कोरोना के वायरस का दुष्प्रभाव अब उत्तराखण्ड सरकार की कार्य प्रणाली पर भी पड़ने लगा है। टिहरी जिला प्रशासन ने 3 महीने का क्वॉरेंटाइन पीरियड पूरा कर चुके एक व्यक्ति को फिर से 2 महीने के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया है जबकि एक डॉक्टर जो कि 18 अप्रैल से होम क्वॉरेंटाइन थे वह रोज ऑफिस आ रहे हैं और हाजिरी भी दर्ज करा रहे हैं। अब भला यह क्वॉरेंटाइन का दोहरा फार्मूला क्यों !
सरकार अपने ही नियमों मे उलझ रही है। सरकार की समझ में ही नहीं आ रहा कि क्या करें और क्या ना करें !
सरकार का एक ही फार्मूला है कि जो पहुंच पहचान वाला है, उसके लिए कोई नियम नहीं और जिसका कोई बोलने वाला नहीं उस पर पावर गेम अप्लाई कर दो। कोई पूछे तो कह दो यह अफसरों के विवेक पर है।
पुखराज एक डॉक्टर है और बेचारा राजेश आम आदमी।
जो लोग उत्तराखंड में ही 3 हफ्ते का क्वॉरेंटाइन पीरियड पूरा कर चुके हैं, उन्हें अब एक महीने के लिए और क्वॉरेंटाइन करने का आदेश दिया गया है। जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चंबा के प्रभारी चिकित्सक 18 अप्रैल से होम क्वॉरेंटाइन में होने के बावजूद रोज अस्पताल आ रहे हैं और आसपास खुला घूम रहे हैं यहां तक कि हाजिरी रजिस्टर पर अपनी हाजिरी भी लगा रहे हैं।
टिहरी जनपद के उप्पू निवासी राजेश अंबाला से टिहरी के लिए निकले तो उन्हें हरिद्वार के भगवानपुर में 16 सदस्यों के साथ क्वॉरेंटाइन कर दिया गया।
3 हफ्ते तक हरिद्वार में रहने के बाद जब राजेश अपने गांव टिहरी पहुंचा तो उत्तराखंड सरकार ने राजेश के घर के बाहर एक माह तक और क्वॉरेंटाइन करने का नोटिस चस्पा कर दिया है।
जबकि दूसरी ओर चंबा के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर पुखराज 15-16 अप्रैल को राजस्थान गए थे, उसके 3 दिन बाद लौटने के बाद जब उन्हें होम क्वॉरेंटाइन कर दिया गया तथा उनके घर पर नोटिस भी चिपका दिया गया, इसके बावजूद वह रोज कार्यालय और आसपास घूम कर क्वॉरेंटाइन का उल्लंघन कर रहे हैं।
कार्रवाई के नाम पर अफसरों की जुबान ही लाॅकडाउन
हालांकि टिहरी की सीएमओ डॉक्टर मीनू रावत डॉक्टर पुखराज के क्वॉरेंटाइन उल्लंघन पर कुछ कार्यवाही करने की बात पर अपनी जुबान ही लाॅकडाउन कर लेती हैं और बात करने का हवाला देती हैं ,लेकिन सारे नियम कानून तो राजेश जैसे आम आदमी के लिए बने हैं।
अहम सवाल यह है कि अब यदि उत्तराखंड सरकार इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को दो 2 महीने तक कोरनटाइन करती रही तो भारत सरकार को भी उत्तराखंड सरकार से समझना होगा, उसने क्या आदेश दिया था और उत्तराखंड में उसका किस प्रकार पालन हो रहा है !
केरल के रावल और कुलपति के लिए नियम कहां !
यहां पर एक तथ्य यह भी है कि केरल से आए रावल को भी होम क्वॉरेंटाइन नहीं किया गया तथा देहरादून जैसे रेड जोन वाले इलाके से पौड़ी के ग्रीन जोन में गई कुछ दिन पहले ही केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर की कुलपति को भी क्वॉरेंटाइन नहीं किया गया जबकि उनके ड्राइवर और नौकरों को चौराहा परिसर में आने से मना कर दिया गया, किंतु कुलपति साहिबा अपने कार्यालय से काम निपटाती रही।
यहां पावर गेम : डाक्टर क्वारंटाइन, ड्राइवर को छूट
इसी तरह से उत्तरकाशी में एक डॉक्टर को जब वह देहरादून से उत्तरकाशी गए तो उन्हें क्वॉरेंटाइन कर दिया गया, जबकि उनकी गाड़ी के ड्राइवर को छोड़ दिया गया।
चमोली मे सब चलता है !
इसी तरह से चमोली जिले में एक पहुंच वाले व्यक्ति को तो होम क्वॉरेंटाइन नहीं किया गया जबकि एक पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर को क्वॉरेंटाइन में भेज दिया गया।
इसी तरह से अल्मोड़ा के जिलाधिकारी नितिन भदौरिया जब अपने परिवार से मिलने चमोली गए तो उनके लिए भी क्वॉरेंटाइन जैसे कोई नियम लागू नहीं है। नितिन भदोरिया की पत्नी स्वाति भदौरिया चमोली मे जिलाधिकारी हैं। हालांकि दोनो जिले ग्रीन जोन हैं। लेकिन नियम तो नियम हैं। या फिर विवेक का उचित आधार और पालन हो।
जब इस तरह के डबल स्टैंडर्ड होंगे तो फिर आम आदमी कहीं ना कहीं किलसेगा भी और सवाल भी उठाएगा।
लेकिन जिनके हाथ में कलम है, वह यह रौब जमा कर आम आदमी को चुप करा देते हैं कि यह उनके विवेक पर निर्भर करता है कि किसको होम क्वॉरेंटाइन करना है, किसको फैसिलिटी क्वॉरेंटाइन करना है, किसको संस्थागत क्वॉरेंटाइन करना है और किस को कुछ भी नहीं करना कहना है।