सहारनपुर के एक कार्यक्रम में 20 फरवरी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाने पर खासा जोर दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सहारनपुर से उत्तराखंड का काफी सामाजिक और व्यापारिक रिश्ता रहा है। मुख्यमंत्री ने अपने दिल की बात कही बल्कि यह उजागर कर दिया कि वह पहले से ही सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाने की मांग करते रहे हैं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पहले तो सहारनपुर के लोग उत्तराखंड में मिलाए जाने के विरोध में थे लेकिन अब सहारनपुर की काफी सामाजिक संस्थाएं और संगठन सहारनपुर को उत्तराखंड में शामिल करने की मांग करने लगे हैं, इसलिए अब सहारनपुर को उत्तराखंड में मिला दिया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस बयान से न सिर्फ भाजपा का असली चेहरा बेनकाब हो गया है बल्कि इसका दूरगामी परिणाम यह भी होगा कि गैरसैंण राजधानी बनाए जाने की संभावना और भी अधिक धूमिल हो जाएगी।
हरिद्वार, देहरादून और उधम सिंह नगर जैसे मैदानी क्षेत्रों में पार्टी के बढ़ते जनाधार से उत्साहित मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को संभवत: साफ लगने लगा है कि पलायन और परिसीमन के बाद पहाड़ की बात करना राजनीतिक रुप से नुकसानदेह हो सकता है।
इसलिए उनको वोट बैंक के चक्कर में कभी पहाड़ विरोधी रहे सहारनपुर सरीखे क्षेत्रों को भी उत्तराखंड में मिलाने से कोई गुरेज नहीं नजर आता।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सहारनपुर के बेहट रोड पर बालाजी धाम के वार्षिक समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में पधारे हुए थे।
सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री और मुख्य अतिथि की हैसियत से त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह बयान काफी गूढ़ अर्थ समेटे हुए है। इसके पीछे सपा और बसपा में वाले उत्तर प्रदेश के वोट बैंक को तितर बितर करना भी एक बड़ा कारण हो सकता है। जाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी यूपी-उत्तराखंड और केंद्रीय स्तर पर एक साथ इस दिशा में काम कर रही है
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा की मंशा को साफ करते हुए कहा कि वह तो राज्य बनने के समय से ही सहारनपुर को उत्तराखंड में लेने के लिए प्रयासरत थे।
वर्ष 2000 में जब राज्य बना था तो उत्तराखंड में आने के लिए कोई भी तैयार नहीं था। राज्य बनने के बाद छोटी राजनीतिक और प्रशासनिक इकाई तथा औद्योगिकीकरण के फलस्वरुप उत्तराखंड की स्थिति उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से बेहतर हो गई तो अब उत्तराखंड की सीमा से लगे हुए जिले भी उत्तराखंड के संसाधनों की तरफ ललचाई नजरों से देख रहे हैं।
सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाए जाने से न सिर्फ उत्तराखंड के संसाधनों का बंटवारा हो जाएगा बल्कि उत्तराखंड में अन्य पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों को मिलने वाला आरक्षण भी फिर से नगण्य हो जाएगा। इसका अधिकांश लाभ सहारनपुर जैसे जिले ले जाएंगे।
साथ ही उत्तराखंड जैसे शांत राज्य में अपराधों की बाढ़ आ जाएगी। जाहिर है कि अलग उत्तराखंड की मांग एक पहाड़ी प्रदेश के रूप में इसलिए की गई थी, क्योंकि रोजगार तथा विकास के अन्य साधनों पर उत्तराखंड के लोगों के हित मारे जा रहे थे।
अब फिर से सहारनपुर जैसे जिले मिलाए जाने के बाद उत्तराखंड फिर से उत्तर प्रदेश के समय की स्थिति में पहुंच जाएगा। किंतु इन सब से बेपरवाह भारतीय जनता पार्टी सिर्फ अपने वोट बैंक के लिहाज से रणनीति बना रही है।