राजनैतिक दल फिर उतरे गंदी राजनीति में
न्यायालय के आदेश में एक साथ तीन तलाक के निर्णय पर छह माह का स्टे
चीफ जस्टिस उच्चतम न्यायालय खेहर ने तीन तलाक को माना संवैधानिक
तीन तलाक के मसले पर पाकिस्तान से मात खा गया भारत
उच्चतम न्यायालय द्वारा बहुचर्चित ट्रिपल तलाक के मामले को भाजपा-कांग्रेस सहित तमाम राजनीतिक दल आज ऐतिहासिक बता रहे हैं। मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी को नासुर बना देने वाले ट्रिपल तलाक पर आज उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पूरे देश में खबरों का तूफान मचा हुआ है। तलाक देने वाले लोगों से लेकर तलाक से पीडि़त महिलाएं न्यायालय के निर्णय आने के बाद ब्रेकिंग न्यूज बनी हुई हैं। सारे टेलीविजन चैनलों की प्राइम टाइम डिबेट के लिए उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद ट्रिपल तलाक पर बुक हो चुके हैं।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस मसले पर न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताकर भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम महिलाओं का हितैषी बता रहे हैं तो कांग्रेस के रणजीत सिंह सुरजेवाला कांग्रेस को मुस्लिम महिलाओं का हिमायती बता रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाकायदा ट्वीट कर श्रेय लेने की कोशिश की है। देश से लेकर प्रदेशों के बड़े से लेकर छुटभैये सब आज इस फैसले को ऐतिहासिक बताकर अपनी पीठ ठोकने का काम कर रहे हैं।
न्यायालय ने तीन तलाक के मामले में जो बात कही है, अब उसे समझने का सही वक्त आ गया है। न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक नहीं कहा है, जबकि सभी राजनीतिक दलों के छोटे-बड़े नेताओं ने यह कहकर कोहराम मचाया हुआ है कि न्यायालय ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक कहा है।
कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने न्यायालय के निर्णय की जो व्याख्या की है, उससे बहस और तेज हो गई है। उनका कहना है कि न्यायालय ने एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक कहा है और न्यायालयों में लडऩे वाले लोग अब यह कह रहे हैं कि उन्होंने भी यही मांग की थी कि एक साथ तीन तलाक नहीं होना चाहिए। अर्थात एक साथ तलाक तलाक तलाक कहने की बजाय यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी से पिंड छुड़ाना चाहता है तो वो तय अंतराल के दौरान अर्थात 10, 15, 20, 30 दिनों में तीन अलग-अलग बार तलाक तलाक तलाक कहेगा तो उस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। अब यदि तलाक समर्थक इन तमाम लोगों की बातें सही साबित हुई तो अपनी पीठ ठोकने वाले लोग बैकफुट पर आ सकते हैं।
गेंद अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चलने वाली सरकार के पाले में है। मोदी सरकार को न्यायालय के निर्देश पर अगले 6 महीने में इस पर एक कानून बनाना है। अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वो मुस्लिमों द्वारा बनाए गए तलाक के कानून को जिसे कि वो कुरान-ए-शरीफ में लिखा हुआ बताते हैं, पर कैसे निर्णय देती है। मोदी सरकार के सामने एक ओर अब न्यायालय का आदेश स्वीकार करने की बाध्यता है, वहीं धार्मिक पुस्तकों में तलाक के बारे में कही गई बातों के बीच सामंजस्य बिठाने की राजनैतिक मजबूरी भी है। अगले छह महीने के लिए न्यायालय द्वारा एक साथ तीन तलाक पर लगाई गई रोक के बाद आने वाले कानून तय करेगा कि मुस्लिम महिलाएं क्या वास्तव में तलाक जैसे वीभत्स दर्द से कैसे बच पाती हैं।
हलाला से कैसी बचेंगी महिलाएं!
निकट भविष्य में यदि एक साथ तीन तलाक को खत्म करने वाला कानून आ भी जाता है तो भी मुस्लिम महिलाओं को उस दरिंदगी से कैसे बाहर लाया जाएगा, इस पर संशय बरकरार है। यदि सरकार तीन तलाक खत्म कर नियमित अंतराल में तलाक तलाक तलाक कहने को मान्य करती है तो इसके परिणामस्वरूप यदि पति-पत्नी में सुलह हो जाती है तो उस सुलह को अमलीजामा पहनाने के लिए उस महिला को एक बार फिर हलाला की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। अब यदि महिलाओं को हलाला से गुजरना ही पड़ा तो फिर उन्हें न्याय कैसे मिला! हलाला की यह प्रक्रिया यदि बंद नहीं होती है तो महिलाओं की आजादी को लेकर आज जो नारे लग रहे हैं, वे स्वत: ही झूठे साबित हो जाएंगे।