भूपेंद्र कुमार/देहरादून
धर्मेंद्र काला देहरादून के समाजसेवी हैं तथा रूटीन में ब्लड डोनेट करते रहते हैं।पेशे से अधिवक्ता धर्मेंद्र काला हर साल अपना पूरा चेकअप कराते रहते हैं। पिछले साल 21 दिसंबर 2015 को अपने रुटीन चेकअप के लिए चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर मे गए।43 वर्षीय धर्मेंद्र काला की सभी जांच सामान्य थी।
इसी तरह से श्री काला ने रुटीन चेकअप के तहत 3 अक्टूबर 2017 को भी अपना रूटीन चेकअप करवाया इसमें भी उनकी सभी जांच रिपोर्ट नॉर्मल थी। अचानक उनकी नजर ब्लड ग्रुप तथा आर एच फैक्टर वाले कॉलम पर पड़ी। यहां पर उनका ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव दर्शाया गया था। अब धर्मेंद्र काला चक्कर में पड़ गए।
उन्होंने दिसंबर 2015 की रिपोर्ट में अपना ब्लड ग्रुप चेक किया तो उसमें उनका ब्लड ग्रुप ए नेगेटिव प्रिंट था। आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने अपने दोनों रूटीन चेकअप चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर में ही कर आए थे तो फिर सवाल यह था कि एक ही व्यक्ति के एक साल के अंतराल में ब्लड ग्रुप कैसे बदल गया!
वह दोनों रिपोर्ट लेकर चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर गए तो सेंटर के कर्मचारी कुछ भी कहने से कतराते रहे। और उन्हें यह कहकर चलता कर दिया कि अभी कोई आपसे बात करने के लिए अधिकृत डॉक्टर यहां पर मौजूद नहीं है।उन्होंने कहा कि जैसे ही कोई आएंगे तो उनकी मुलाकात करा दी जाएगी।
हैरान परेशान धर्मेंद्र काला घर लौट आए। श्री काला कई बार इमरजेंसी होने पर भी ब्लड डोनेट करा चुके हैं। यदि इस रिपोर्ट के आधार पर वह किसी जरूरतमंद को ब्लड डोनेट कर देते तो उसकी जान शर्तिया खतरे में पड़ सकती थी। श्री काला को जब चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर से संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो उन्होंने पर्वतजन से संपर्क किया। इस संवाददाता ने जब चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर की MD पैथोलॉजी डॉक्टर रितु कालिया से फोन पर बात की तो उनका कहना था कि उनके डायग्नोस्टिक सेंटर में एडवांस मशीनें नहीं है, इसलिए कभी ऐसी दिक्कत भी आ सकती है। उन्होंने आगे की जांच के लिए आईएमए ब्लड बैंक जाने का सुझाव देते हुए पल्ला झाड़ लिया। सवाल यह है कि देहरादून के तमाम क्लीनिक कमीशन के चक्कर में मरीजों को चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर से पैथोलॉजी जांच कराने का दबाव डालते हैं। ऐसे में इन पैथोलॉजी सेंटर की जवाबदेही तय करने के लिए प्रशासन के पास पुख्ता प्रबंध नहीं है। न ही मुख्य चिकित्साअधिकारी अथवा स्वास्थ्य विभाग के स्तर से इन पैथोलॉजी सेंटर की नियमित निरीक्षण अथवा जांच की जाती है।
जिसके कारण यह सेंटर घटिया कर्मचारियों और सस्ते उपकरणों से जांच करके मरीजों की जान से खेल रहे हैं।
सवाल यह है कि जब किसी पेशेंट का ब्लड ग्रुप ही ढंग से नहीं चिन्हित किया जाएगा तो डॉक्टर उसकी बीमारी को किस तरह से डायग्नोज करेगा। इस छोटे से उदाहरण से इस बात की आशंका और गहरा जाती है कि अन्य गंभीर बीमारियों के डायग्नोज के दौरान ऐसे सेंटरों की डायग्नोसिस पर कितना भरोसा किया जाए! जाहिर है कि स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण ऐसे सेंटर सस्ते उपकरणों और सस्ते अनक्वालिफाइड कर्मचारियों के भरोसे मरीजों की जान से महंगा खिलवाड़ कर रहे हैं।
जब देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर तारा चंद्र पंत से इस विषय में बात की गई तो वह यह सुनते ही चौंक गए। उन्होंने कहा कि वह कल ही चंदन डायग्नोस्टिक सेंटर की विस्तृत जांच के आदेश करवा देंगे। साथ ही उन्होंने इस लापरवाही पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा भी दिया।