आयुर्वेद विश्वविद्यालय में चहेतों की नियुक्ति के लिए कई बार मानक बदले गए।
हर बार नए विज्ञापन निकाले गए लेकिन हर बार आवेदकों के आवेदन शुल्क पचाकर चहेतों को ही नियुक्ति दी विश्वविद्यालय ने!!
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्विद्यालय के विज्ञापित 292 पद ,भ्रस्टाचार बंदरबांट और छलावा।।
योग्य करते रहेंगे इंतजार और चहेते पा जाएंगे रोजगार।
उत्तराखंड राज्य को बनाने के पीछे मूल अवधारणा प्रदेश के निवासियों को रोजगार का अवसर, भ्रस्टाचारमुक्त एवं पारदर्शी शासन व्यवस्था देना था,लेकिन ऐसी कारस्तानियो से यह शायद ही पूरी हो पाए।
उत्तराखंण्ड आयुर्वेद विश्विद्यालय इसका सबसे बड़ा नमूना है।सरकारें चाहे बीजेपी की रही हो या कांग्रेस की, इस विश्वविद्यालय की जड़ों में भ्रस्टाचार सदा से व्याप्त होने की खबरें पूर्व से ही मीडिया की सुर्खियों में रही है।इस विश्विद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ मृत्यंजय मिश्रा जो कि चतुर चपल खिलाड़ी के रूप में विख्यात रहे हैं उन्होंने नींव ही कुछ ऐसी डाली कि आज भी इस विश्विद्यालय में उन्ही का सिक्का चलता है ।
कहने को कार्यवाहक कुलसचिव डॉ अनूप गक्खड़ और कार्यवाहक कुलपति डॉ अरुण कुमार त्रिपाठी हैं पर कार्यप्रणाली से ऐसा लगता है कि दोनों पूर्व के कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा के कार्यो का वाहन कर रहे हैं।
आज से 3 साल पूर्व 22 दिसंबर 2014 को कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा ने उत्तराखंड आयुर्वेद विश्विद्यालय के परिसरों के लिए फेकल्टी हेतु 1430/UAU/RECRUITMENT/CAMPUS/2014-15 विज्ञापन से फेकल्टी (प्रोफेसर,रीडर और लेक्चरर)रिक्रूटमेंट का विज्ञापन यूनिवरसिटी की वेबसाइट पर अपलोड किया।लेकिन ठीक 5 महीने बाद यानि 30 मई 2015 को शासन के पत्र 1298/XXX(2)/2013-3(1)2006 दिनांक 30-12-2006 का हवाला देते हुए इसे संशोधित कर दिया। यह इस विज्ञापन में पहला संशोधन था।इन सभी पदों पर एक जैसे यूजीसी के मानक लगाए गए थे तथा अभ्यर्थियों से 1500 रुपये का ड्राफ्ट वसूला गया था।
अब कहानी आगे बढ़ती है, यह विज्ञापन भी कई दिनों तक विवादों में रहा एवं देहरादून के विभिन्न केंद्रों में स्क्रीनिंग परीक्षा आयोजित कराकर रिजल्ट डिक्लेयर कर पुनः बिना कारण बताए इस विज्ञापन को निरस्त कर दिया गया और आवेदकों के ड्राफ्ट भी नही वापिस किये गए।
बाद में पदों को संविदा नियुक्ति से भर लिया गया।कहानी यही खत्म नही होती,फिर डॉ मृत्यंजय मिश्रा ने इन पदों पर भरने की योजना तत्कालीन सरकार के मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी के चुनावी संभावित लाभ को देखते हुए विज्ञापन 3596/ऊआवि/अधि/2016-17,31 दिसंबर 2016 के माध्यम बनाई, इसके लिये पुनः विज्ञापन को वेबसाइट के पटल पर जीवित कर दिया।इस विज्ञापन में एसिस्टेंट प्रोफेसर के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 45 वर्ष एवं एसोसिएट तथा प्रोफेसर के लिए कोई न्यूनतम उम्र सीमा नही रखी गई तथा सारे पदों के लिए मानक एक जैसे यूजीसी के रखे गए।
फीजियोथेरेपी के लिए विशेष एमपीटी और शासकीय कार्यानुभव का अधिमान अलग से जोड़ा गया तथा आयुर्वेद चिकित्साधिकारी के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद या किसी भी राज्य के चिकित्सा परिषद से पंजीयन आवश्यक सहित क्लिनिकल सब्जेक्ट में एमडी को अधिमान देना लिखा गया ।यह विज्ञप्ति काफी विवादों में रही और आगे चलकर एक बार राज्यपाल के आदेश से इसपर रोक लगी ,फिर इसे तत्कालीन डेप्यूटी रजिस्ट्रार डॉ आलोक श्रीवास्तव ने पुनर्जीवित किया और कुछ दिनों के बाद विपक्ष में बैठी भाजपा के चुनावी आचार संहिता का हवाला देने के कारण ये पूरी तरह से मृत हो गई।इसकी पूरे भारत से आये आवेदकों को कोई सूचना भी नही दी गई,नही ड्राफ्ट की रकम लौटाई गई।इससे विश्विद्यालय के विज्ञापन की छवि महज ड्राफ्ट उगाही करने तक सीमित होकर रह गयी।
अब निजाम बदला पर डॉ मृत्युंजय मिश्रा का सिक्का जस का तस ही रहा और पुनः उन्ही के नक्शे कदम के कार्य का वाहन करने वाले कार्यवाहक कुलसचिव डॉ अनूप गक्खड़ ने कार्यो का वाहन करनेवाले कुलपति की सहमति से बिना रूल्स एवं रेगुलशन बनाये और विश्विद्यालय की एक्जक्यूटिव काउंसिल (जो जनवरी 2017 में ही संमाप्त हो गई थी) में पास कराये फिर से एक नया विज्ञापन 1212/ऊ आवि/अधि/2016-17 दिनांक 22 जुलाई 2017 को प्रकट हुआ, जिसमें फीजियोथेरेपी के पद को शामिल नही किया गया था तथा एसिस्टेंट प्रोफेसर की न्यूनतम उम्रसीमा 40वर्ष एसोसिएट प्रोफेसर की उम्र सीमा 45 वर्ष और प्रोफेसर की उम्रसीमा 50 वर्ष रख दी गई थी।काय चिकित्सा में प्रोफेसर के पद को आरक्षित कोटे में डाल दिया गया था तथा कुछ अन्य विषयों में आरक्षण के रोस्टर लगाने से पद आरक्षण के दायरे में आ गए थे।अब विश्विद्यालय की इस नियुक्ति के विज्ञापन का प्रचार होते ही बवाल शुरू हो गया।
पहला बवाल तो विश्विद्यालय के ही एक प्रोफेसर ने काटा, जिसकी बीबी 50 वर्ष की उम्रसीमा को पार कर जाने के कारण आवेदन करने से ही बाहर हो गई थी,दूसरा बवाल गुरूकल के संविदा पर कार्य कर रहे प्रोफेसर ने ये कहते हुए काटा कि यदि मेरी पोस्ट को सामान्य नही किया गया तो मैं विश्वविद्यालय के सारे फर्जीबाड़े की पोल खोल दूंगा।
इसके अलावा बवाल संविदा पर कार्य कर रहे एसिस्टेंट प्रोफेसरों ने भी काटा तथा धमकाना शुरू किया ताकि उनके पद भी आ जाएं ।लेकिन इसी बवाल में उत्तराखंड के आयुर्वेदिक चिंकित्साधिकारी पद की उम्र सीमा 35 वर्ष के दायरे में आने से आवेदन से वंचित भी आ गए।
यह बवाल तब और बढा जब उत्तराखंड के वरिष्ठ नौकरशाह रामास्वामी के कान खड़े हुए कि उपनल के माध्यम से यूनिवर्सिटी में कार्य कर रहा उनका सुपुत्र हर्षवर्धन स्वामी तो विज्ञापन में है ही नही।
अब विश्विद्यालय प्रशासन पर दवाब का स्तर सीमा को लांघ चुका था।प्रोफेसर भी अपनी बीबी के लिये उम्र बढ़ाये जाने को जोर आजमाइश कर रहा था ,संविदा पर कार्य कर रहा प्रोफेसर भी लगातार विश्वविद्यालय की पोल खोलने की धमकी दिए जा रहा था और बाकी के संविदा लेक्चर भी क्यों चूकते! उनका भी दवाब लग रहा था। मेडिकल आफीसर्स के पद पर उम्रसीमा के दायरे में आये आवेदक भी कहाँ चुकने वाले थे, उन्होंने भी जोर आजमाइश शुरू कर दी थी।
इसका निष्कर्ष ये निकला कि विश्वविद्यालय ने एक पखवाड़े के भीतर ही 5 अगस्त 2017 को नया संशोधित विज्ञापन 1384/ऊ आ वि/अधि/2017 जारी कर दिया।गौर करने की बात है दोनों विज्ञापन के पत्र संख्या में अंतर है यानि बिना पूर्व के विज्ञापन को कैंसल किये ही नया संशोधित विज्ञापन जारी कर दिया गया।इस विज्ञापन को पास करने को बनी समिति का सदस्य ने भी अपनी पत्नी के लिए उम्र सीमा के बदलाव के कारण आवेदक बनने से तसल्ली प्राप्त कर ली।संविदा पर कार्य कर रहा प्रोफेसर भी पोल खोलने की जगह परमानेंटली सेटल होने की जुगाड़ में लग गया और बाकी संविदा के मेडिकल आफीसर्स पद के आवेदक भी उम्र सीमा बढ़ने से खुश हो सेटिंग के आयोजन में लग लिये।
सबसे बड़ी राहत तो नौकरशाह रामास्वामी को अपने विकलांग पुत्र हर्षवर्धन स्वामी के लिए मिली जो एमपीटी और शासकीय सेवा में भी उपनल से कार्य कर रहा है ।उसकी नौकरी तो पक्की हो ही गयी।
अब बड़ा सवाल यह है कि जब वेतन यूजीसी के सारे शैक्षणिक पदों को दिया जाना है तो आयुर्वेद के विषयों को मानक से वंचित क्यों किया गया ? जबकि अन्य बायोटेक्नॉलजी,फ़ायटोकेमेस्ट्री,आयुर्वेदिक एवं ह्यूमन बायलाॅजी पर यूजीसी के मानक लगाए? जब पहले आरक्षण का रोस्टर सही था तो बाद में गलत कैसे हो गया?फीजियोथेरेपी के पद के लिये विशेष अधिमान क्यों अन्य पदों के लिए क्यों नही?
रेडोयोलॉजिस्ट, पैथोलोजिस्ट एनस्थेटिस्ट जैसे स्पेशयलिष्ट केडर के पदों पर आयुर्वेदिक चिंकित्साधिकारी के समान वेतनमान फिर कौन मिलेगा इन पदों पर? रेडीयोलजिस्ट आयुर्वेद नाम की डिग्री पूरी दुनिया के किसी देश मे मान्यता प्राप्त नही और ‘”पीएनडीटी एक्ट” के तहत गैरक़ानूनी है फिर किस के लिये निकाला यह रेडियोलाजिस्ट आयुर्वेद का पद?आरक्षण रोस्टर में बदलाव से अन्य पदों के सामान्य श्रेणी के आवेदक क्या नही होंगे वंचित जिन्होंने पूर्व में 2015 एवं 2016 में आवेदन किया था?
उम्रसीमा में बदलाव में यूजीसी के मानक नही अपनाने से पूर्व में 2015 एवं 2016 में आवेदन करने वाले कई आवेदक वंचित हो गये।
ये उत्तराखंण्ड आयुर्वेद विश्विद्यालय के नियुक्ति के विज्ञापन है या चार लोगों के द्वारा घर बैठे की गई खेती!
पूर्व की तरह ही इन विज्ञप्तियों में खेल जारी है।निजाम बदला पर चाल नही बदली।भ्रस्टाचार पर जीरो टोलरेंस का नारा देने वाली सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री जी के विधानसभा के ही डोईवाला क्षेत्र में 292 पदों के लिए आई नियुक्ति के विज्ञापन में खेल जारी है! तो जीरो टोलरेंस फटा ढोल किसे सुनाने के लिए पीटा जा रहा है!!
प्रिय पाठकों! चहेतों की नियुक्तियों के इस शातिर गठजोड़ का खुलासा बेहद मेहनत से आपको जागरूक करने के लिए किया गया है।यदि आपको यह खोजखबर पसंद आई तो हमारा आपसे भी अनुरोध है कि इसे अधिक से अधिक शेयर कीजिये ! हमारी हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया।