एक प्रचलित कहावत है कि दूध का जला छांछ भी फूंक-फंूक कर पीता है। ऐसा ही एक वाकया विगत विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के संघ व संगठन समर्थित टिकट के प्रबल दावेदार नेता राजकुमार के साथ हुआ। चुनाव से पूर्व नेता जी ने क्षेत्र में स्वयं को पार्टी के उम्मीदवार के रूप में खूब प्रचारित व प्रसारित किया तथा संघ व संगठन के कार्यकर्ता उनकी ढाल बन चुनावी सभाओं व बैठकों में भीड़ जुटाते व प्रचार करते रहे। इतना सब कुछ करने बाद भी पार्टी हाईकमान ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। नेता जी के टिकट पर कैंची चला कर उनके प्रतिद्वंदी को दे दिया।
निराश पार्टी प्रत्याक्षी राजकुमार ने कांग्रेस पार्टी के पाले में जाकर टिकट हासिल कर चुनाव लड़ा और जीत भी गए। नैया पार लगाने में टिकट काटे जाने से नाराज संघ व संगठन के भाजपा कार्यकर्ताओं की भूमिका ने अहम रोल अदा किया तथा संघ व संगठन के कार्यकर्ताओं ने चुनावी नतीजों से पार्टी हाईकमान को यह एहसास तो करा ही दिया कि उनको नजरअंदाज करना पार्टी की सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। जिसका एहसान भाजपामयी कांग्रेस विधायक वक्त-बेवक्त चुकाना नहीं भूलते। यहां तक कि संघ की गोपनीय बैठक में भी जाते रहते हैं तथा कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ज्यादा भाजपा कार्यकर्ताओं से घिरे रहते हैं। जिससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है। इसके चलते कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने नेताजी से अपनी नाराजगी जाहिर की तो विधायक जी की जुबान फिसल गई और कहने लगे, ‘मैं तो अभी भी 75 प्रतिशत भाजपाई हूं।Ó चलो माननीय नेताजी ने आखिर गुस्से में ही सही, अपनी मन की बात तो कह ही दी।