मामचन्द शाह//
कालेजों में अक्सर कुत्ते, बिल्ली, गधे व कभी-कभार हुड़दंगी अराजक तत्व तमंचे व तलवारें लहराते हुए देखे जाते रहे हैं
सुरक्षा मानकों पर नहीं दिया जाता ध्यान
छात्रों के अलावा बिना काम किसी को भी न घुसने दिया जाए तो पटरी पर आ सकती है व्यवस्था
घटना घटित होने पर कालेज को करना पड़ता है छावनी में तब्दील
अस्थायी राजधानी देहरादून में यूं तो प्रदेश के सबसे बड़े डीएवी कॉलेज के साथ ही डीबीएस कालेज एवं एसजीआरआर जैसे नामी कॉलेज विद्यमान हैं, लेकिन सर्वविदित है कि इन कालेजों में अक्सर कुत्ते, बिल्ली, गधे व कभी-कभार हुड़दंगी अराजक तत्व तमंचे व तलवारें लहराते हुए देखे जाते रहे हैं। पिछले वर्षों का डीएवी कालेज के रिकॉर्ड खंगालने के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है। इन सबके उलट प्रदेश सरकार पर डबल इंजन लगने के बाद उत्तराखंड के कालेजों में ड्रेस कोड की घोषणा कर दी गई, जो छात्रों को रास नहीं आ रही है।
दरअसल छात्र संगठनों की टोह लिए बिना मंत्री जी ने यह घोषणा कर तो दी, लेकिन छात्रों को डे्रस कोड जैसी रोक-टोक बिल्कुल भी पसंद नहीं है। विगत दिनों डीएवी कालेज छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए शुभम सेमल्टी ने भी उच्च शिक्षा राज्य मंत्री को चुनौती देते हुए कहा है कि डीएवी में ड्रेस कोड की बात करने पर तो यहां घुसने भी नहीं दिया जाएगा। हालांकि यह चुनौती चुनाव से पहले हो गई थी। बावजूद इसके भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रत्याशी ही अध्यक्ष बना। ऐसे में कहा जा सकता है कि उच्च शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत के लिए यह घोषणा अब गले की हड्डी जैसी बनती जा रही है।
शुभम सिमल्टी कहते हैं कि ड्रेस कोड की बजाय बेहतर होता कि कॉलेजों की बुनियादी सुविधाओं पर फोकस किया जाता। जाहिर है कि उनका इशारा भी कालेज में अनुशासन स्थापित करने के अलावा शिक्षण व्यवस्था को भी दुरुस्त करने की ओर जाता है।
उल्लेखनीय है कि विभिन्न निजी स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी हैं कि वहां बिना इजाजत व एंट्री किए कोई नहीं घुस पाता है, लेकिन डीएवी व अन्य कॉलेजों में छात्रों के साथ ही बाहरी अराजक तत्व भी हुजूम के साथ घुस जाते हैं। ऐसे लोगों का कॉलेज में घुसने के पीछे का मकसद सिर्फ राजनीति करनी या फिर लड़ाई-झगड़ा कर शिक्षण व्यवस्था को अव्यवस्था में परिवर्तन कराना होता है। पिछले वर्षों में कई बार इस कॉलेज को छावनी में तब्दील होना पड़ा। इसका टाइम पास करने वाले छात्रों पर तो कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन पढ़ाकू छात्र-छात्राओंं का भविष्य जरूर अंधकारमय की ओर चला जाता है। यही हाल कुछ कालेजों को छोड़कर प्रदेश के लगभग सभी कॉलेजों का है। मंत्री जी की तिरछी नजर यदि इस ओर पड़े और वे सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम कराने में सफल हो जाते हैं तो छात्रों को उनकी ओर से इतना बड़ा तोहफा और कुछ नहीं हो सकता। यदि समय पर सारी व्यवस्था दुरुस्त हो गई और छात्रों के अतिरिक्त बिना कार्य के किसी को भी कॉलेज में न घुसने दिया जाए तो इन अव्यवस्थाओं का अंत स्वत: ही हो जाएगा।
दरअसल डा. धन सिंह रावत उत्तराखंड के इकलौते ऐसे मंत्री हैं, जिनकी केंद्र में बेहतरीन पकड़ मानी जाती है। किसी को भी उनकी क्षमता पर संदेह नहीं है। अभी तक के रिकार्ड के अनुसार वे सर्वाधिक सक्रिय मंत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। बावजूद इसके यदि प्रदेश के कॉलेजों में ड्रेस कोड के फरमान पर वे बैकफुट पर आते हैं तो यह उनके कद को भी सुशोभित नहीं करता।
अब देखना यह है कि हमेशा सुर्खियों में रहने वाले उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डा. धन सिंह रावत डिग्री कॉलेजों में इन तमाम अव्यवस्थाओं को कैसे दूर कर पाते हैं और अपनी घोषणा के जवाब में मिली चुनौती का कैसा तोड़ निकाल पाते हैं!