पहला सवाल तो ये ही है कि आखिर पार्टी ने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आड़वाणी, मुरली मनोहर जोशी, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन सहित तमाम बड़े चेहरों पर कोविंद को तरजीह क्यों दी? तो चलिए आपको बताते हैं उन खास वजहों के बारे में जिसकी वजह से मोदी शाह की जोड़ी ने उन्हें इस दौड़ में सबसे आगे रखा।
विरोध करने वालों पर लगेगा दलित विरोधी होने का ठप्पा
रामनाथ कोविंद का नाम घोषित करने का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को यह भी हो सकता है कि उनका विरोध करना दूसरे दलों को भारी पड़ सकता है। दलित चेहरा होने के कारण विरोध करने वालों पर दलित विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है। ऐसे में बेवजह कोई भी इस दल इस तरह का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेगा। राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के दलित नेता रामनाथ कोविंद से बेहतर चेहरा कोई नहीं हो सकता था, जिससे पार्टी पूरे दम के साथ यह कह सके कि उसने एक दलित को देश के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाया।
लंबा राजनीतिक अनुभव
राजनीतिक अनुभव के मामले में भी कोविंद का पक्ष काफी मजबूत है। वह 12 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे और भाजपा के दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं। कुछ समय के लिए पार्टी के प्रवक्ता भी रहे और अब पिछले दो सालों से बिहार के राज्यपाल हैं।
कानपुर के रहने वाले रामनाथ कोविंद कानून के भी अच्छे जानकार हैं। कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई करने वाले कोविंद ने दिल्ली हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 16 साल तक वकालत की है। ऐसे में राष्ट्रपति जैसे पद पर तमाम कानूनी प्रक्रियाओं और संविधान की बेहतर जानकारी उनकी राह आसान करेगी।
समर्थन जुटाना होगा आसान
रामनाथ कोविंद के चेहरे पर भाजपा के लिए दूसरे दलों से समर्थन जुटाना भी आसान होगा। इसमें उनका दलित होना काफी फायदेमंद रह सकता है। बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए अब उनके चेहरे का विरोध करना मुश्किल भरा होगा तो बिहार का राज्यपाल रहने के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन मिलने की उम्मीद भी की जा सकती है।
आम राय बनने की उम्मीद
रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के बाद भाजपा के लिए सबसे आसान काम होगा उनके नाम पर आमराय बनाना। पार्टी अगर आड़वाणी, जोशी या किसी अन्य बड़े नेता को अपना उम्मीदवार तय करती तो पूरी संभावना थी कि विपक्ष शायद ही उस नाम पर तैयार होता, लेकिन रामनाथ कोविंद के नाम पर शायद ही किसी को आपत्ति हो। बिहार में राज्यपाल रहने के दौरान लालू और नीतीश से उनके मधुर संबंध रहे हैं। सौम्य स्वभाव के कारण विपक्ष के कई नेताओं से भी उनके अच्छे संबंध माने जाते हैं। ऐसे में उनके चेहरे पर आम राय बनने की पूरी उम्मीद है। हालांकि फिलहाल कांग्रेस और शिवसेना जैसे दलों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है, लेकिन ये तात्कालिक हो सकती है।