प्रतिदिन उत्तराखंड आ रहे नेपाली और अवैध रुप से बांग्लादेशी शरणार्थियों के प्रति उत्तराखंड केे पुलिस प्रशासन सहित गोपनीय सुरक्षा एजेंसियां और सरकार भी पूरी तरह उदासीन है।
पिछले दिनों पर्वतजन ने हाल ही में नेपाल से आए कुछ नेपाली नागरिकों के आधार कार्ड देखे तो इस विषय में पुलिस प्रशासन को खंगाला। पता चला कि उत्तराखंड में सीमांत इलाकों से लेकर भीतरी कस्बों तक में पुलिस तथा एलआईयू और विजिलेंस तक को इस विषय में कोई संज्ञान नहीं है।
एक नेपाली महिला कमला देवी ने दिउशी गांव पौड़ी गढ़वाल से अपना आधार कार्ड बनवा रखा है। कमला देवी की जन्म तिथि 1 जनवरी 1966 दिखाई गई है।
पौड़ी के कुंड गांव के ही प्रेम सिंह की जन्म तिथि 1964 है। नेपाली महिला श्यामकली देवी की जन्म तिथि 1974 बताई गई है। तथा यह संगोला गांव पोस्ट ऑफिस सुला संगोला पौड़ी गढ़वाल की निवासी है। एक और नेपाली युवक राजकुमार ने अपने आधार कार्ड में अपनी जन्म तिथि 15 अप्रैल 1991 दिखाई है।
लगभग रोज टनकपुर आदि के रास्ते बसों में भरकर सैकड़ों की संख्या में नेपाली नागरिक उत्तराखंड आ रहे हैं। वह यहां पहले से ही रह रहे अपने परिचितों के साथ खेतों में बनी झुग्गी-झोपड़ियों में ठहरते हैं। तथा स्थानीय दलालों के माध्यम से फर्जी निवास प्रमाण पत्र और अन्य पहचान प्रमाण पत्रों के आधार पर आधार कार्ड हासिल कर रहे हैं।
गौरतलब है कि नेपाली नागरिक पलायन कर चुके अथवा काम काज छोड़ चुके स्थानीय लोगों के खेतों में अधेल पर सब्जियां आदि उगाने का काम करते हैं। और अपने बच्चों को भी उत्तराखंड के ही स्कूलों में पढ़ा रहे हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है कि पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड के पहाड़ी स्कूलों में सैकड़ों स्कूल नेपाली बच्चों की संख्या के भरोसे ही चल रहे हैं। तथा इन नेपाली बच्चों तथा इनके अभिभावकों पर पहाड़ की अर्थव्यवस्था से लेकर चुनाव व्यवस्था और अन्य जुगाड़ व्यवस्था भी निर्भर होती जा रही है।
उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड के स्कूलों में 10 से कम छात्र संख्या पर स्कूल बंद कर दिए जाने का प्रावधान है। जिन स्कूलों में छात्र संख्या 10 से कम ,है उन स्कूलों के अध्यापक वहीं रूके रहने के चक्कर में आस-पास से नेपाली बच्चों को अपने स्कूलों में नाम लिखा देते हैं और किसी तरह स्कूल में ही बने रहते हैं। चुनाव लड़ने वाले जनप्रतिनिधियों के बूथ लीडर नेपालियों के वोटर कार्ड आदि बनवा रहे हैं तथा आधार कार्ड आदि बनाने में मदद कर रहे हैं।
कुछ काम धाम नहीं करने वाले उत्तराखंड के हजारों परिवार आज नेपाली परिवारों की खेती किसानी की बदौलत ही पहाड़ो में रुके हुए हैं। उनके खेतों में ठेके पर सब्जियां उगाने वाले नेपाली परिवार अपनी आमदनी में से एक बड़ा हिस्सा उन्हें भी देते हैं। इसके अलावा पहाड़ों में निवास कर रहे नेपाली मकान बनाने से लेकर मेहनत-मजदूरी और जड़ी बूटियों सहित वन्य जंतुओं के अवैध दोहन में लिप्त हैं।
पहाड़ों में कच्ची शराब का उत्पादन अधिकांश नेपालियों के ही भरोसे है। इस तरह से स्थानीय लोगों की शह और संरक्षण में पल-फल रहे नेपाली अपनी नागरिकता को पूरी तरह छुपा ले रहे हैं।
पुलिस प्रशासन जानबूझकर भी अनजान बना हुआ है। अथवा उसे कुछ पता ही नहीं है। हाल ही में कुछ दिन पहले हरिद्वार तथा ऋषिकेश सहित देहरादून की झुग्गी बस्तियों में कुछ बांग्लादेशी शरणार्थियों की तादाद बढ़ी है। संभवत: उसमें रोहिंग्या शरणार्थी भी हो सकते हैं।
पर्वतजन ने पौड़ी जिले के विभिन्न कस्बों से ऐसे ही कुछ उदाहरण के तौर पर नेपाली शरणार्थियों के आधार कार्डों की छायाप्रति के आधार पर जब पौड़ी पुलिस प्रशासन से संपर्क किया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था।
उन्हें यह तक नहीं पता कि आधार कार्ड सिर्फ भारतीयों के ही बनते हैं। अथवा कोई विदेश विदेशी नागरिक भी इन्हें हासिल कर सकता है या नहीं।
आधार कार्ड का चलन अभी नया- नया है तथा जो व्यक्ति उत्तराखंड में आकर पहली बार आधार कार्ड बनवा रहे हैं उनके बारे में फिर कोई जानकारी नहीं मिल पाएगी कि वह कहां के निवासी हैं।
वर्ष 2007 में भी तत्कालीन भाजपा सरकार में नेपालियों के बड़े स्तर पर फर्जी स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाए गए थे।
तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने अपने दो नेपाली नौकरों का न सिर्फ अपने घर के पते पर स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाया था, बल्कि उनके फर्जी हाई स्कूल के प्रमाण पत्र बनवा कर उन्हें संस्कृति विभाग तथा सूचना विभाग में नौकरी भी लगवा दी थी। बाद में वह उन दोनों नौकरों को प्रतिनियुक्ति पर अपनी सेवा में ले आए। यह दोनों नौकर अभी भी ईमानदारी की प्रतिमूर्ति कहलाने वाले भुवन चंद्र खंडूरी के घर में पानी पिला रहे हैं तथा बर्तन साफ कर रहे हैं।