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क्यों भाए मोदी-शाह को रामनाथ कोविंद

June 20, 2017
in पर्वतजन
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हमेशा की तरह सबको चौंकाते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति पद के लिए ऐसे चेहरे को आगे कर दिया जिसका अंदाजा शायद ही किसी ने लगाया हो। बिहार के राज्यपाल और कभी भाजपा के प्रमुख दलित चेहरे रहे रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति पद के लिए दोनों नेताओं की पहली पसंद बने हैं।
भाजपा में कई बड़े पदों पर रहे रामनाथ कोविंद की गिनती लो प्रोफाइल चेहरों के रूप में होती रही है जो चुपचाप पर्दे के पीछे रहकर तन्मयता से अपना काम करते रहे। लेकिन एकाएक राष्ट्रपति पद के लिए उनका नाम सामने आने से अब उनको लेकर तमाम सवाल और जिज्ञासाएं खड़ी हो गई हैं।

पहला सवाल तो ये ही है कि आखिर पार्टी ने वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आड़वाणी, मुरली मनोहर जोशी, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन सहित तमाम बड़े चेहरों पर कोविंद को तरजीह क्यों दी? तो चलिए आपको बताते हैं उन खास वजहों के बारे में जिसकी वजह से मोदी शाह की जोड़ी ने उन्हें इस दौड़ में सबसे आगे रखा।

दलित चेहरे को बढ़ावा देना
दलित समुदाय से होना कोविंद की उम्‍मीदवारी की बड़ी वजह बना। लोकसभा और फिर यूपी के विधानसभा चुनावों में जिस तरह से दलितों ने अपने पुराने सिपहसलारों को छोड़ भाजपा को समर्थन किया उस बढ़त को पार्टी किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहती है। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव के लिए किसी दलित चेहरे को आगे करने से बड़ा दांव और क्या हो सकता था। कोविंद के सहारे पार्टी सबका साथ सबका विकास के नारे को भी आगे बढ़ा सकेगी।

विरोध करने वालों पर लगेगा दलित विरोधी होने का ठप्पा
रामनाथ कोविंद का नाम घोषित करने का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को यह भी हो सकता है कि उनका विरोध करना दूसरे दलों को भारी पड़ सकता है। दलित चेहरा होने के कारण विरोध करने वालों पर दलित विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है। ऐसे में बेवजह कोई भी इस दल इस तरह का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेगा। राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के दलित नेता रामनाथ कोविंद से बेहतर चेहरा कोई नहीं हो सकता था, जिससे पार्टी पूरे दम के साथ यह कह सके कि उसने एक दलित को देश के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाया।

लंबा राजनीतिक अनुभव
राजनीतिक अनुभव के मामले में भी कोविंद का पक्ष काफी मजबूत है। वह 12 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे और भाजपा के दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं। कुछ समय के लिए पार्टी के प्रवक्ता भी रहे और अब पिछले दो सालों से बिहार के राज्यपाल हैं।

हाइकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में वकालत, कानून के अच्छे जानकार
कानपुर के रहने वाले रामनाथ कोविंद कानून के भी अच्छे जानकार हैं। कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई करने वाले कोविंद ने दिल्‍ली हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 16 साल तक वकालत की है। ऐसे में राष्ट्रपति जैसे पद पर तमाम कानूनी प्रक्रियाओं और संविधान की बेहतर जानकारी उनकी राह आसान करेगी।

समर्थन जुटाना होगा आसान 
रामनाथ कोविंद के चेहरे पर भाजपा के लिए दूसरे दलों से समर्थन जुटाना भी आसान होगा। इसमें उनका दलित होना काफी फायदेमंद रह सकता है। बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए अब उनके चेहरे का विरोध करना मुश्किल भरा होगा तो बिहार का राज्यपाल रहने के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन मिलने की उम्‍मीद भी की जा सकती है।

आम राय बनने की उम्‍मीद
रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के बाद भाजपा के लिए सबसे आसान काम होगा उनके नाम पर आमराय बनाना। पार्टी अगर आड़वाणी, जोशी या किसी अन्य बड़े नेता को अपना उम्‍मीदवार तय करती तो पूरी संभावना थी कि विपक्ष शायद ही उस नाम पर तैयार होता, लेकिन रामनाथ कोविंद के नाम पर शायद ही किसी को आपत्ति हो। बिहार में राज्यपाल रहने के दौरान लालू और नीतीश से उनके मधुर संबंध रहे हैं। सौम्य स्वभाव के कारण विपक्ष के कई नेताओं से भी उनके अच्छे संबंध माने जाते हैं। ऐसे में उनके चेहरे पर आम राय बनने की पूरी उम्‍मीद है। हालांकि फिलहाल कांग्रेस और शिवसेना जैसे दलों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है, लेकिन ये तात्कालिक हो सकती है।


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