मामचन्द शाह//
पूर्व मंत्री ने दबाव डालकर विवादित उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को दिलाया था पर्यटन विकास परिषद की खरीद का ठेका
विजिलेंस ने जांच की तो कमीशन खाने वाले बड़े-बड़े मगरमच्छों का हो सकता है पर्दाफाश
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के पर्यटन मंत्री दिनेश धनै के घोटालों की पोल खुलने लगी है। ताजा मामला पर्यटन विकास परिषद द्वारा की गई खरीद में हुई भारी धांधली से संबंधित है। राज्य सूचना आयुक्त ने इसकी विजिलेंस जांच के लिए मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं।
वर्ष २०१५ में टिहरी झील में पर्यटन को विश्व स्तर पर स्थापित करने के ड्रीम प्रोजेक्ट का सपना संजोने वाली कांग्रेस सरकार के पर्यटन मंत्री दिनेश धनै ने पर्यटन विकास परिषद को नावों व अन्य उपकरणों की खरीद का काम सौंपा।
इस पर पर्यटन विकास परिषद ने उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को कार्यदायी संस्था के रूप में चयनित किया। निगम ने करीब ४ करोड़ रुपए का सामान खरीदकर परिषद को उपलब्ध कराया। इसमें बाज बोट एवं तैरता रेस्टोरेंस की भी खरीद गई। बाज बोट में सवारियों के साथ ही माल को भी ढोया जा सकता है।
हैरानी इस बात की है कि यूपी निर्माण निगम को यह काम बिना योग्यता का ही दे दिया गया। यही नहीं निगम ने तय प्रोक्योरमेंट पॉलिसी का भी पालन नहीं किया। इसके अलावा उपकरणों की खरीद को लेकर कार्यदायी संस्था बनाया गया यूपी निर्माण निगम के पास आवश्यक दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हैं।
जाहिर है कि कमीशन के मोटे खेल में पर्यटन विकास परिषद से लेकर पर्यटन विभाग तक ने मानकों पर खरा न उतरने के बावजूद यूपी निर्माण निगम पर आंखें मूंदकर करोड़ों की बंदरबांट कर दी। यदि ऐसा नहीं होता तो उपकरण व नावें खरीदे जाने के लिए पर्यटन विकास परिषद को उत्त्तराखंड राज्य अधिप्राप्ति नियमावली का अनुपालन किया जाना चाहिए था, किंतु उपकरण व नाव खरीद मामले में उक्त कार्यदायी संस्था के पास कोई विशेषज्ञता ही नहीं है।
इस खरीद के बाद टिहरी झील विकास परिषद को झील में रोजगार देने के लिए पीपीपी मोड में क्षेत्रीय युवाओं को काम देने का कार्य सौंपा गया। इसके लिए बाकायदा टेंडर भी निकाले गए, लेकिन हैरानी तब हुई, जब कोई भी युवा इस काम के लिए आगे नहीं आया। इससे पर्यटन विकास परिषद व पर्यटन विभाग को बड़ी निराशा हाथ लगी। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि एक तो वह प्रोक्योरमेंट पॉलिसी पर खरे नहीं उतर पा रहे थे। दूसरा पर्यटन विभाग द्वारा सामान क्रय करने के बजाय बिना विशेषज्ञता के यूपी निर्माण निगम को दिया जाना मानकों पर खरा न उतरने से जोड़ा गया। इसके अलावा लाइसेंस देने के लिए उनके पास रजिस्ट्रेशन संबंधी आवश्यक दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं थे। इन कारणों से जहां रोजगार के सपने देख रहे क्षेत्रीय युवाओं को भारी निराशा हुई, वहीं प्रतापनगर क्षेत्र के लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
एशिया की सबसे बड़ी झील ‘टिहरी झील’ में जिस ड्रीम प्रोजेक्ट के सपने बुने जा रहे थे, उनको धरातल पर उतारने के लिए दरअसल सुरक्षा की दृष्टि से कई चीजों का ध्यान रखा जाना था, लेकिन कार्यदायी संस्था यूपी निर्माण निगम के पास इन मानकों को जांचने की क्षमता ही नहीं थी और उन्होंने इसकी कोई जांच नहीं की। केवल नाव व उपकररण खरीदकर पर्यटन विकास परिषद को उपलब्ध कराकर भुगतान करा लिया।
दरअसल पर्यटन विकास परिषद पर संदेह के बादल इसलिए भी मंडराते हैं कि अनिवार्यता के बावजूद परिषद के अधिकारियों ने यूपी राजकीय निर्माण निगम लि. से इन नावों सहित उपकरणों की खरीद से संबंधित आवश्यक जानकारी और दस्तावेज भी प्राप्त करने की जरूरत ही महसूस नहीं की।
इस घपले की सत्यता पर मरीन विशेषज्ञ विपुल धस्माना को सूचना आयुक्त सुरेंद्र रावत द्वारा जारी आदेश मिलने के बाद मुहर लग जाती है। धस्माना ने जब उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद, पं. दीनदयाल उपाध्याय पर्यटन भवन गढ़ी कैंट देहरादून के यहां से टिहरी झील के लिए पर्यटन विकास परिषद द्वारा नाव व उपकरण खरीद से संबंधित सूचना मांगी। २६ जुलाई २०१६ के बाद यह अपील आयोग के दरबार में चली गई। जिसमें ८ जून २०१७ को राज्य सूचना आयुक्त सुरेंद्र सिंह रावत ने आदेश जारी कर घोटाले की पुष्टि की। अपने आदेश में सूचना आयुक्त ने भी सवाल उठाया है कि यह खरीद पर्यटन विकास परिषद के माध्यम से ही हो सकती थी, लेकिन परिषद ने इसको स्वयं न करने के बजाय यूपी निर्माण निगम को दे दिया। ऐसे में यह बात गले नहीं उतर रही कि परिषद ने किसी विशेषज्ञ वाली संस्था को खरीद की इतना बड़ा जिम्मा क्यों नहीं सौंपा! सूचना आयुक्त ने विजिलेंस से भी इस घोटाले की जांच कराने के लिए मुख्य सचिव को कहा है। इसके अलावा महालेखाकार को भी मामले से अवगत कराने के लिए कहा गया है।
अब चूंकि प्रदेश में डबल इंजन की सरकार दौडऩे का प्रयास कर रही है और राज्य सूचना आयुक्त ने मुख्य सचिव को मामले से महालेखाकार को जानकारी देने के साथ ही विजिलेंस से तमाम अनियमितताओं की जांच कराने के निर्देश दिए हैं तो अब मुख्य सचिव की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह इस पर क्या और कितनी जल्दी कार्यवाही करते हैं। ऐसे में शासन की यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जीरो टोलरेंस का फरमान सुनाया हो। अगर विजिलेंस से इस घोटाले की निष्पक्ष जांच कराई जाती है तो पर्यटन विकास परिषद के संबंधित अधिकारियों पर इसकी गाज गिरने के साथ ही मोटा कमीशन खाने वाले कई बड़े-बड़े मगरमच्छों का पर्दाफाश हो सकता है।
अब देखना यह है कि पूर्व पर्यटन मंत्री दिनेश धनै के राज में हुए इस घोटाले का जिन्न कब तक बोतल से बाहर आ पाता है!