आयोग की उदासीनता के कारण बेरोजगारों का भविष्य अंधकारमय!
उत्तराखंड सरकार ने डिग्री शिक्षकों के 877 पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया के लिए आवेदन पत्र भरने की अंतिम तारीख 3 हफ्ते तक बढ़ा दी है लेकिन उत्तराखंड लोक सेवा आयोग, जिसको ये परीक्षाएं करवानी है, उसको आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाने संबंधी निर्णय की जानकारी ही नहीं है।
आयोग के सचिव आनंद स्वरूप का कहना है कि उन्हें अभी तक शासन के इस आदेश की कोई जानकारी नहीं है। यदि आज भी उन्हें कोई शासनादेश शासन की ओर से नहीं मिल पाया तो फिर कल और परसों शनिवार तथा इतवार होने के बाद सोमवार तक ही आयोग को कहीं जाकर शासन के इस निर्णय की खबर हो सकेगी ।
जबकि प्रदेश में बेरोजगार युवाओं को इसकी जानकारी जब मीडिया के माध्यम से मिली तो उन्होंने लोक सेवा आयोग की वेबसाइट खंगाली लेकिन उस पर भी आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाने के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
गौरतलब है कि लोक सेवा आयोग ने पहले डिग्री शिक्षकों के आवेदन के लिए 25 अगस्त की तिथि अंतिम तिथि निर्धारित की थी। पहले डिग्री शिक्षकों की इन भर्तियों के लिए ऊपरी आयु सीमा 42 वर्ष निर्धारित की गई थी किंतु बाद में आई सीमा की बाध्यता हटा ली गई थी।
डिग्री शिक्षकों की भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा वाली बाथ्यता तो हटा ली गई थी लेकिन सेवा नियमावली में इसको संशोधित नहीं किया गया था।
इस तरह की विसंगति के कारण इन भर्ती परीक्षाओं पर सवाल उठे थे। इसके मद्देनजर उच्च शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डाक्टर रणवीर सिंह ने आवेदन की तिथि तीन सप्ताह बढा दी थी ।
दायित्वों के प्रति उदासीन है आयोग !
शिक्षित और बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की राह में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ही सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है । दर्जनो विभागों के अध्याचन भर्तियां करवाने के लिए लोकसेवा आयोग में लंबित पडे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि लोक सेवा आयोग की युवाओं को रोजगार देने में रुचि ही नहीं है ।
भारी भरकम तनखाह वाले और अच्छी खासी इंफ्रास्ट्रक्चर के बावजूद लोक सेवा आयोग की नींद राज्य बनने के इतने साल बाद भी नहीं टूटी है ।
लोक सेवा आयोग विभागों को यहीं तर्क देता है कि अभी अन्य भर्तियां कराने के लिए कार्यवाही पहले से लंबित पडी हैं। लोक सेवा आयोग की इस मजबूरी का फायदा उठाने के लिए नेताओं तथा विभागों के अफसरो ने अपने यहां काम चलाऊ व्यवस्था के नाम पर हजारों चहेते लेकिन अयोग्य कर्मचारी भर दिए और 10 साल बाद सभी को नियमित कर दिया। जबकि योग्य बेरोजगार विधिवत वैकेंसी निकलने के इंतजार मे ओवरएज हो गये।
राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से नौकरियां मिलने के इंतजार में पहाड़ के युवा लोक सेवा आयोग की वेबसाइट आदि के ही भरोसे रहते हैं। उनकी एक शिकायत रहती है कि लोक सेवा आयोग में अक्सर कर्मचारी फोन नहीं उठाते अगर कभी फोन उठा भी लिया तो किसी भी प्रश्न का समाधान पूर्वक उत्तर नहीं देते तथा किसी भी प्रकार के बदलाव की जानकारी आयोग की वेबसाइट पर डालने में भी लापरवाही बरतते हैं।युवाओं का यह भी कहना है कि लोक सेवा आयोग को विभिन्न परीक्षाएं बरसात के समय पर नहीं आयोजित करानी चाहिए इससे दूरदराज पहाड़ों की सड़कें टूटी होती हैं और इंटरनेट सेवाएं बाधित होती हैं जिससे न तो अभ्यर्थियों को कोई जानकारी समय पर मिल पाती है और न ही वह समय पर परीक्षा देने पहुंच सकते हैं। देखिये आयोग की सुस्ती कब टूटती है!