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अपनों को फायदे, बाकियों को कायदे!

मामूली पर्यटन गतिविधियों के लिए भारी-भरकम फीस वसूलने वाले वन विभाग के अधिकारियों की शह पर औली के प्रतिबंधित बुग्यालों में अवैध रूप से धड़ल्ले से चौपहिया मोटर बाइकें दौड़ाई जा रही हैं।

विनोद कोठियाल

चन्द पैसो के लालच में बद्रीनाथ घाटी को सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थल औली की प्राकृतिक सुंदरता से छेडख़ानी की जा रही है। इससे संबंधित विभाग जैसे पर्यटन, गढ़वाल मंडल विकास निगम तथा वन विभाग एक दूसरे के पाले में गेंद सरका रहे हैं। औली के ढलान अपनी खूबसूरती और बुग्यालों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्धि पा चुके हैं। इन ढलानों पर मोटर वाहनों का यातायात पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बावजूद वहां मोटर बाइक खूब प्रयोग हो रही हैं, जिससे वहां की सुंदरता बिगड़ रही है। इन मोटर बाइक के टायर से ढलानदार बुग्यालों में पूरे रास्तों के निशान बन गए हैं तथा बुग्यालों की हरियाली भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।
औली पर्यटक स्थल का नाम देश में ही नहीं, विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है। इसका कारण इसकी अपनी प्राकृतिक सुंदरता है। वर्ष २०१० में सैफ विंटर गेम की मेजबानी जब उत्तराखंड प्रदेश को मिली तो उस समय सफलतापूर्वक संपन्न सैफ गेम के कारण औली का नाम पूरे विश्व में फैल गया। इसकी सुंदरता को बनाए रखने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार और आम नागरिकों की है। कुदरत ने सुंदरता का खजाना मानो औली में ही समेट लिया है। इस स्थान पर वर्ष के बारह महीनों पर्यटक आते हैं। औली स्लोपों पर जमी बर्फ में हिमक्रीडा के लिए विश्व में अपना एक अलग ही स्थान रखता है।
पर्यटन विभाग पर सवाल
औली में पर्यटन गतिविधि के लिए जिम्मेदार विभाग जीएमवीएन तथा पर्यटन विभाग है। संबंधित विभागों से बात करने पर उन्होंने मामले को वन विभाग का मामला बताया, जबकि वन विभाग का कहना है कि यह मामला पर्यटन का है। इसी संबंध में वन विभाग औली बुग्याल में घोड़े के चलने के लिए २० रुपए की पर्ची काटते हैं, किंतु इन मोटर बाइक के संबंध में मामला सीधे पर्यटन का बताते हैं। एक ही स्थान के लिए दोहरे मानदंड समझ से परे हैं।
वन विभाग का जंगलराज
इस संबंध में जब वन विभाग से पूछा गया कि घोड़े के पैसे प्रतिदिन के हिसाब से काटते हैं तो मोटर बाइकों का मामला पर्यटन का कैसे हुआ? तब विभाग को कोई जवाब देते नहीं बना और जांच कराने की बात कहकर अपना पिंड छुड़ा लिया।
औली में लंबे समय तक इसी प्रकार का एक विवाद अवैध निर्माण को लेकर बना रहा। ऊंची पहुंच के चलते धीरे-धीरे मामला शांत होता चला गया और वर्तमान में तो सीधे मोटर बाइक का चलन शुरू हो गया है। यदि इस संबंध में विभागों द्वारा उचित कार्यवाही नहीं की गई तो यह स्थल भी एक इतिहास बन कर रह जाएगा। बाहर का पर्यटक एक बार ही आता है, वह बाइक में बैठकर बुग्यालों में घूमा और चला गया, किंतु यह स्थानीय लोगों और राज्य सरकार को देखना और सोचना चाहिए कि पर्यटकों को हर बार बुलाना है कि एक बार में ही अपने संसाधनों को समाप्त करना है।
उत्तराखंड में एक औली ही नहीं, अनेक स्थानों पर यदि पर्यटक स्थलों और स्थानीय संसाधनों को नहीं बचाया गया तो अगली पीढ़ी के लिए इस दिशा में कुछ नहीं बचेगा। शहरों की भीड़भाड़ और प्रदूषणभरी जिंदगी से ऊबकर पर्यटक पहाड़ों में शक्ति और सुकून के लिए आता है। यदि उसे यहां भी भीड़ और शोरगुल मिला तो अगली बार वह दूसरे प्रदेशों में जाने को बाध्य होगा।

”यह पर्यटन विभाग का मामला है। पर्यटन विभाग को देखना चाहिए कि कुछ गलत न हो, जिसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यटन पर न पड़े। यदि मामला आरक्षित वन क्षेत्र का है तो इसे दिखवाया जाएगा।”
– प्रभागीय वनाधिकारी, चमोली

”यह वन विभाग का मामला है, क्योंकि यह क्षेत्र वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यदि वन विभाग का क्षेत्र नहीं है तो इसके लिए जीएमवीएन पूर्ण रूप

से जिम्मेदार है। मैं इसकी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को करूंगा।”
– जिला पर्यटन अधिकारी, चमोली

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