राज्य सरकार द्वारा नदियों में मशीनों द्वारा दी गई खनन की अनुमति और अनियंत्रित मशीनी खनन को चुनौती देने वाली, हल्द्वानी निवासी दिनेश कुमार चंदोला की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि जब केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा राज्य में नदी तक में खनन की अनुमति मात्र मैनुअल खनन हेतु है तो नदी क्षेत्रों में मशीनों की अनुमति किस आधार पर दी गई है? साथ ही यह भी पूछा है कि जब राज्य की खनन परिहार नियमावली 2017 मे नदी तल क्षेत्रों में खनन हेतु जेसीबी, पोकलेन, सक्शन मशीन आदि का प्रयोग पूर्णतः प्रतिबंधित है तो नियमावली के विरुद्ध नदियों में मशीनों से खनन का शासनादेश कैसे जारी किया गया है?
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याचिकाकर्ता ने न्यायालय को बताया था कि राज्य सरकार द्वारा मशीनों से खनन की अनुमति अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के आदेश से 13 मई 2020 को दी गई थी। जिसके बाद कोटद्वार में सुखरो, खोह नदी, नैनीताल जिले में बेतालघाट में तथा उधम सिंह नगर और विकास नगर तहसील जिला देहरादून मैं बड़े पैमाने पर बड़ी-बड़ी मशीनों से अनियंत्रित खनन नदी क्षेत्रों में किया जा रहा है। जिससे नदी तल बुरी तरह क्षत विक्षत हो रहे हैं और जिससे पर्यावरण पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
ओमप्रकाश और सीएम की कारस्तानी
चुगान की जगह मशीनों द्वारा नदियों में मशीनों से गड्ढे कर अवैज्ञानिक दोहन किया जा रहा है। यहां तक कि तहसील विकासनगर में मशीनों द्वारा यमुना नदी का रुख ही मोड़ दिया गया है और उस पर अवैध पुल बना दिया गया है।
साथ ही माफियाओं की शह पर विरोध करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ताओं, उजागर करने वाले पत्रकारों का उत्पीड़न भी किया जा रहा है। प्रदेश के नदी तट खनन क्षेत्र अनियंत्रित अवैध मशीनी खनन के अड्डे बन चुके हैं।
न्यायालय ने 11 जून तक राज्य सरकार को हर हाल में, उपखनिज परिहार नियमावली के उल्लंघन के विषय में स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है।
मामले की अगली सुनवाई 11 जून को होगी। जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्वे की खंडपीठ में हुई।
पर्वतजन, नवोदित टाइम और कर्मभूमि टीवी ने खोली पोल
गौरतलब है कि पर्वतजन पत्रिका नवोदय टाइम में इस शासनादेश की आड़ में अवैध खनन किए जाने की आशंका पहले ही जताई थी और इस पर काफी सवाल भी खड़े किए थे। इसके अलावा पत्रकारों ने नदियों में अवैध रूप से मशीनी खनन और रात में भी अवैध खनन चालू रखने को लेकर बाकायदा खबरें चलाई थी।
सरकार ने अवैध खनन पर रोक तो नहीं लगाई उल्टा इन्हीं पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर दिए गए ऐसे में उत्तराखंड सरकार की कारस्तानी के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों को भी गंभीर खतरा पैदा हो गया है। ऐसे अंधकार युग में हाई कोर्ट द्वारा किया गया यह जवाब तलब अवैध खनन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे उत्तराखंड वासियों के लिए सुकून की खबर है।