उत्तरकाशी के पुरोला तथा मोरी ब्लॉक में लगभग 90% काम कागजों पर ही होते हैं। ठेकेदारों की इंजीनियरों से मिलीभगत होती है। वे फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र तथा फर्जी दस्तावेज लगाकर खुद को ए क्लास कॉन्ट्रैक्टर बताते हुए मजे से ठेके हासिल करते जाते हैं।
यहां तक कि विभाग के सबसे बड़े बॉस और शासन में बैठे अधिकारियों की भी इनसे मिलीभगत होती है। आज हम आपको बताते हैं, एक ऐसे ठेकेदार के बारे में!!
पिछले दिनों प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में उत्तरकाशी के पुरोला में रहने वाले जनक सिंह रावत नाम के ठेकेदार ने श्रीनगर गढ़वाल में ठेके लेने के लिए हिमाचल में काम करने का एक अनुभव प्रमाण पत्र संलग्न किया और सबसे न्यूनतम निविदा डाल कर ठेका हासिल कर लिया। जब ठेकेदार का अनुभव प्रमाण पत्र सत्यापन किया गया तो पता चला कि हिमाचल के pwd विभाग ने उसे ऐसा कोई अनुभव प्रमाण पत्र दिया ही नहीं था और न उसने वहां काम किया है।
पीएमजीएसवाई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राघव लंगर ने उसे अगले 1 वर्ष तक ठेके लेने से ब्लैक लिस्ट कर दिया है।

पर्वतजन ने अपनी पड़ताल में पाया कि इससे पहले जनक सिंह मोरी पुरोला से लेकर उखीमठ तक तमाम ठेके ऐसे ही फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र बना कर हासिल करता रहा है।

जनकसिह राजनीतिक सांठगांठ तथा भ्रष्टाचार के बल पर सरकारी धन को ठिकाने लगाता रहा है। उत्तरकाशी में फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर अति करने वाले जनक सिंह रावत की तत्कालीन जिलाधिकारी आशीष कुमार श्रीवास्तव ने जांच भी कराई थी। यह जांच SDM पुरोला अधीक्षण अभियंता PWD उत्तरकाशी और अधिशासी अभियंता ग्रामीण निर्माण विभाग उत्तरकाशी की तीन सदस्यीय जांच टीम ने की थी।
इसमें इस बात का खुलासा हुआ था कि जनक सिंह रावत ने अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग अस्कोट पिथौरागढ़ के फर्जी हस्ताक्षर करके एक अनुभव प्रमाण पत्र बनाया था। जिसमें उसने अस्कोट के अधिशासी अभियंता के हस्ताक्षर करके दर्शाया था कि उसने 4/11/2014 को एक करोड़ 93 लाख का मार्ग निर्माण किया है और उसका कार्य संतोषजनक पाया गया।

जब जांच हुई तो अस्कोट के अधिशासी अभियंता ने बताया कि जनक सिंह ने उनके खंड में कोई काम नहीं किया है और ना ही उन्होंने उसे ऐसा कोई अनुभव प्रमाण पत्र जारी किया है। जांच टीम ने अपनी जांच में पाया कि ठेकेदार ने फर्जी लाइसेंस और फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र बना कर ठेके तो हासिल किए ही साथ ही अपने कार्यों की गुणवत्ता भी अत्यंत घटिया दर्जी की रखी थी।

प्रयोगशाला परीक्षण में भी ठेकेदार का काम निम्नस्तरीय पाया गया। जांच रिपोर्ट पर कार्यवाही करते हुए उत्तरकाशी के तत्कालीन डीएम डॉक्टर आशीष कुमार श्रीवास्तव ने ठेकेदार के साथ लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत की बात कहते हुए PWD के अधीक्षण अभियंता को ठेकेदार के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही करने के लिए आदेश दिए थे।
PWD के अधिकारियों ने ठेकेदार का अनुबंध निरस्त करते हुए जनक सिंह को ब्लैक लिस्ट करते हुए मामला दबा दिया। जबकि यह मामला सरकारी अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर और कूट रचना का था।

यही नहीं जनक सिंह ने अधिशासी अभियंता निर्माण खंड लोक निर्माण विभाग ऊखीमठ के फर्जी हस्ताक्षर करके 80 लाख का एक और अनुभव प्रमाण पत्र बनवाया था। जिसमें उसने गलती से काम के अनुबंध की धनराशि तो 8000000 लिखी थी, किंतु किए गए कार्य की धनराशि 78 करोड़ 91 लाख अनुबंध से कई गुना अधिक।

काम करने की धनराशि का आंकड़ा देख अधिकारियों का माथा ठनका तो मामला पकड़ में आ गया। जनक सिंह नाम का यह ठेकेदार अब तक विभाग के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके करोड़ों रुपए ठिकाने लगा चुका है।
पकड़े जाने पर भी अधिकारियों ने इसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। इस से साफ पता चलता है कि अधिकारियों की भी इसके साथ खूब मिलीभगत है। और इस ठेकेदार के पास अधिकारियों के खिलाफ कुछ न कुछ सबूत हैं। पुरोला के इस ठेकेदार के पास क्या सबूत होंगे पाठक समझ सकते हैं।जिसके कारण वह ठेकेदार पर कठोर कार्यवाही करने की विषय में सोच भी नहीं सकते।
जनक सिंह ठेकेदार की यह करतूतें यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि ठेकेदार किस तरह से अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके करोड़ों रुपए ठिकाने लगा रहे हैं।