सबसे कम उम्र में मंत्री बनने वालों में पहली पांत में खड़े सूबे के उच्च शिक्षा मंत्री से प्रदेश के लोगों को बड़ी उम्मीद है। केंद्र सरकार में उनकी मजबूत पकड़ के कारण आशाओं और अपेक्षाओं का परवान चढऩा लाजिमी भी है।
गजेंद्र रावत
उत्तराखंड की नवनिर्वाचित सरकार में हालांकि अभी कैबिनेट के दो पद और भरे जाने हैं, किंतु इस बीच सहकारिता, उच्च शिक्षा और प्रोटोकॉल मंत्री स्वतंत्र प्रभार धन सिंह रावत ने अपनी धमक दिखानी शुरू कर दी है। धन सिंह रावत पहली बार विधायक बनकर स्वतंत्र प्रभार के मंत्री बनने में कामयाब रहे। दरअसल धन सिंह रावत का तब मंत्री बनने का नंबर नहीं आ रहा था, जब पौड़ी जनपद के ही सतपाल महाराज ने कैबिनेट मंत्री बनने से इंकार कर दिया था। राजनैतिक लिहाज से भाजपा ने तत्काल महाराज की जगह धन सिंह रावत का नाम काबीना मंत्री के लिए भेज दिया। धन सिंह रावत का नाम काबीना मंत्री के लिए जाते ही पहली बार विधायक बने सतपाल महाराज को आभास हुआ कि मात्र विधायक रहने के बाद उन्हें चौबट्टाखाल विधानसभा के एक-एक काम के लिए सभी मंत्रियों के दरवाजे पर दस्तक देनी पड़ेगी। आनन-फानन में महाराज ने अपना पुराना फैसला वापस लेते हुए काबीना मंत्री बनने की बात स्वीकार कर ली। चूंकि धन सिंह रावत का नाम महाराज से पहले तय हो चुका था तो आखिर में धन सिंह रावत को काबीना मंत्री की जगह स्वतंत्र प्रभार की जिम्मेदारी दी गई।
पहली बार विधायक बनने वाले धन सिंह रावत वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने छात्र राजनीति में तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का टिकट अजय बिष्ट को नहीं दिया था। अजय बिष्ट निर्दलीय लड़े और बुरी तरह हारे। इस हार के बाद बिष्ट ने हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय की राजनीति छोड़कर गुरु गोरखनाथ की शरण ली। आज वही अजय बिष्ट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
संगठन की दृष्टि से सर्वाधिक भ्रमण और प्रवास में रहने वाले धन सिंह रावत उत्तराखंड सरकार में मंत्री बनने से पहले प्रदेश के संगठन महामंत्री, महामंत्री व उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। दिल्ली, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, बिहार जैसे राज्यों के चुनावों में मुख्य रणनीतिकारों में से एक रहे धन सिंह विधायक बनने से पहले केंद्र के पांच मंत्रियों और बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीनगर में चुनावी रैली करवाकर साबित कर चुके हैं कि उत्तराखंड के संगठन से लेकर अमित शाह और नरेंद्र मोदी की गुड बुक में वे यूं ही शुमार नहीं हैं।
धन सिंह रावत यंू तो कई बार दिल्ली दौरे पर गए, किंतु उत्तराखंड में मंत्री बनने के बाद जब वे दिल्ली गए तो सबसे पहले केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को फोन आया कि वे उत्तराखंड को सौ नए जैनरिक दवा केंद्र और आईआईटी स्तर का एक बड़ा शैक्षणिक संस्थान देने जा रहे हैं। दिल्ली जाकर धन सिंह अनंत कुमार से लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली, प्रकाश जावडेकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जैसे बड़े नेताओं से भी भेंट की।
केंद्र सरकार के मंत्रियों के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल रहे धन सिंह रावत के बारे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण के बाद ही बयान देकर धन सिंह का कद स्पष्ट कर चुके थे। मीडिया ने जब उत्तराखंड की माली हालत और ४५ हजार करोड़ के कर्जे की बात छेड़कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को कुरेदने की कोशिश की तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का एक लाइन का बयान था कि उन्हें बजट की कमी कभी नहीं आएगी, क्योंकि उनके पास धन सिंह रावत है।
उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में श्रीनगर विधानसभा को लेकर तमाम सपने पालने वाले धन सिंह रावत का दावा है कि वो श्रीनगर विधानसभा ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी ऊंचाइयां दिलाएंगे, ताकि उत्तराखंड का युवा पलायन करने के बारे में सोचे भी नहीं। युवाओं को शिक्षा के क्षेत्र में इतना मजबूत किया जाएगा कि बड़ी-बड़ी कंपनियां आकर कैंपस सलेक्शन कर उत्तराखंड की प्रतिभा का चयन करेंगी।
धन सिंह रावत द्वारा सहकारिता विभाग लेने तक श्रीनगर विधानसभा के उनके कई कार्यकर्ताओं ने आश्चर्य जाहिर किया कि आखिरकार जिस विधानसभा में सहकारिता को कोई जानता ही नहीं, वहां इस विभाग से क्या काम होंगे। धन सिंह रावत जानते हैं कि सहकारिता एकमात्र ऐसा विभाग है, जो उनकी विधानसभा के साथ-साथ पूरे प्रदेश में एक ऐसी क्रांति ला सकता है, जिससे न सिर्फ युवा वर्ग, बल्कि मातृशक्ति भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है।
दुग्ध उत्पादन से लेकर दूध की गुणवत्ता सुधारने, दूध के उत्तराखंडी उत्पादों को लांच करने पर टीम धन सिंह रावत गहन काम कर रही है। एक ओर बेरोजगारों को स्वरोजगार से जोडऩे के लिए ऋण लेकर स्वरोजगार शुरू करने को प्रोत्साहित करने की तैयारी है, वहीं दूसरी ओर चुनाव में मातृशक्ति द्वारा मिले अपार जनसमर्थन का कर्जा उन्हें सबल कर चुकाने की रणनीति है, ताकि वे किसी के आगे हाथ न फैलाने पाएं।
मंत्री धन सिंह रावत पहली बार मंत्री बनने के बाद प्रदेशभर के दौरों पर सरकारी कामों के साथ-साथ संगठन की मजबूती पर भी जुटे हुए हैं। धन सिंह रावत से पहली बार तब परिचय हुआ, जब उनके विवाह समारोह की चकाचौंध से श्रीनगर विधानसभा में चर्चा शुरू हुई कि क्या धन सिंह रावत २०१२ में विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। उनसे भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यालय में भेंट हुई तो एक सामान्य पहाड़ी व्यक्ति की भांति बिना किसी लाग-लपेट के धन सिंह का कहना था कि ”चुनाव के बारे में अभी क्या बथानाÓÓ। फिर धन सिंह रावत ने चाय वाले को फोन कर कहा कि दयाशंकर जी, मेरे कार्यालय में तीन गिलास चाय भेज दो। तीन गिलास चाय की बात सुनकर एक बार भी महसूस नहीं हुआ कि धन सिंह रावत भारतीय जनता पार्टी के इतने मजबूत नेता हैं। वही तीन गिलास चाय वाले धन सिंह अब प्रदेश की राजनीति में अपनी धमक के लिए जाने जाने लगे हैं।