जौनसार बावर के स्टार प्रचारक और उनके चाक गिरेबान
-सुभाष तराण
पिछले दिनों उत्तरकाशी जिले की मोरी तहसील के गाँव तलवाड़ जाना हुआ। वजह ये थी कि वहाँ के प्रधान चतर सिंह अपने गाँव में संस्क़ृति और जन सरोकारो को लेकर एक संगोष्ठी आयोजित कर रहे थे।
पहाड़ों को लेकर संवेदनशील मुहीम छेडने वाले स्वयं सेवी संगठन “पलायन एक चिंतन” से प्रभावित और प्रेरित होकर चतर सिंह भी चाह रहे थे कि जनता, जन प्रतिनिधियों, समाज सेवियों और पत्रकारों को एक मंच पर बिठा कर क्षेत्र के जन सरोकारो और मूलभूत समस्याओं को लेकर कोई सार्थक बातचीत की जाए। उन्होने पलायन एक चिंतन के सदस्यों के अलावा अपने आस पास के गाँव-खेड़ों की जनता तथा ग्राम सभा के जन प्रतिनिधियों से लेकर चकराता के वर्तमान विधायक, काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तथा पूर्व गृह मंत्री प्रीतम सिंह, राज्य सभा साँसद प्रदीप टम्टा तथा वर्तमान कृषि मंत्री सुबोध उनियाल को इस संगोष्ठी हेतु आमंत्रित किया था। चतर सिंह काँग्रेसी है। काँग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता होने के बावजूद भी क्योंकि चतर सिंह ने अपने क्षेत्र के विधायक राज कुमार को इस संगोष्ठी में नहीं बुलाया था इसलिए प्रथम निमंत्रण के बावजूद भी प्रीतम सिंह या उनका कोई प्रतिनिधि इस संगोष्ठी में शामिल नहीं हुआ।
यही नहीं, अपने रसूख के दम पर पुरोला के इन विधायक महोदय ने उत्तराखण्ड के हर गाँव कस्बें में जन सरोकारों से जुडे छोटे से छोटे कार्यक्रम में शिरकत करने वाले सर्वोदयी नेता और राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा के लिए भी पार्टी की तरफ़ से ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करवा दी कि वो भी इस कार्यक्रम शामिल न हो सके। जबकि होना यह चाहिए था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मिल बैठ कर ग्राम प्रधान और विधायक के बीच पैदा हुए मतभेदों को दूर करते, लेकिन हुआ इसका उल्टा।
वर्तमान मे देश भर में काँग्रेस पार्टी की गत किसी छुपी नही है। लोकतंत्र में एक एक वोट का महत्व होता है। यह बात गौर करने लायक है कि कैसे और क्यों आज की राजनीतिक पार्टियां एक दल बदलू कदावर नेताओं के अहम को पोसने के लिए गांव सभा स्तर के कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज करती है। काँग्रेस के खिसकते जनाधार कारण ऐसी घटनाओं के बाद आसानी से समझा जा सकता है कि वर्तमान में उनके बड़े नेताओं के लिए गाँधी की संकल्पना ग्राम गण राज्य में सबसे उपर रहने वाले ग्राम सभा के प्रतिनिधि की क्या हैसियत है।काँग्रेस पार्टी के समर्थक रहे प्रधान चतर सिंह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाजपा सरकार के किसी मंत्री के आने की उम्मीद तो वैसे भी न के बराबर ही थी। बावजूद इसके भी चतर सिंह अपने गाँव में एक सार्थक संगोष्ठी आयोजित करवाने में सफ़ल रहे। संगोष्ठी में बातचीत के लिए तकरीबन 15-16 प्रधानों तथा क्षेत्र पंचायत सदस्यों के अलावा अच्छी खासी तादात में पूरे क्षेत्र के लोग उपलब्ध थे। जैसा कि पहले से तय था कि इस संगोष्ठी में आम लोगों की बात सुनी जाएगी, वही किया भी गया। आम जनता की समस्याओं को समझने के लिए इससे बेहतर मौका और कोई हो ही नही सकता। ऐसी संगोष्ठियों के दौरान जो समझ विकसित होती है, वही सच्चे लोकतंत्र की बुनियाद है। देहरादून में अपने सुविधा संपन्न रिहायशगाहों में चकडैत और चापलूस ठेकेदार किस्म के छुट भैयों से घिरे नेताओं के लिए इस किस्म की गोष्ठियाँ आँख खोलने वाली साबित हो सकती थी लेकिन क्षेत्र का दुर्भाग्य देखिए, चतर सिंह की इस पहल पर किसी भी बडे नेता नें शिरकत नहीं की।
दो दिन पहले त्यूनी में एक महिला अस्पताल में डाक्टर न होने के चलते वापिस अपने घर को लौटते हुए दिन के उजाले में किसी बेजुबान पशु की तरह टौंस नदी पर लटके झूला पुल के मध्य में बच्चा जन दिया। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा हाशिए पर छोड़े गए पहाड़ के इस क्षेत्र में इस तरह की यह कोई पहली अमानवीय घटना नहीं है। इससे पहले भी यहाँ के लोग कभी सड़क तथा प्राकृतिक दुर्घटनाओं के चलते तो कभी हारी बीमारी के चलते अस्पतालों में डाक्टर न होने के कारण बेमौत मारे जाते रहे हैं। वैसे तो यह स्थिति कमोवेश उत्तराखण्ड के पूरे पहाड़ी क्षेत्र की है लेकिन जौनसार बावर इसमे अव्वल हैं। जनजाति प्रमाण पत्र के तहत नौकरी पाने के अलावा अगर इस क्षेत्र में किसी का विकास हुआ है तो वो यहाँ के जन प्रतिनिधियों का हुआ है। मसलन सबसे पहले प्रीतम सिंह को ही ले लिजिए। ब्लॉक प्रमुख से शुरू हुआ उनका राजनीतिक सफर पिछले लगभग अट्ठाईस सालों के दौरान विधायक से कबिना मंत्री होते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तक पहुँच चुका है। प्रीतम सिंह की हालिया उपलब्धि यह है कि उनको पडौसी राज्य हिमाचल की सीमांत विधान सभा सीटों पर जातीय समीकरण साधने के लिए AICC ने आपको स्टार प्रचारकों की सूची में शुमार किया है।
इस फ़ेरहिस्त में यदि मुन्ना चौहान का जिक्र न किया जाए तो यह उनके साथ ना इंसाफ़ी होगी। जनवादी नेता के रुप में शुरु किए गए अपने राजनीतिक सफ़र के दौरान उन्होने अब तक इतनी उन्नति कर ली है कि वे आजकल भाजपा के उन्मादी और अराजक धड़े का नैतृत्व हथियाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। पिछले दिनों केरल के बदले की बात कह कर उनकी अगुवाई में, उनके उन्मादी अनुयाईयों नें देहरादून में गिनती भर के साम्यवादियों के सर फ़ोड़ कर मार्क्स के उसी समता और समानता के सिद्धान्त को गुरु दक्षिणा प्रदान कर दी जिसने उन्हे राजनीति में जाने के लिए प्रेरित किया था। जब तक सूबे में काँग्रेस की सरकार थी तब तक वो गाहे बगाहे किसी दुर्घटना के मौके पर जौनसार बावर के त्यूनीं कस्बे की प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के खिलाफ़ वहाँ जाकर जुलूस निकालते धरना प्रदर्शन करते थे लेकिन अब जबसे सूबे में भाजपा की सरकार है, तब से वे भी क्षेत्र की मूल भूत समस्याओं से मुंह फेर कर मन्दिरों के उद्धाटन में अपना जी बहला रहे हैं। काँग्रेस की सरकार के रहते त्यूनी में एक आध डॉक्टर तो रहता ही था लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद स्थिति यह है कि अब वहाँ एक डॉक्टर भी नहीं है जबकि चौहान जी को हर तरफ़ विकास ही विकास नजर आ रहा है।
उत्तराखण्ड के पडौसी राज्य हिमाचल में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। जहाँ भाजपा मुन्ना चौहान के जनवादी स्वभाव की खाल से बाहर निकाल कर उनके उग्र एवं प्रतिक्रियावदी भाषणों से सीमान्त विधान सभाओं के मत दाताओं को लुभाना चाहती है वहीं काँग्रेस ने भी समता, समानता एवं प्रगतिशीलता का नकाब उतारकर, उन्ही सीमान्त क्षेत्रों के नेता पुत्रों के लिए जातीय समीकरणों को साधने हेतु प्रीतम सिंह को अपने स्टार प्रचारकों में शुमार किया हुआ है।
लोगों को चाहिए कि जौनसार बावर के भाजपा और काँग्रेस से संबंध रखने वाले दोनो स्टार प्रचारकों से उनके क्षेत्र त्यूनी में एक पुल पर खुले में प्रसव करने को मजबूर उस महिला की तस्वीर दिखाकर दोनो से उनके क्षेत्र की स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासनिक एवं कानून व्यवस्था के बारे में सीमांत हिमाचल के कस्बों की सरकारी सुविधाओं के बारे में तुलनात्मक सवाल करें। हिमाचल की जनता से भी अनुरोध है कि वे भी इन स्टार प्रचारको से कहें की पहले आप दोनो अपने क्षेत्र जौनसार बावर में शिमला जिले के समान भौगोलिक, साँस्कृतिक परिस्थितियों वाले सीमांत कस्बों जैसे कि नेरवा, चौपाल, जुब्बल और रोहडू से बेहतर सरकारी सुविधाएं स्थापित करके दिखाएं तब हमारे यहाँ आएं और हमारे विकास की बात करें।