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वर्दी में भेदभाव

June 1, 2017
in पर्वतजन
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मुख्य सचिव तथा अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के कार्यालय में होमगार्ड और पीआरडी से आउटसोर्स के माध्यम से तैनात जवानों के लिए नीली वर्दी तथा अन्य सभी के लिए खाकी वर्दी की व्यवस्था से जवानों में आशंका और आक्रोश

पर्वतजन ब्यूरो

सचिवालय में तैनात होमगार्ड और पीआरडी के जवानों को वर्दी अनिवार्य किए जाने के बाद इन जवानों के मन में यह आशंका घर करने लगी है कि कहीं इन्हें बाहर का रास्ता तो नहीं दिखा दिया जाएगा! विगत १६ वर्षों से सचिवालय में तैनात होमगार्ड और पीआरडी के ये जवान वर्दी अनिवार्य किए जाने के बाद से नौकरी जाने का डर भी पाले बैठे हैं।
इसके अलावा मुख्य सचिव तथा अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने अपने कार्यालयों में तैनात परिचारक का काम करने वाले होमगार्डों के लिए नीली ड्रेस की व्यवस्था की हुई है, किंतु अन्य होमगार्डों के लिए फरमान जारी कर दिया है कि वे खाकी ड्रेस ही पहनेंगे। इसे अपने साथ भेदभाव मानते हुए जवानों में आशंकाओं के बादल और घने हो गए हैं।
जब अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश से दोहरी वर्दी के विषय में पूछा गया तो वह सफेद झूठ बोल गए कि ऐसा आदेश नहीं है। उन्होंने अपने पैसे से नीली वर्दी बनाई है, जबकि सभी होमागार्ड पीआरडी के जवानों के लिए खाकी वर्दी अनिवार्य है, लेकिन मुख्य सचिव रामास्वामी तथा ओमप्रकाश ने इसमें भी मनमानी से अपने परिचारकों को नीली वर्दी दिलाई है। शेष अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह सहित अन्य सभी जगह खाकी वर्दी लागू कर दी गई है।
सचिवालय में होमगार्ड से ही ३०४ जवान तैनात हैं। इन जवानों से लगभग सभी तरह के कार्य लिए जाते हैं। इन जवानों से चाय-पानी पिलवाने से लेकर फाइल ढोने तथा सामान्य सुरक्षा संबंधी कार्य भी लिए जाते हैं।
आने वाले कुछ समय में ही यह सुगबुगाहट है कि सचिवालय में परिचारकों की भर्तियां होने वाली हैं। यदि परिचारकों के पद पर नई भर्तियां होती हैं तो इस काम को देख रहे जवानों की छुट्टी होना तय है।
वर्तमान में सचिवालय में तैनात इन जवानों की ड्यूटी रोटेशन के आधार पर लगाए जाने की बात हो रही है। अर्थात हर तीन महीने बाद ड्यूटी करने वाले जवानों को बदलकर नए जवानों की ड्यूटी लगाई जाएगी। इसका विरोध कर रहे कुछ जवान कहते हैं कि नए जवानों की ड्यूटी लगाए जाने पर उन्हें एक-दो महीने तो काम समझने में ही लग जाएंगे और जब तक वह सचिवालय का कामकाज और विभागों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, तब तक उनकी ड्यूटी फिर से बदल दी जाएगी। इससे सचिवालय का कामकाज प्रभावित होगा।
सचिवालय प्रशासन के प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने सभी विभागों को पत्र लिखकर आदेश दिया था कि होमगार्ड और पीआरडी के जवान वर्दी पहनकर ही ड्यूटी करेंगे। इन जवानों पर शासन नए-नए प्रयोग करता रहता है, किंतु जब सवाल इन्हें वाजिब छुट्टियां और वेतन दिए जाने का आता है तो श्रम विभाग से लेकर गृह और सचिवालय प्रशासन तक के आला अफसर चुप्पी साध जाते हैं। कुछ समय पहले हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए थे कि होमगार्ड्स को भी पुलिस के समान ही वेतन भत्ता दिया जाए। प्रदेश में विभिन्न विभागों में तैनात ६ हजार से अधिक होमगार्ड को अभी प्रतिदिन ४०० रुपए वेतन दिया जा रहा है। हाईकोर्ट के आदेश लागू होने पर इन्हें प्रतिदिन ७०० रुपए के हिसाब से वेतन दिया जाएगा। इससे सरकार पर ५ करोड़ रुपए प्रतिमाह अतिरिक्त देय होगा। आखिर ये जवान भी उत्तराखंड के ही हैं और जब इन जवानों से सरकार हाड़तोड़ काम ले रही है तो वेतन देते समय कल्याणकारी सरकार शोषण करने वाली सरकार में बदल जाती है।
एक तथ्य यह भी है कि होमगार्ड और पीआरडी के माध्यम से राजभवन में तैनात आउटसोर्स जवानों को तत्कालीन राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला से राजभवन में ही स्थायी नियुक्ति दे दी थी। सवाल यह है कि जब राजभवन इन जवानों को एक साल से भी कम समय में आउटसोर्स की तैनाती के बाद अपने यहां स्थायी नियुक्ति दे सकता है तो यही नियम सचिवालय में १६ वर्षों से तैनात जवानों पर लागू क्यों नहीं हो सकता?
मुख्य सचिव एस. रामास्वामी भी सचिवालय में तैनात होमगार्डों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। रामास्वामी ने ९ मार्च को प्रमुख सचिव गृह को पत्र लिखा था कि वर्ष २००२ से निरंतर सचिवालय में तैनात होमगार्डों को हटाया नहीं जाना चाहिए और उनका वेतन होमगार्ड विभाग के माध्यम से दिए जाने के बजाय सीधे सचिवालय में उनका खाता खुलवाकर सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा होमगार्ड के खाते में डाल दिया जाना चाहिए।
लंबे समय से सचिवालय में तैनात होमगार्ड सचिवालय में रिक्त अनुसेवकों के पदों के सापेक्ष संविलयन की मांग करते आ रहे हैं, किंतु इनका संविलयन करने के बजाय वर्दी अनिवार्य किए जाने और रोटेशन पर ड्यूटी लगाए जाने के कारण होमगार्डों की यह मांग कमजोर पड़ जाएगी। इससे नई सरकार को यह अवसर मिल जाएगा कि वह होमगार्डों को बाहर कर अपने चहेते लोगों को फिर से सचिवालय में अनुसेवक के पद पर भर्ती करने का अवसर प्राप्त कर लेगी। हालांकि होमगार्ड विभाग का अपना तर्क यह है कि होमगार्ड अधिनियम के अंतर्गत होमगार्डों से साफ-सफाई, चाय-पानी का काम नहीं लिया जा सकता और सचिवालय में नियमित ड्यूटी होने के कारण नियमित अंतराल पर आयोजित होने वाले विभागीय प्रशिक्षण भी सचिवालय में तैनात होमगार्डों को नहीं दिए जा रहे हैं।
अधिनियम भले ही अपनी जगह सही हो, किंतु होमगार्ड विभाग को भी चाहिए था कि वह शुरू से ही अन्य विभागों की तरह सचिवालय में भी मासिक रोटेशन के आधार पर ड्यूटी लगाना सुनिश्चित करता। १६ वर्ष बाद इस तरह की कार्यवाही से ज्यादा बेहतर यही होगा कि इन्हें होमगार्ड विभाग से पृथक कर सचिवालय में ही संविलयित कर दिया जाए तथा आगे से ऐसा न हो, इसका ध्यान रखा जाए।


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