लोक विशेषज्ञ डॉ. शेर सिंह पांगती नहीं रहे। स्वर्गीय श्री पांगती पर कुछ जानकारी :
जगमोहन रौतेला
कुमाऊँ के लोक कला के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डा० शेर सिंह पांगती का आज 24 अक्टूबर 2017 को देहरादून में निधन हो गया है। डा० पांगती ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से जोहार संस्कृति के उन्नयन , संवर्धन और संरक्षण के लिये अतुलनीय कार्य किया था।
उन्होंने मुन्स्यारी में जोहार घाटी की संस्कृति पर आधारित संग्रहालय ” ट्राइवल हेरीटेज म्यूजियम ” भी बनाया था . उन्होंने हिन्दी व अंग्रेजी में विभिन्न विषयों यथा स्थानीय इतिहास , भूगोल , संस्कृति , साहित्य और यात्रा संस्मरण सम्बंधी 16 पुस्तकें भी लिखी थी .
डॉ. पांगती का जन्म 1 फरवरी 1937 को मुनस्यारी में हुआ था . उन्होंने इतिहास में एमए और पीएचडी की . वे 35 वर्षों तक सीमान्त के विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन कार्य से जुड़े रहे .
उनकी विभिन्न विषयों पर लिखी पुस्तकों में जोहार के स्वर , मध्य हिमालय की भोटिया जनजाति , एक स्वतंत्रता का जीवन संघर्ष , मुनस्यारी लोक और साहित्य , लोक गाथाओं का मंचन , वास्तुकला के विविध आयाम , राजुला मालूशाही : एक समालोचनात्मक अध्ययन , अभिलेखों का अभिलेखीकरण , कैलाश ए बोथ ऑफ लॉड शिवा , न्यूजीलैंड : द कन्ट्री ऑफ फ्लाइटलेस , मुनस्यारी ए जैम इन द इंडियन हिमालया , फसक – फराल , जोहार ज्ञान कोश , हॉट टूरिस्टिक ऑफ कज्जाख बन्डितस बाई ए जोहरी ट्रेडर्स 1949 , राम चरित अभिनय और गौरी घाटी में ऊन उद्योग प्रमुख हैं .
लोकसंस्कृति के एक पुरोधा डॉ. शेर सिंह पांगती का जाना उत्तराखण्ड के समय , समाज और संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है . उन्हें भावपूर्ण नमन !