मामचन्द शाह//
फिर पहाड़ी द्वारा छले गए पहाड़ी,
घोषणाओं के घपले
15 अगस्त 2017 को जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश को संबोधित कर रहे थे तो प्रदेशभर के लोग उनसे भारी आशाएं, अपेक्षाएं लगा रहे थे कि इस बार ६ वर्ष पुरानी घोषणा वे जरूर पूरा करेंगे, किंतु उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की घोषणाओं का इतिहास बहुत ही हृदय विदारक है या कहें कि मुख्यमंत्री की घोषणाओं का उत्तराखंड में सम्मान ही नहीं किया जाता। १५ अगस्त २०११ को देहरादून के परेड ग्राउंड से प्रदेश को संबोधित करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने एक बड़ी घोषणा की और अगले दिन के अखबारों में निशंक उत्तराखंड के सबसे बड़े हीरो के रूप में दिखाई दिए। तब सोशल मीडिया का इतना ज्यादा बाजार नहीं था, किंतु तब भी निशंक के उस फैसले को लोगों ने सर आंखों पर बिठाया।
निशंक ने घोषणा की कि वे यमुनोत्री, कोटद्वार, डीडीहाट और रानीखेत को जिला बनाने की घोषणा करते हैं। निशंक की इस घोषणा के बाद पहाड़ में जमकर ढोल-बाजे भी बजे, पटाखे फोड़े गए और पहाड़ निशंक को धन्यवाद देने वाले बैनर-पोस्टरों से पट गया। भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने इन चार जिलों के निर्माण की घोषणा पर पूरे प्रदेश में माहौल बनाने की कोशिश की कि भारतीय जनता पार्टी पहाड़ और मैदान को समान रूप से तवज्जो देती है और राज्य निर्माण के निर्माण स्थायी राजधानी के दंश को झेल रही भाजपा ने कुछ हद तक उस पर मरहम लगाने का काम भी किया।
जिलों की घोषणा के एक महीने के भीतर निशंक की मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई और उनके द्वारा चार जिलों की घोषणा को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। उनके बाद मुख्यमंत्री बने भुवनचंद्र खंडूड़ी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत किसी ने भी रमेश पोखरियाल निशंक की चार जिलों की घोषणा की फाइल को खोलने की भी कोशिश नहीं की।
रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद उत्तराखंड में बहुत सारी तहसीलें बनी, नगर पालिकाओं को नगर निगम बनाया गया, नगर पंचायतों को नगरपालिका बनाया गया, गांवों को नगर पंचायत बनाया गया, किंतु निशंक की उन घोषणाओं पर स्वयं निशंक का भी मौन धारण कर लेना बताता है कि वास्तव में उन्होंने वह घोषणाएं 2012 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए की थी, अन्यथा सांसद बनने के बाद डबल इंजन की सरकार में वे कभी तो अपनी घोषणाओं पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों को घेरते!