उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी पिछले डेढ़ माह से मुंबई के एक अस्पताल में अपना इलाज करा रहे हैं। देश के तमाम बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री उनका हालचाल लेने पहुंच चुके हैं। अगर कोई बेखबर है तो वह है तो उनके अपने प्रान्त की उत्तराखंड सरकार।
राज्य सरकार की ओर से अभी तक बलूनी की कोई सुध नहीं ली गई है। राज्य के मुखिया ने अभी तक बलूनी का हाल-चाल नहीं लिया है। पार्टी को परिवार और कार्यकर्ताओं को पारिवारिक सदस्य कहने वाली भाजपा का असली चेहरा ऐसी विपत्ति में दिखा जब ना सांसद बलूनी का हाल-चाल लेने सरकार से कोई मुंबई पहुंचा और ना किसी ने दिल्ली में उनके परिवार से मिलकर उन्हे ढाँढस बँधाने की कोशिश की। सांसद विपक्ष का भी होता तब भी शिष्टाचार के नाते हालचाल लिया जाता है।
सांसद बलूनी के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी पत्नी अकेले ही दिल्ली मुंबई की निरन्तर दौड़ भाग कर रही हैं। किंतु सांसद के प्रांत की सरकार ने अभी तक बलूनी का हाल-चाल नहीं जाना।
एक माह तक बलूनी मुंबई में भर्ती रहकर जब इलाज करा रहे थे तो प्रदेश संगठन और सरकार बेखबर थी। बलूनी की सोशल मीडिया में अनुपस्थिति का भी किसी ने संज्ञान नहीं लिया। सामान्य मानवीय शिष्टाचार के नाते दिल्ली में पड़ी अफसरों की फौज या दिल्ली में पड़ा रहने वाला सरकार का ‘काबिल’ तंत्र द्वारा इस जिम्मेदारी को निभाया जा सकता था।
मुंबई में भर्ती होने के एक माह पश्चात स्वयं बलूनी ने सोशल मीडिया पर अपने अस्वस्थ होने की जानकारी दी। तत्काल मुख्यमंत्री के फेसबुक और ट्विटर हैंडल से बलूनी के स्वस्थ होने की कामना का संदेश रस्मी तौर पर पोस्ट किया गया मगर सरकार ने अपने सांसद की अस्वस्थता के बारे में पता करने की जहमत नहीं उठाई जबकि राज्य सरकार का दिल्ली में एक सक्षम स्थानिक आयुक्त का कार्यालय है और उनके स्थानिकआयुक्त दिल्ली से लेकर राज्य सरकार में बहुत ‘प्रभावी’ भूमिका में है। ऐसे में बलूनी से दूरी बनाना राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय है कि बीमारी के वक्त भी जानबूझकर उपेक्षा बहुत कुछ कहती है।
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, महामंत्री भूपेंद्र यादव, अरुण सिंह, कैलाश विजयवर्गीय पार्टी के सभी राष्ट्रीय प्रवक्तागण, मुख्यालय प्रमुख महेंद्र पांडे से लेकर अनेक केंद्रीय मंत्री अस्पताल जाकर बलूनी का निरंतर मनोबल बढ़ाते रहे कि वे अकेले नहीं है।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पहले उत्तराखंडी थे जिन्होंने बलूनी से भेंट की और जानकारी सोशल मीडिया में साझा की।सोशल मीडिया में भद पीटते देख राज्य के कुछ नेताओं ने जरूर इस बीच बलूनी से भेंट की है। केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, तीरथ सिंह रावत, अजय भट्ट, अजय टम्टा ने इस सप्ताह बलूनी का हालचाल जाना।
देश के एक बड़े उद्योगपति परिवार के विवाह समारोह में मुख्यमंत्री सहित सरकारी अमला मुम्बई में डेरा डाले रहा किन्तु अपने सांसद का हालचाल लेने एक अदना सा कारिंदा भी न भेजना उपेक्षा की पराकाष्ठा है। राजनीति में तमाम विरोधाभासों, कटुताओं और कड़वे अनुभवों के बाद भी सुख दुख में भागीदारी सभ्य संस्कारों का हिस्सा माना गया है। किंतु प्रदेश सरकार की डेढ़ माह बाद भी उपेक्षा करने की जिद विरोध की पराकाष्ठा का परिचय देती है।
बिस्तर पर पड़े व्यक्ति के प्रति राज्य सरकार की उपेक्षा निश्चित ही निंदनीय है। सप्ताह भर सरकार राज्य स्थापना दिवस के जश्न में डूबी रही। जिस शहर में बलूनी भर्ती हैं उसी शहर की तमाम फिल्मी हस्तियों से पूरी राज्य सरकार का तंत्र जुड़ा रहा, मसूरी में उनका जमावड़ा लगा। उनकी आवभगत में पूरा सरकारी अमला जुटा। इन किसी भी समारोह में बलूनी को कोई आमंत्रण नहीं था अगर सरकार ने उन्हें अस्वस्थ मानकर न्योता नहीं दिया तो उस अस्वस्थता का संज्ञान लेकर हालचाल तो लेना ही चाहिए था।