गढवाली मे एक कहावत है,-“अपणा आलू बजार बेची, बिराणा आलुन ढेपरा थेची।”
यह कहावत उत्तराखंड सरकार पर भी लागू हो रही है।
केंद्र सरकार उत्तराखंड की बाईस सौ करोड़ रुपए जीएसटी क्षतिपूर्ति नहीं दे पा रही है और डबल इंजन की उत्तराखंड सरकार का दम इतना नहीं है कि अपने आकाओं से अपने हक का पैसा भी मांग सके। जबकि जीएसटी की पूरी क्षतिपूर्ति राज्यों का संवैधानिक अधिकार है।
केंद्र के सलाह बाजार से उठाओ कर्ज
इसके उलट केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को बाजार से लोन लेने की सलाह दी है। मरता क्या न करता वेतन के लाले पड़े तो सरकार को 500 करोड़ रुपए बाजार से लोन लेकर फिलहाल वेतन का प्रबंध करना पड़ा।
कोरोना काल में उत्तराखंड की आर्थिक गाड़ी भी पटरी से उतरी हुई है, ऐसे में केंद्र सरकार का यह रवैया एक अनचाहे विकल्प की तरह है।
कोरोना महामारी के चलते केंद्र सरकार भी राजस्व की वसूली नहीं कर पाई है यूं तो सैद्धांतिक तौर पर केंद्र सरकार को खुद लोन लेकर राज्य सरकार को यह पैसा चुकाना चाहिए था लेकिन आकाओं की नाराजगी मोल न लेने के चलते राज्य सरकार रिजर्व बैंक से लोन लेने जा रही है।
केंद्र की हालत खुद टाइट
इस वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार को कुल 3400 करोड रुपए केंद्र सरकार से मिलने हैं। हालांकि इस लोन का ब्याज और किस्त केंद्र सरकार ही चुकाएगी लेकिन केंद्रीय सेस की वसूली बुरी तरह प्रभावित होने के कारण यह व्यवस्था भी गड़बड़ाई हुई है।
55000 करोड़ से अधिक के कर्ज के बोझ तले दबे उत्तराखंड सरकार ने अभी तक इस वित्तीय वर्ष में पंद्रह सौ करोड रुपए और लोन ले लिया है।
वेतन और पेंशन आदि के लिए लिया गया लोन कोई निवेश कार्यों की लोन की तरह नहीं है इसलिए इससे राज्य की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा सकती है।
वैसे भी केंद्र सरकार जीएसटी की क्षतिपूर्ति का भुगतान वर्ष 2022 से राज्य को करना बंद कर देगी।
इससे राज्य को ₹1500 करोड़ रुपए अतिरिक्त जुटाने होंगे। उत्तराखंड में भी जीएसटी वसूली लगातार कम होती जा रही है।