रिपोर्ट कार्तिक उपाध्याय पर्वतजन
वैसे तो उत्तराखंड में आए दिन कुछ ना कुछ अजीबोगरीब घटनाएं होती ही रहती हैं,चाहे वह हमारे माननीय नेतागण एवं मंत्रियों की जुबान का फिसल जाना हो या फिर अधिकारियों की।
लेकिन फिर एक बार कुछ अजीब उत्तराखंड कि एक परीक्षा में हुआ है ।
बताते चलें कि वन आरक्षी भर्ती परीक्षा 2022 जिसे लोक सेवा आयोग करा रहा था,जिसके लिए उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा परीक्षा आयोजित की गई ।
इसी परीक्षा में परीक्षा पुस्तिका के सेट B में 66 नंबर पर एक प्रश्न रखा गया कि उत्तराखंड में वर्ष 2021-22 में कितना मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हुआ,जिसके लिए चार अलग-अलग विकल्प दिए गए ।
A-5130 हजार मीट्रिक टन
B-5367 हजार मीट्रिक टन
C-6090 हजार मीट्रिक टन
D-7900 हजार मीट्रिक टन
अब परीक्षा देकर आए अभ्यर्थियों ने जब इसका सही उत्तर खोजने का प्रयास किया गया तो उन्होंने पाया कि आर्थिक सर्वेक्षण उत्तराखंड के अनुसार इसका सही उत्तर 5367 मीट्रिक टन अर्थात प्रश्न पत्र में अंकित विकल्प B है।
परंतु लोक सेवा आयोग सवालों के घेरे में तब आ गया जब आयोग द्वारा उक्त भर्ती परीक्षा की उत्तर कुंजी वेबसाइट पर अपलोड करी गयी ।
क्योंकि आयोग की उत्तर कुंजी के अनुसार प्रश्न 66 का सही उत्तर C अर्थात 6090 हजार मीट्रिक टन दर्शाया गया ।
जिसके बाद से लगातार बेरोजगार युवाओं ने आयोग को सोशल मीडिया के माध्यम से निशाने पर लेना शुरू कर दिया। बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पवार ने आर्थिक सर्वेक्षण उत्तराखंड और आयोग द्वारा अपलोड की गई उत्तर कुंजी को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर चिपकाते हुए और आयोग के अधिकारियों को निशाने में लेते हुए लिखा कि “लगता है लोक सेवा आयोग के विषेशज्ञ दूसरे ग्रह से आते है, वन आरक्षी परीक्षा में सरकारी आंकड़ों को ही गलत ठहरा दे रहे हैं। जिस कारण कई मेहनती छात्रों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021 – 22 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड प्रदेश में 2021 – 22 में 5367 हजार मेट्रिक टन मत्स्य उत्पादन किया गया, परन्तु आयोग ना जाने किस आधार पर इस प्रश्न के उत्तर को गलत ठहरा रहा है।।इसके अतिरिक्त अलग-अलग परीक्षाओं में भी सही प्रश्नों को गलत ठहराया है जो कि एक नए भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।आयोग अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाएं नहीं तो लिस्ट ज्यादा लम्बी होने वाली है।
अब जब उत्तराखंड का आर्थिक सर्वेक्षण कुछ और बताएं और आयोग कुछ और तो ऐसे में सवाल तो दोनों पर ही खड़े होते हैं कि आखिर सही कौन है और कौन गलत।
क्या उत्तराखंड का आर्थिक सर्वेक्षण गलत है या लोक सेवा आयोग का उत्तर?