रुद्रप्रयाग के सौदा गांव में एक अभागी मां ने अपने जिगर के टुकड़े को ही 22 साल से घर में ही कैद किया हुआ है। सौदा गांव की सरोज ने अपने सबसे बड़े बेटे को जंगली जानवरों के डर से घर में कैद किया हुआ है। क्योंकि वहां विकलांग है। न बोल सकता है, न चल सकता है। सरोज के तीन बेटों में यह सबसे बड़ा बेटा पंकज है।
पिता की मौत के बाद बेसहारा इस परिवार की किसी ने सुध नहीं ली। विधवा सरोज मेहनत मजदूरी करके किसी तरह घर चला रही है। दो बेटे सातवीं और दसवीं में पढ़ते हैं। सरोज जब मेहनत मजदूरी के लिए जाती है तो गिरने अथवा जंगली जानवरों के डर से अपने बच्चे को घर में ही कैद करके रखती है।
और तो और इस महिला को कोई आसानी से मजदूरी देने तक को तैयार नहीं है, क्योंकि इस महिला को आधे दिन में अपने अपाहिज बच्चे की देखभाल करने के लिए घर आना पड़ता है। इस परिवार की सुध न शासन-प्रशासन ने कभी ली, न ही वोट मांगने आने वाले नेताओं ने। और न ही किसी स्वयंसेवी संस्था ने। इस महिला को विधवा पेंशन तक नहीं मिलती। जब कुछ माह पहले मुख्य चिकित्सा अधिकारी सरोज नैथानी को इस विधवा महिला के विषय में पता चला तो उन्होंने अपने स्तर से जरूर इस परिवार को ₹2000 प्रतिमाह देने का फैसला किया। कुछ दिन पहले इंडिया न्यूज़ चैनल के संवाददाता संदीप नेगी ने भी इस मसले को लेकर बाल विकास मंत्री रेखा आर्य से सवाल किया था। उस पर उनका कहना था कि वह उस बच्चे को सहायता दिलवाएंगी लेकिन बयान देने के अलावा उन्होंने कोई पहल इस दिशा में नहीं की। राष्ट्रीय सहारा अखबार ने भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाया तथा शासन प्रशासन का ध्यान इस परिवार की दुश्वारियों की तरफ खींचा तो जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना था कि वह किसी NGO के माध्यम से बच्चे की देखभाल का प्रयास कराने की व्यवस्था करेंगे तथा उनके घर के पास बाउंड्री वाल आदि लगाई जाएगी ताकि बच्चे को कोई नुकसान न हो।