चमोली । जिले में डीएम को दिया गया एक शिकायती पत्र वाइरल हो रहा है जिसमे डीएम से की गई शिकायत से साफ जाहिर हो रहा है कि चमोली जनपद के निजमुला घाटी के तडागताल में खनन पट्टाधारक को लाभ पहुंचाने के लिए वन महकमा और प्रशासन पट्टा धारी के आगे नतमस्तक हो गए हैं।
क्योंकि इस पत्र में जिक्र है कि संवेदनशील नन्दा देवी रिजर्व फारेस्ट तडागताल में जहाँ सॉफ्ट स्टोन पट्टा जारी किया गया है वहाँ रिजर्व फारेस्ट में जल, जंगल ,जमीन को चीरते हुए जेसीबी पहुंचाया जा रहा है।
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उस पर भी तुर्रा ये कि पट्टाधारक को लाभ पहुंचाने के लिए डीएफओ ने एक ऐसी परमिशन जारी की है जो कि डीएफओ के अधिकार क्षेत्र में नही है।
कैसे डीएफओ एक संवेदनशील जैव विविधता वाले नन्दा देवी रिजर्व फारेस्ट तडागताल में जेसीबी चलाने की परमिशन दे सकता है ?
ऐसे में डीएफओ द्वारा वन अधिनियम 1927 की धारा 26 (क) ,26 (ड), 26 (छ),26 (ज) वन अधिनियम 1980 की धारा 2 का यह साफ साफ उलंघन किया जा रहा है।
दूसरा महत्वपूर्ण विषय यह कि वर्ष 2018 में भी स्थानीय जनता के विरोध के बाद भी तड़ागताल में पट्टाधारक जबरन जेसीबी ले गया था जिसके बाद वन विभाग को कार्यवाही के लिए मजबूर होना पड़ा था ।
बताया जा रहा है कि इस पट्टे तक जेसीबी मशीन ले जाने की परमिशन के लिए पट्टाधारक द्वारा 10 लाख रुपये वन विभाग में जमा करवाया गया है।
तो क्या वन विभाग 10 लाख रुपये के लिए जैव विविधता को दांव पर लगा देगा ?
जिस जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकार अरबों खर्च कर रही है उस जैव विविधता नष्ट करने की परमिशन डीएफओ ने किस आधार पर दी ?
यह डीएफओ की नैतिकता पर भी बड़ा सवाल है ।
ऐसे में सवाल तो जिलाधिकारी पर भी उठने तय हैं क्योंकि जब खनन का ये पट्टा अपने क़ई मानकों को पूरा ही नही कर रहा है तो ऐसे में कैसे इसकी अनुमति को अभी तक बरकरार रखा गया है ?
वाइरल हो रहा ये पत्र वन विभाग समेत जिला प्रशासन को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहा है कि इतने बड़े पदों पर बैठे अधिकारी जैव विविधता की कैसे धज्जियां उड़ा सकते हैं ?
आखिर क्यों ? एक खनन पट्टाधारक को लाभ पहुंचाने के लिए जेसीबी ,रिजर्व फारेस्ट के ,जल, जंगल,जमीन को रौंदती हुई खनन पट्टे तक पहुंचाई जा रही है?
ये खनन कार्य ,पट्टाधारक द्वारा स्वयं के लाभ कमाने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है न कि जनहित में। दूसरा पट्टाधारक को पट्टा इसलिए भी दिया जाता है ताकि स्थानीय युवाओ को रोजगार मिले पर सवाल तो ये भी है कि जब काम मशीन से ही होना है तो स्थानीय कितने युवाओ को यहाँ रोजगार मिल पायेगा ?
क्षेत्रीय जनता भी इसका पुरजोर विरोध कर रही है।
पर अफसोस तो उन आलाधिकारियों पर है जो चंद राजस्व के लिए जेसीबी से जल ,जंगल ,जमीन को नुकसान पहुंचाने पर आमादा हैं।
सूत्र तो यहाँ तक बताते हैं कि अब तक एलआईयू द्वारा इस पत्र जारी करने वाले युवक को कॉल भी आ चुका है और इस शिकायती पत्र के बारे में पूछताछ की जा रही है।
ताकि शिकायत करने वालों पर भी एक दवाब बनाया जा सके।
पर शिकायतकर्ताओ का कहना है कि अपने जल, जंगल ,जमीन को हम ऐसे नष्ट होते हुए नही देख सकते। इन हमारा भी अधिकार है। सिर्फ चंद राजस्व के लिए रिजर्व फारेस्ट को यूँ ही दांव पर नही लगने देंगे।
स्थानीय युवाओं का कहना है कि तड़ागताल में हर वर्ष साइबेरिया से विभिन्न प्रजातियों के पक्षी प्रवास पर आते हैं ,साथ ही हमारे बहुमूल्य जंगलों को भी इससे नुकसान पहुंच रहा है।
ये बहुत ही गम्भीर है कि चंद लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए नियमो की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं । यदि स्थानीय प्रशासन से न्याय नहीं मिला तो हमे न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा जिसकी हम पूरी तैयारी कर चुके हैं।
इसे डीएफओ का खनन अफेयर न कहें तो और क्या कहें ? जब डीएफओ साहब ,रिजर्व फारेस्ट की जल ,जंगल ,जमीन ,जैव विविधता को खनन अफेयर के चलते कुर्बान करने पर आमादा हैं।