जगदम्बा कोठारी
रूद्रप्रयाग
आपके प्रिय न्यूज़ पोर्टल पर्वतजन ने कल 5 जून को MBBS डॉक्टर द्वारा बेटी की उम्र की पेशेंट से झूठ बोलकर और इमोशनल ब्लैकमेल करके दुष्कर्म करने की खबर प्रकाशित की थी।
शादीशुदा होते हुए भी खुद को अकेला बता कर अपनी ही पेशंट का भावनात्मक दोहन कर अप्राकृतिक संबंध बनाने वाले डॉक्टर ने विरोध करने के बाद युवती से शादी करने का वादा किया था। लेकिन बाद में मुकर गया तो युवती ने पुलिस की शरण ली और डॉक्टर गिरफ्तार कर लिया गया।
दरअसल इस डॉक्टर की तो फितरत ही हैवानियत वाली थी। वास्तव में यह डॉक्टर ही फर्जी है।
अब पढ़िए दुष्कर्मी डॉक्टर का पुराना इतिहास
डा. मुकेश की नियुक्ति 10 अप्रेल 2014 को रूद्रप्रयाग जनपद मे जखोली विकासखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मे बतौर मुख्य चिकित्सक/ प्रबन्धक के पद पर हुई। 10 अप्रैल 2014 से ही सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र जखोली को पी. पी. पी. मोड मे संचालित करने का शासनादेश उत्तराखंड सरकार ने जारी किया। शील नर्सिंग ग्रुप बरेली को अस्पताल संचालन का ठेका मिला। शील ग्रुप द्वारा डाक्टर मुकेश चन्द जो कि जखोली मे डा. मुकेश भट्ट के फर्जी नाम से रह रहा था,को अस्पताल मे मुख्य चिकित्सक के पद पर नियुक्ति प्रदान कर दी। यहाँ भी यह कथित डा. अपनी रंगीन मिजाजी के लिए सुर्खियों में था। इसकी भनक जब स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन्द्र भट्ट और उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी हयात सिंह राणा को लगी तो उन्होंने डा. मुकेश का खुलकर विरोध किया।
उसी दौरान “पर्वत जन” टीम को सूचना मिली कि डा. मुकेश चन्द, जो कि स्थानीय जनता को अपना परिचय डा. मुकेश भट्ट निवासी पौड़ी बताता था, यह परिचय उसका फर्जी है।
अक्टूबर 2016 मे जब पर्वत जन ने जब इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि डॉक्टर का असली नाम मुकेश चन्द है और वह दिल्ली निवासी है और उसका उत्तराखंड मेडिकल एसोसिएशन मे रजिस्ट्रेशन भी नहीं है।
निजी चिकित्सालय में सेवाएँ देने के लिए किसी भी चिकित्सक को उस प्रदेश की कांउसिल मे रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होता है।
कुछ तथ्यों से यह भी संकेत मिल रहे थे कि डा. मुकेश की एमबीबीएस डिग्री फर्जी है। जब हमने अस्पताल का संचालन करने वाली संस्था शील नर्सिंग ग्रुप बरेली से डॉक्टर की डिग्री की प्रतिलिपि मांगी तो उन्होंने डिग्री की प्रतिलिपि देने से मना कर दिया था।
अब खुद को धोखाधड़ी और महिलाओं के शारीरिक शोषण मे फंसता देख डा. मुकेश चन्द रातों रात जखोली से भाग गया। तब से लेकर आज तक वह देहरादून में रह रहा था।
पीपीपी मोड में चिकित्सालय का संचालन करने वाली कंपनियों पर राज्य सरकार यह शर्त तक नहीं लगाती कि उनके डॉक्टरों का पंजीकरण राज्य की काउंसिल में होना अनिवार्य है।
ऐसे में यह पता नहीं चल पाता कि मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाला कोई डॉक्टर असली है या फर्जी। मुकेश चंद शरीके नटवरलाल के कारण राज्य सरकार पर भी सवालिया निशान लगते हैं।
मुकेश चंद के इस पुराने इतिहास के खुलासे के बाद यदि सरकार राज्य में प्रेक्टिस कर रहे सभी डॉक्टरों के दस्तावेजों का सत्यापन कराने के साथ ही उनका पंजीकरण अनिवार्य कर दे तो फर्जी डॉक्टरों के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ सकते हैं।