लश्कर भी तुम्हारा है,सरदार तुम्हारा है,
तुम झूठ को सच लिख दो, अखबार तुम्हारा है,
इस दौर के फरियादी जायें तो जायें कहाँ,
सरकार भी तुम्हारी है, दरबार भी तुम्हारा है!!
एक शायर की यह पंक्तियां आजकल उत्तराखंड में चल रही उत्तरा बहुगुणा प्रकरण पर बेहद सटीक बैठती हैं।
हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा जनता दरबार में निलंबित की गई उत्तरा बहुगुणा का निलंबन आदेश पिछले 3 दिन से पूरे सोशल मीडिया और चैनलों पर छाया हुआ है, लेकिन अध्यापिका इस आदेश का इंतजार इसलिए कर रही हैं, ताकि इसको लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकें।
उत्तरा बहुगुणा कहती है कि कि वह कोर्ट में इस बात को रखेंगी कि मुख्यमंत्री की पत्नी तो बिना किसी ट्रांसफर के पिछले 22 साल से देहरादून में एक ही स्थान पर तैनात हैं, जबकि उसे जनता दरबार में न्याय मांगने पर न सिर्फ सस्पेंड कर दिया गया, बल्कि जमकर बेइज्जत भी किया गया।
उत्तरा बहुगुणा कहती हैं कि उनका वेतन पिछले कई महीनों से रुका हुआ है तथा उनके विरुद्ध यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि वह वेतन वेतन ले रही है और कई दिनों से उन्होंने अपने काम की जानकारी भी नहीं दी है, जबकि यह आरोप निराधार हैं। “लेकिन कोई सुनने को ही तैयार नहीं है।”
सोशल मीडिया पर अध्यापिका को चौतरफा समर्थन मिल रहा है। समर्थन से काफी खुश अध्यापिका के पुत्र शुभम बहुगुणा का कहना है कि वह अंत तक न्याय के लिए लड़ेंगे। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश त्यागी ने अध्यापिका का मुकदमा निशुल्क लड़ने का भी प्रस्ताव रख दिया है।
उत्तरा बहुगुणा ने बताया कि अधिवक्ता राजेश त्यागी ने उनका मुकदमा लड़ने की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल भी कहती है कि अध्यापिका के प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की भी अवहेलना की गई है। “दरबार में अध्यापिका की फरियाद को मानवीय आधार पर सुनने की बजाय सत्ता के अंहकार में अध्यापिका को सस्पेंड कर दिया गया।” भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि किसी भी आम आदमी की तरह अध्यापिका को भी न्याय के लिए कोर्ट जाने का अधिकार है, इसमें वह कुछ नहीं कह सकते।
इधर आज बीजेपी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान 11:30 बजे भाजपा प्रदेश कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उत्तरा बहुगुणा प्रकरण पर पार्टी का पक्ष रखेंगे।