श्रीनगर और पौड़ी में सी एम ओ की नाक के नीचे हो रहा है मरीजों की जान से खिलवाड़
कृष्णा बिष्ट
श्रीनगर गढवाल की एक ही लैब मे एक ही मरीज का ब्लड ग्रुप पहले बी निगेटिव और आधे घंटे बाद दूसरी रिपोर्ट मे बी पोजिटिव दर्शाया गया है। इस रिपोर्ट पर किसी डाक्टर के हस्ताक्षर भी नहीं हैं।
श्रीनगर में 4 अप्रैल को कंचन नाम की महिला ने कृष्णा पैथ लैब में कुछ जांच करवाई। एक जांच रिपोर्ट में उनका ब्लड ग्रुप “बी नेगेटिव” बताया गया था। थोड़ी देर बाद जब वह फिर से एक और जांच कराने के लिए उसी पैथ लैब में गई तो फिर उनका ब्लड ग्रुप “बी पॉजिटिव” बता दिया।
अब लापरवाही और मिलीभगत का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब रिपोर्ट पर किसी डाक्टर के हस्ताक्षर भी नहीं है तो सरकारी अस्पताल के डाक्टर इस रिपोर्ट के आधार पर कैसे इलाज कर रहे हैं !
पर्वत जन ने कल दिनांक 4अप्रैल को दून अस्पताल का ऐसा ही एक मामला उठाया था, वह डाक्टर भी श्रीनगर बेस अस्पताल से अभी अभी ट्रांसफर हो के देहरादून आये हैं। शहर भले ही बदल गया है पर आदतें नहीं बदली।
पहाड़ों से पलायन के लिए जिम्मेदार स्वास्थ्य व्यवस्था के हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि निजी स्वार्थों के लिए सरकारी अस्पताल के डॉक्टर बिना मानकों वाले पैथोलॉजी लैब से मरीजों के टेस्ट करवा रहे हैं जहां न तो पैथालॉजी के डाक्टर ही हैं और न कोई एक्सपर्ट लैब टेक्नीशियन। श्रीनगर बेस अस्पताल के मरीजों को प्राइवेट के लैबों से टेस्ट कराए जा रहे हैं, जबकि यह टैस्ट अस्पताल में भी उपलब्ध हैं।
जिन लैबों से टेस्ट करवाया जा रहा है, वहां पर कोई पैथोलाॅजिस्ट भी नही है और लैब के टेक्नीशियन ही रिपोर्ट मे साइन कर रहे हैं, जिससे इस रिपोर्ट की गुणवत्ता पर सन्देह बना रहता है।
पहाड़ की भोली भाली जनता के जिन्दगी से जिन्दगी के रक्षक ही खिलवाड़ कर रहे हैं इस विषय पर न तो जनप्रतिनिधि कुछ बोलते हैं और न ही स्वास्थ्य विभाग ही कुछ बोलने को तैयार है। सी एम ओ पौड़ी को यह बात तो भले भांति पता ही होगी कि क्लीनिक स्टेब्लिसमेंट एक्ट के अन्तर्गत कितने लैब और क्लीनिक पंजीकृत है और कौन नहीं पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। शायद स्वास्थ्य विभाग भी किसी बड़ी अनहोनी का इन्तजार कर रहा है।
मरीज जब अपने उपचार से ठीक न होने पर देहरादून आ रहे हैं तो उन्हें पता चल रहा है कि उनकी रिपोर्ट ही गलत है, आखिर कब तक जनता की जान से खिलवाड़ होता रहेगा अब देखना यह है कि इस खबर के प्रकाशन के बाद विभाग के कान में जू रेंगते भी है या किसी बड़े आन्दोलन का इन्तजार करते हैं।