उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून में प्रशासनिक अधिकारी श्री मुकुल काला का ही बोलबाला
पूर्व में हुए घपले घोटालों को दफनाने हेतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने किया गड़बड़झाला
कुलदीप एस राणा
लम्बे समय से विश्वविद्यालय के विवादित प्रशासनिक अधिकारी मुकुल काला को विश्वविद्यालय प्रशासन ने इनके कार्यकाल में हुए घोटालों को उजागर होने से बचाने एवम उन्हें दफन करने की नीयत से कार्य मुक्त नही किया। जबकि उनके मूल विभाग के निदेशक आर. के कुँवर द्वारा दिनाँक 16 अक्टूबर को उनकी विश्वविद्यालय से प्रतिनियुक्ति समाप्त कर उन्हें मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद पर पदोन्नति करते हुए उप शिक्षा अधिकारी कार्यालय ओखलकांडा नैनीताल में नियुक्त करने का स्पष्ट आदेश दिया था और उन्हें 31 अक्टूबर तक योगदान का निर्देश भी दिया था।
ज्ञात हो कि उक्त विश्वविद्यालय में 4200 के ग्रेड पे का मात्र प्रशासनिक अधिकारी का ही पद सृजित है। जबकि इन महाशय को शुरू से ही 5400 ग्रेड पे वाले वरिष्ठ प्रशासनिक के पद पर नियुक्त कर इतने लम्बे समय से विश्वविद्यालय को भारी वित्तीय क्षति पहुंचाई गई है।
अब तो यह मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हो गये हैं। इसलिये इनको यहां पर किसी भी तरह नही रखा जा सकता है। परन्तु विश्वविद्यालय ने इनके मूल विभाग द्वारा दी गई समय सीमा के आज अंतिम दिन भी इन्हें कार्यमुक्त कर इनके मूल विभाग को इन्हें नहीं लौटाया जाना अपने आप मे ही प्रश्नचिन्ह लगाता है।
काला के कार्यों पर विश्वविद्यालय के दो पूर्व कुलपतियों समेत पूर्व कुलसचिव और दो- दो पूर्व उप कुलसचिव कई गंभीर आरोप लगाते हुए स्पष्टीकरण और प्रतिकूल टिप्पणी कर चुके हैं। यहाँ तक कि पूर्व कुलपति माननीय डॉ. सौदान सिंह ने तो जून 2017 में इनके द्वारा किये गए घोटालों और अनियमित कार्यो से आजिज आकर इन्हें निलंबित कर तत्काल इनके मूल विभाग को लौटाने की कार्यवाही प्रारंभ कर दिया था परन्तु वह इसे अंजाम तक पंहचाते उसके पूर्व ही उन्हें ही उनके मूल विश्वविद्यालय को वापस भेज दिया।
यहां काली कमाई की इतनी मलाई है कि विश्वविद्यालय के अदने कर्मचारियों से लेकर वरीय अधिकारियों तक यहां से कोई भी नहीं जाना चाहता। तबादले की स्थिति में इन महाशय के साथ-साथ सभी अधिकारी किसी कनीय पद पर भी कार्य करने के लिए तैयार हैं। कुछ लोग मजबूरन गये भी तो पुनः कनीय पद पर वापस आ गये, वही हाल इन महोदय का भी है कि अपने सेवा वर्ग के सर्वोच्च पद मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद प्राप्त होने के बावजूद भी यह साहब उसे ठुकरा कर अपने पूर्व पद पर ही बने रहना चाहते हैं। जबकि इन्हें और विश्वविद्यालय प्रशासन को भली भांति यह पता है कि यहां वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का भी पद नही है।
परन्तु इनके समेत विश्वविद्यालय प्रशासन की यह मजबूरी है कि अब तक इनके कार्यकाल में जितने भी घोटाले हुए हैं, उनको दबाने, दफन करने और भविष्य में उन्हें जारी रखने हेतु इनसे परिपक्व अधिकारी और कहां मिलेगा,इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन्हें कार्यमुक्त नही किया।