उत्तराखंड रोडवेज मात्र 1 साल में साढे पांच करोड़ के कलपुर्जे अपनी मरम्मत पर लगा चुकी है और 1 साल में डेढ़ अरब से अधिक का डीजल पी गई।
अगर यात्रियों से हुई आमदनी को वेतन-भत्तों सहित तमाम खर्चों पर से हटा दें तो रोडवेज अभी भी घाटे में है। जबकि सरकारी आंकड़े लगातार बता रहे हैं कि रोडवेज कमाई कर रही है।
आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गोनिया ने जब सूचना के अधिकार में यह जानना चाहा तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
हेमंत गोनिया ने परिवहन निगम से कुल संचालित बसों की संख्या, सफर करने वाले यात्रियों के साथ ही परिवहन निगम को होने वाली आय और व्यय का जवाब तलब किया था।
आरटीआई में परिवहन निगम ने यह स्वीकार किया कि विभिन्न कल-पुर्जों पर परिवहन निगम में 5करोड़ 46लाख 18हजार से अधिक का खर्च किया है। जबकि डीजल पर परिवहन निगम की बसों में एक अरब 57लाख 70हजार से अधिक का खर्च आया है।
सूचना के अधिकार में परिवहन निगम ने यह भी बताया कि 2017-18 के साल में परिवहन निगम को यात्रियों से 5अरब 82करोड़ 19लाख की आय हुई है।
जबकि 4करोड़ 9लाख यात्रियों ने परिवहन निगम में सफर किया है।
आरटीआई में दी गई जानकारी के अनुसार परिवहन निगम के पास वर्तमान में 1312 बसें संचालित हो रही हैं। सूचना प्रदान करते हुए परिवहन निगम ने एक बड़ी चालाकी भी की है। अपनी स्थिति थोड़ा अच्छी बताने के लिए परिवहन निगम ने आय का ब्यौरा तो वर्ष 2017- 18 का बताया है, लेकिन खर्चों का ब्यौरा वर्ष 2016- 17 का बताया है। जबकि उनसे वर्ष 2017- 18 का ही ब्यौरा मांगा गया था। तो फिर खर्च का ब्यौरा बताते हुए मात्र 2016-17 का ब्यौरा प्रदान करना अपने आप में किसी तिकड़म की ओर इशारा जरूर करता है।
बहरहाल यह तो तफ्तीश का विषय है। आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गोनिया परिवहन निगम के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं और इसे घुमा फिरा कर दी जाने वाली सूचना मानते हुए अपील में जाने का मन बना चुके हैं। देखना यह है कि अपील में उन्हें क्या जवाब मिलता है ! यदि वाकई परिवहन निगम कोई सूचना छुपा रहा है तो अपील में प्राप्त जानकारी के बाद विभाग की किरकिरी भी हो सकती है।