लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को पदम पुरस्कार दिए जाने के लिए देशभर में पहले उनके प्रशंसकों की पैरवी तेज हो गई है। दिल्ली में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडियों की संस्था एकता मंच तथा कुछ अन्य संगठनों ने सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र सिंह नेगी को पदम श्री दिए जाने के लिए पैरवी तेज कर दी है। आगामी 15 सितंबर पद्म पुरस्कारों के प्रस्ताव राज्य सरकार के पास जमा करने की अंतिम तारीख है। पद्म पुरस्कारों के लिए व्यक्ति स्वयं अथवा उनका कोई चाहने वाला इन पुरस्कारों को दिए जाने के लिए प्रस्ताव दे सकता है ।
नरेंद्र सिंह नेगी उत्तराखंड के जनमानस में बसने वाले लोक गायक हैं तथा डेढ़ दशक से उन्हें लगातार पदम पुरस्कार दिए जाने की मांग उत्तराखंड के लोग करते रहे हैं। प्रथम निर्वाचित सरकार में नारायण दत्त तिवारी को इंगित करके उनके लिखे गए गीत ‘नौछमी नारायण’ के कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार उनसे नाराज हो गई थी।
उसके बाद आई भाजपा सरकार में भी वह ‘अब कथगा खेलो’ जैसे गीतों के कारण सरकार के निशाने पर आ गए थे।
यह आम धारणा है कि जनता के हितों को लेकर गीतों के माध्यम से सत्ता से टकरा जाने के कारण किसी भी सरकार ने पदम श्री के लिए उनकी सिफारिश नहीं की ।वर्तमान सरकार में अब यह माना जा रहा है कि इस बार उन्हें पदम पुरस्कार जरूर मिल जाएगा।
इसका एक कारण तो यह है कि अब पदम पुरस्कार के लिए आवेदन करने की नियमावली में काफी बदलाव हो गया है। इसमें सरकारों की भूमिका थोड़ा सीमित हो गई है।
दूसरा कारण यह है कि नरेंद्र सिंह नेगी फिलहाल सत्तापक्ष के निशाने पर नहीं है ।तीसरा कारण यह है कि नरेंद्र सिंह नेगी को दो माह पहले हार्ट अटैक आने के कारण पूरे उत्तराखंड भर से उनके लिए दुआओं और भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा था। इसे देखते हुए सरकार ने भी एक कदम आगे बढ़कर उनके इलाज में आए हुए खर्च को खुद वहन करने का निर्णय लिया था। यह कयास लगाए जा रहे हैं कि नरेंद्र सिंह नेगी के प्रति उमड़े इस भावनात्मक ज्वार को कैश करने के लिए सरकार इस बार नरेंद्र सिंह नेगी को पदम पुरस्कार दिए जाने के लिए खुद भी आगे आ सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ता गणेश खुशहाल गणी कहते हैं कि नरेंद्र सिंह नेगी को यह पुरस्कार बहुत पहले ही दिए जाने चाहिए थे ।ऐसे व्यक्तित्व को सम्मान मिलने से इस तरह के पुरस्कार का भी वजन बढ़ जाता है।
नरेंद्र सिंह नेगी के पुत्र कविलाश नेगी कहते हैं कि उनके पिता ने कभी भी इस तरह के पुरस्कारों की न तो इच्छा की और ना ही कभी उनके लिए कोई कोशिश की थी। कविलाश कहते हैं कि उनके पिता की स्वास्थ्य कामना के लिए जनता की दुआओं से बड़ा इस दुनिया में कोई भी पुरस्कार नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार पुरुषोत्तम असनोडा कहते हैं, -” हम पहले से ही कह रहे हैं, नरेन्द्रसिंह नेगी पद्म पुरस्कारों पर भारी हैं लेकिन पद्म पुरस्कार देने वाली संस्था ने उन्हें दरकिनार कर अपनी कृपणता ही दिखाई है.”
वरिष्ठ पत्रकार हरीश मैखुरी के शब्दों मे,-” नरेन्द्र सिंह नेगी अपने आप में ही पुरस्कार हैं। पैमाना हैँ। अब जो भी लोक मानस का गायक होगा यातो वो नेगी से कम होगा या बराबर होगा नेगी से अच्छा भी हो सकता है, परन्तु पैमाना नेगी ही रहेगा। नेगी उत्तराखंडी लोकजीवन के सर्वश्रेष्ठ कवि गायक ही नहीं सबसे ज्यादा चर्चित और जन जीवन की जुबां पर चढ़े हुए गायक हैं, जिनके गायन ने गढ़वाली भाषा के मानकीकरण का दुरूह कार्य स्वत: ही कर दिया। वह तुलना करते है कि जिस प्रकार महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार आज तक नहीं मिला उसी तरह से नरेंद्र सिंह नेगी को पद्म पुरस्कार नहीं भी मिला तो इसमें आश्चर्य की क्या बात गांधी और नेगी अपने आप में ही पुरस्कार है”
दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता तथा पत्रकार सुनील जी कहते हैं कि लाखों लोगों द्वारा अनुरोध करने के बाद भी नेगी जी का नाम पदम पुरुष्कार के लिए न भेजना अब तक की सरकारों की गलती है।
मैती आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत कहते हैं कि जो व्यक्ति करोडों लोगो के दिल में जगह पा गया हो । वह तो पद्मम सम्मान से भी कई ऊपर स्थान पा चुके हैं।श्री नरेन्द्र सिंह नेगी भी ऐसा व्यक्तित्व हैं। भावनाओं की बाढ़ जो इस समय लोगों के दिल से निकल रही है वह श्री नेगी जी के महानता को प्रकट करती है।
वरिष्ठ पत्रकार देवसिंह रावत कहते हैं कि सैकडों पदम विभूषणों से बढ़कर है करोड़ों लोगों के दिलों में राज करने वाले नरेन्द्र नेगी। देव सिंह कहते हैं कि दशकों से कालजयी लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखण्डी जनमानस के हृदय सम्राट के साथ सांस्कृतिक व राजनैतिक जनचेतना के मार्ग दर्शक रहे है। ऐसे में देश की तीन दशक की तमाम सरकारों का बौना पन है कि वे भारतीय संस्कृति की उदगमस्थली उत्तराखण्ड के जनमानस के लोकप्रिय ही नहीं हृदय सम्राट नरेन्द्र सिंह नेगी को संकीर्ण दलीय मानसिकता के दुराग्रह से पदमविभूषण पुरस्कार से सम्मानित नहीं कर सके। कुछ लोग नेगी जी को पदम पुरस्कार नहीं मिलने से दुखी हैं। परन्तु वे नहीं जानते यह पुरस्कार कोई निष्पक्ष व्यवस्था नहीं। संकीर्ण राजनैतिक स्वार्थो में अंधी राजनैतिक दलों की सरकारें अपने दलीय हितों के नजरिये से प्रदान करती हें। नेगी जी ने प्रदेश के हितों को रौंदने वालों पर कुठाराघात किया। उनको बेनकाब किया। इसलिए ये राजनैतिक दल व उनके चम्पू नेगी जी को फूटी आंख से देखना भी पसंद नहीं करते। देश सिंह रावत एक कहते हैं कि नेगी जी केवल लोकप्रिय गायक ही नहीं अपितु पथभ्रष्ट राजनीति द्वारा पतन के गर्त में धकेले जनमानस को सही दिशा बताने वाले मार्ग दर्शक भी हैं। इसलिए नेगी के लोकप्रिय गीतों से जनता के समक्ष बेनकाब हो कर सत्ताच्युत हुए नेता कैसे ऐसे जनहितों के रक्षक को सम्मानित करे जो उनको ही बेनकाब करता है। इसलिए जनहितों को रौंदने वाले नेताओं से आशा नहीं रखनी चाहिए कि वे उनको बेनकाब करने वाले को सम्मानित करेंगे। नेगी जी लाखों लाख लोगों के दिलों में राज करते है। जो सम्मान नेगी जी के लिए जनता के दिलों में है वह सरकार या राजनेताओं को सपने में भी नहीं मिल सकता।