जगदम्बा कोठारी
पिछले तीन सप्ताह से लाॅक डाउन के कारण देशभर मे फंसे प्रदेश वासियों को उनको घरों तक न पहुंचा पाने के कारण त्रिवेंद्र सरकार लगातार फजीहत झेल रही है। निरंतर आलोचनाओं के बाद भी सरकार प्रदेश से बाहर तो दूर हरिद्वार और दून जैसे शहरों मे फंसे पड़े लोगों को भी अभी तक
उनके गृह जनपद तक नहीं पहुंचा सकी है। जबकि इन युवाओं का 14 दिन का क्वारांटाइन पीरियड भी पूरा हो चुका है फिर भी प्रदेश सरकार इनको घर छुड़वाने की व्यवस्था नहीं कर सकी है।
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प्रदेश से बाहर की बात करें तो दिल्ली, बेंगलोर, अलवर, मुंबई समेत अनेक शहरों मे हजारों युवा देश भर मे फंसे पड़े है और उनके 14 दिन क्वारांटाइन पीरियड के बाद अब उन्हे 20 दिन हो गये हैं और वहां की राज्य सरकारों ने उन्हे घर जाने की अनुमति भी दे दी है लेकिन उत्तराखंड सरकार के द्वारा उनके लिए कोई परिवहन सेवा न कर पाने के कारण वह वहीं फंसे पड़े हैं।
कोटा मे फंसे उत्तराखंड के सैकड़ों छात्र
पी पी पुरोहित( रूपनगर बद्रीपुर जोगीवाला, देहरादून) कहते है कि वहां पर हॉस्टल में मेरा बच्चा भी रुका हुआ है।
राजस्थान कोटा में फंसे हुए छात्रों को उत्तर प्रदेश की तरह परिवहन निगम की बस भेज कर वापस बुलाया जाए या बुलाने हेतु विशेष व्यवस्था की जाए। क्योंकि वहां पर छात्र अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, तथा खाने की व्यवस्था भी सही नहीं हो पा रही है।”
ऐसे मे सीएम रावत की इन लोगों के प्रति मंशा क्या है, यह हर किसी की समझ से परे है। उत्तराखंड सरकार से लगातार लोग इन फंसे लोगों को घर पहुंचाने की मांग कर रहे हैं। यह युवा सोशल मीडिया के माध्यम से भी सरकार से घर वापसी की मांग कर रहे हैं लेकिन त्रिवेंद्र सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही है।
वहीं मुख्यमंत्री द्वारा निजी कार्य के लिए सरकारी हेलिकाॅप्टर से हवाई दौरा कर लाॅक डाउन के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाना किसी से छिपा नहीं है।
यही नहीं त्रिवेंद्र सरकार द्वारा दिल्ली मे फंसे लोगों के लिए 50 लाख रूपये का राहत पैकेज दिया तो गया लेकिन उस पैसे से किसे राहत मिली, यह किसी को नहीं पता।
दिल्ली मे प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए काम कर रहा सामाजिक संगठन ‘उत्तराखंड आवाज’ की महासचिव सरिता कैंतुरा ने दिल्ली मे तैनात उत्तराखंड के रेजीडेंस कमिश्नर पर आरोप लगाया है कि इस पैसे पर उत्तराखंड सरकार के अफसर कुंडली मारे बैठे है।
राहत के नाम पर खाना पूर्ति कर लाखों की रकम भ्रष्टाचार की भेंट चढ गयी है। सैकड़ों लोग एक वक्त का खाना खाकर पेट भरने को मजबूर हैं और संबधित अधिकारी फोन उठाने तक को तैयार नहीं हैं। उन्होने शीघ्र इन अधिकारियों के तबादले और लाॅक डाउन खत्म होने से पहले इस रकम का ब्यौरा सार्वजनिक करने की मांग की है।
सरिता नेगी का कहना है कि उनके संगठन द्वारा अन्य लोगों की सहायता से रैन बसेरों मे दिन काट रहे प्रतिदिन 800 उत्तराखंडियों को भोजन करवाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन दिल्ली मे तैनात उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं की जा रही है। बहरहाल लाॅक डाउन और कोरोना कहर एक न एक दिन तो समाप्त हो ही जाएगा मगर त्रिवेंद्र सरकार की यह बेरूखी प्रदेश वासियों के सीने मे नासूर बनकर हमेशा रहेगी। साथ ही संभव है कि इस लापरवाही का बड़ा खामियाजा उत्तराखंड भाजपा को 2022 मे भुगतना पड़े क्योंकि त्रिवेंद्र सरकार के फैसलों की मार सीधे यहां की जनता पर पड़ रही है।