता ही हो रही हैं।
अब देखना यह है कि कुछ ही माह पहले बागेश्वर से ट्रांसफर होकर आए लोकप्रिय जिलाधिकारी कब तक रुद्रप्रयाग में टिके रहते हैं।