कृष्णा बिष्ट
राष्ट्रीय राजमार्ग 74 के लिए अधिग्रहण की गई भूमि के मुआवजा निर्धारण में की गई अनियमितताओं की सीबीआई जांच की मांग पर वाकई राज्य सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।
पर्वतजन को सूचना के अधिकार में प्राप्त दस्तावेज बताते हैं कि 19 मई 2017 के बाद एनएच 74 घोटाले में शासन के स्तर से एक लाइन तक नहीं लिखी गई और एक हस्ताक्षर तक नहीं किए गए हैं। गौरतलब है कि उत्तराखंड सचिवालय के गृह अनुभाग-2 में एन एच 74 से संबंधित सीबीआई जांच प्रकरण के सभी दस्तावेज संरक्षित हैं। पर्वतजन ने यह सभी दस्तावेज सूचना के अधिकार में हासिल किए तो यह खुलासा हुआ कि एनएच 74 घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के प्रयास दम तोड़ गए हैं।
इस फाइल की नोटशीट पर अंतिम हस्ताक्षर 19 मई 2017 के हैं।
गृह अनुभाग ने भी इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के विषय में एक चौंकाने वाली टिप्पणी पृष्ठ संख्या 20 पर लिखी गई है। इसमें लिखा है कि कुमाऊं के तत्कालीन मंडलायुक्त तथा एन एच 74 की जांच समिति के अध्यक्ष सेंथिल पांडियन ने अपनी जांच रिपोर्ट 7 अप्रैल 2017 को ही शासन मे सबमिट कर दी थी। इसमें सीबीआई से जांच कराने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखने का अनुरोध किया था। अनुभाग ने अपने स्तर से ही 26 अप्रैल 2017 को मंडलायुक्त कुमाऊं की रिपोर्ट नत्थी करते हुए केंद्र सरकार के डीओपीटी को सीबीआई जांच कराने के लिए एक पत्र भेज दिया था।
एक महीने बाद 17 मई 2017 को गृह विभाग के उप सचिव अहमद अली ने अपनी टिप्पणी में साफ लिखा है कि अनुभाग ने 26 अप्रैल 2017 को इसकी जानकारी गृह विभाग के किसी भी अधिकारी को नहीं दी। उन्होंने आगे लिखा है कि जब इस विषय में अनुभाग के कार्मिक से पूछा गया तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने इसमें लिखा भी है कि इस प्रकार के संवेदनशील प्रकरण पर अनुभाग की कार्यवाही उचित नहीं है।
इससे ऐसा लगता है कि यदि अनुभाग स्तर पर यह मामला केंद्र सरकार को नहीं भेजा जाता तो फिर सीबीआई जांच की मांग इसी स्तर पर एक महीने पहले ही दम तोड़ चुकी होती।
बहरहाल 19 मई के बाद इस पर फिर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। जाहिर है कि राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के धमकाने के बाद राज्य सरकार ने यह विचार हमेशा के लिए त्याग दिया है।
एनएच 74 घोटाले में राजस्व विभाग के तत्कालीन आला अधिकारियों सहित कैबिनेट मंत्रियों तथा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के बड़े अधिकारियों की भी गहरी मिलीभगत है।
पांडियन ने अपनी रिपोर्ट मे जो खुलासे किए हैं, उससे लगता है कि यदि यह जांच सीबीआई से कराई जाती तो इसमें तत्कालीन जिलाधिकारी, क्षेत्र के बड़े नेता और राजमार्ग के बड़े अधिकारी भी लपेटे में आ जाते।
वर्तमान में इन तीनों स्तरों के अधिकारी राज्य तथा केंद्र में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों पर हैं। इसलिए यह जांच एसआईटी से कराई जा रही है, ताकि एक सीमित दायरे में जांच करके छोटी मछलियों को पकड़ कर पिंड छुड़ा लिया जाए।
सेंथिल पांडियन ने राजमार्ग के अधिकारियों की भूमिका पर भी अपनी जांच रिपोर्ट में सवाल उठाए हैं। सेंथिल पांडियन ने राजमार्ग अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं कि कृषि भूमि से अकृषिक भूमि की प्रकृति के आधार पर जो मुआवजा निर्धारित कर वितरित किया गया है, उसने सरकारी राज्य में अत्यधिक अभिवृद्धि हुई है, लेकिन इन सरकारी राजस्व अभिवृद्धि के विरुद्ध राजमार्ग द्वारा आर्बिट्रेशन में अथवा जिला न्यायालय में अपील दाखिल नहीं की गई। जबकि उन्हें यह करना चाहिए था। राजमार्ग घोटाले के मुख्य आरोपी डी पी सिंह सहित मुख्य मिलीभगत करने वाली कांग्रेस पार्टी जब सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर सरकार की घेराबंदी कर रही है तो फिर सरकार आखिर किस डर से अपने ही बयान को वापस लेकर बैकफुट पर खड़ी है! सरकार की जीरो टॉलरेंस की सबसे ज्यादा मजाक भी राजमार्ग घोटाले को लेकर ही उड़ाई जाती है। हालांकि यह भी सच है कि एस आई टी अपने अधिकारों के सीमित दायरे में सही लेकिन संतोषजनक काम कर रही है।