मोरी: रस्सी के सहारे झूल रही जिंदगी
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी 16 अगस्त। प्रखंड मोरी के दर्जनों गांव पुल के अभाव मे ग्रामीणों की जिंदगी ट्रॉली या एक रस्सी के सहारे झूल रही है। सांकरी -तालुका वन जीप मार्ग पर 4 गांव के लोग जान हथेली पर रख कर सफर करने को मजबूर हैं। पिछले 5 दिनों से मार्ग बन्द पड़ा है वन विभाग सुध नहीं ले रहा ओसला, गंगाड, पंवानी, ढाटमीर और सिर्गा के ग्रामीणों का शेष दुनिया से संपर्क टूटा है।
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संपर्क टूटने से सेब कास्तकारों का सेब सड़ रहा है। रास्तों में साल भर की मेहनत में क्षतिग्रस्त मार्ग ने पानी फेर दिया है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकता राजपाल रावत बताते हैं कि मोरी के हलारा गाड़ के जलस्तर बडने से लोगों को आवाजाही करने मे जिंदगी को हथेली पर रखकर सफर कर रहे हैं। उन्होने कहा कि
डबल इंजन की सरकार से उम्मीद थी कि इस क्षेत्र मे सड़क,पुल बनेंगे लेकिन सूबे की सरकार सीमांत क्षेत्रों की सुध नहीं ले रहा।
बता दे कि उत्तरकाशी के सुदूरवर्ती मोरी प्रखंड के नुराणु गाँव के ग्रामीण 2013 की आपदा के दंश आज भी झेल रहे हैं। गाँव के ग्रामीण जब गांव से सात किलोमीटर का सफर पैदल तय कर के रूपिन नदी पार करने पहुँचते हैं तो ग्रामीणों की समस्या दोगुनी हो जाती है।
जिला प्रसासन ने आपदा के समय ट्रॉली खींचने के लिए मैन पवार की बात कही थी, ग्रामीण एक दूसरे की मदद खुद करते दिखते हैं। सुरक्षा के कोई इंतजाम नही हैं। ग्रामीण महिलाएं ग्रामीण बालक बालिकाओं का संघर्ष देखने लायक है।
मोरी ब्लॉक के सुदूरवर्ती नुराणु गांव के 98 परिवार छह साल बाद भी आपदा का दंश झेलने को मजबूर हैं। बरसात के समय ये परेशानी ग्रामीणों की ओर बढ़ जाती है। नीचे उफनती नदी ऊपर ट्रॉली और रस्सियों का सहारा हर रोज ग्रामीणों की मुसीबत बढ़ाती है।ग्रामीणों को आज भी रूपिन नदी पार करने के लिए ट्रॉली के सहारे आवाजाही करनी पड़ रही है।
वहीं बरसात के दौरान नदी के उफान पर आने से दो महीने तक ग्रामीण गांवों में कैद हो जाते हैं। दरअसल ट्रॉली के बाद ग्रामीणों को गाँव तक पहुँचने के लिए 8 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है।
2013 की आपदा के बाद ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई तो प्रभावित हुई लेकिन पूरे गाँव का जन जीवन, स्कूली बच्चों की पढ़ाई आज तक प्रभावित है। सबसे बड़ी बात सुरक्षा और ट्रॉली खींचने के लिए कोई भी मैन पावर मौजूद नही है।
ग्रामीणों को यदि ट्रॉली पर सफर करना है तो साथियों का इंतजार करना पड़ता है। अगले सफर करने वाले लोग यहां से कई बार वापस चले जाते हैं।
ऐसे में ग्रामीणों की आवाजाही व रोजमर्रा के सामान ढोने को लोनिवि की ट्रॉली ही एकमात्र सहारा रह जाती है। भारी सामान को गांव से लाने-ले जाने में ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। नदी पर स्थायी पुलिया निर्माण के लिए कई बार शासन-प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है।