पर्वतजन ब्यूरो
सिंचाई विभाग में डेढ़ करोड़ के फर्नीचर घोटाले की बू आ रही है। यह फर्नीचर वित्त विभाग के टे्रनिंग और रिसर्च सेंटर के लिए खरीदा जाना था। इसमें कार्यदायी संस्था सिंचाई विभाग है। सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता दिनेश चन्द्र ने एक टेंडर निकाला कि शुद्धोवाला स्थित रिसर्च सेंटर के लिए एक करोड़ 62 लाख 50 हजार रुपए का फर्नीचर खरीदा जाना है। टेंडर की शर्त में अधीक्षण अभियंता ने पहले ही साफ कर दिया कि यह फर्नीचर गोदरेज कंपनी द्वारा निर्मित होना चाहिए। बड़ा सवाल यह है कि जब अधीक्षण अभियंता गोदरेज कंपनी से ही फर्नीचर खरीदे जाने की बात कर रहे हैं तो फिर टेंडर निकालने का क्या मतलब रह जाता है। यदि वह गोदरेज कंपनी से निर्मित फर्नीचर ही खरीदे जाने की बात न करके गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न कंपनियों से निविदा मांगते तो बात समझ में आ सकती थी।
एक बड़ा सवाल यह भी है कि यदि केवल गोदरेज कंपनी का ही फर्नीचर चाहिए था तो सीधे गोदरेज कंपनी के उत्तराखंड स्थित रीजनल सेल्स मैनेजर से सीधे बात की जा सकती थी। गोदरेज का फर्नीचर बेचने वाले अलग-अलग दुकानदारों को टेंडर में प्रतिभाग करने के लिए कहने का कोई मतलब नहीं बनता था।
अधीक्षण अभियंता कार्यालय ने 4 मई को यह निविदा निकाली थी और 19 मई को यह निविदा अधीक्षण अभियंता के कार्यालय में ही खोली जाएगी। यह एक तकनीकि निविदा है। इस निविदा में सफल निविदादाताओं को अलग से फाइनेंशियल बिड के लिए सूचना दी जाएगी।
अधीक्षण अभियंता दिनेश चन्द्र कहते हैं कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। उन्हें गोदरेज का फर्नीचर खरीदने को कहा गया तो वही खरीदा जाएगा। दिनेश चन्द्र कहते हैं कि निविदा प्रकाशित करना तो एक प्रक्रिया होती है। उसका पालन करना जरूरी होता है। प्रोक्योरमेंट रूल का पालन करने अथवा न करने के सवाल पर उन्होंने अपना फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि एक विशेष डीलर से फर्नीचर खरीद के एवज में ५० लाख रुपए का कमीशन पहले ही कर्ता-धर्ताओं ने तय किया हुआ है, किंतु यह कमीशन रिसर्च सेंटर से तय हुआ है अथवा अधीक्षण अभियंता कार्यालय से। या फिर सीधे डीलर के स्तर से शासन के किसी अधिकारी से सेटिंग हुई है, इसका निश्चित खुलासा अभी नहीं हो पाया है। अधीनस्थ अधिकारी चुपचाप आदेश का पालन के अलावा कुछ स्थिति में नहीं है।
इस घोटाले के बारे में कहा यह जा रहा है कि घोटालाकर्ता विभाग के मंत्री सतपाल महाराज को इस घोटाले की कानोकान खबर नहीं है। और हो भी कहां से, अधिकारी हैं कि पुरानी आदतों से बाज आने को तैयार नहीं।