कृष्णा बिष्ट/हल्द्वानी
वन विभाग किस प्रकार आम जनता का मानसिक उत्पीड़न करता है, इसका एक छोटा सा नमूना सामने तब आया जब, बगैर जाँच पड़ताल के हल्द्वानी, निवासी श्रीमती. लीला देवी को प्रभागीय वनधिकारी, रामनगर के द्वारा नोटिस भेज दिया गया। लीला देवी को प्राप्त नोटिस के मुताबिक उनकी मोटर साइकिल 22 दिसम्बर 2015 मे वन विभाग द्वारा अधिग्रहित की गई थी, जिसके लिए लीला देवी को 28 अक्टूबर 2017 को पेश होने को कहा गया था। किन्तु यहाँ पेच यह है कि लीला देवी के जिस वाहन को वनविभाग द्वारा अधिग्रहित करने का दावा नोटिस मे किया गया है, वह वाहन मोटर साइकिल नहीं बल्कि सूजुकी कंपनी की स्कूटी है और वह भी उनके घर पर सुरक्षित खड़ी है। तो वन विभाग कैसे लीला देवी की मोटर साइकिल को अधिग्रहित करने का दावा नोटिस मे कर रहा है!
एक सामान्य माध्यम वर्गीय परिवार की महिला होने के कारण नोटिस प्राप्त होने के बाद से श्रीमती लीला देवी का पूरा परिवार काफ़ी डरा हुआ है, कि कहीं वन विभाग उन पर कोई झूठा मुक़दमा दायर कर उनको कोर्ट-कचहरी के चक्कर मे न डाल दे।
पहले भी वन विभाग अपनी इस प्रकार की विवादित कार्यशैली के लिए खूब सुर्खियां बटोर चुका है। देहरादून, के RTI एक्टिविस्ट अमर सिंह धुंता ने वन निगम से सूचनाएं मांगी तो वन निगम को सूचना देना इतना नागवार गुज़रा कि अमर सिंह धुंता को विभाग का पूर्व कर्मचारी बता इस पर कार्रवाई करने के लिए शासन को रिपोर्ट भेज दी। जबकि अमर सिंह कभी भी वनविभाग के कर्मचारी नहीं रहे।
ये दोनों ही प्रकरण सिद्ध करते हैं कि वनविभाग न जाने किस खुमारी मे रहता है।
यहां के कई अधिकारी वन विभाग को पिकनिक स्पॉट से अधिक कुछ नही समझते। कई स्थानों पर तो विभाग के ही अधिकारी व कर्मचारी का ध्यान अपने फायदे के लिए लिये वनसंपदा के दोहन पर ही केन्द्रित है। यदा-कदा अगर किसी अधिकारी की दिखावे को जाँच हो भी जाये तो जाँच रिपोर्ट शासन मे दबी रहती है।
रामनगर की डीएफओ नेहा वर्मा कहती हैं कि ये जाँच का विषय है, कि नोटिस मे लीला देवी का नाम कैसे चढ़ा! वह कहती है कि लीला देवी वन विभाग को पत्र दे दे कि उनका नाम गलत चढ़ा है, तो उनका नाम सूची से हट जाएगा ।