डा. दिनेश जोशी (रक्तमोक्षण एवं पंचकर्म विशेषज्ञ)
आयुर्वेद शरीर के शोधन पर यानि शरीर की शुद्धता पर बल देता है। यदि शरीर शुद्ध है तो कोई भी विषाणु या जीवाणु या अन्य कारणों से उत्पन्न रोग शरीर में कभी नहीं पनपते। यही आयुर्वेद और मॉड्रन चिकित्सा विज्ञान में अंतर है। रक्तमोक्षण भी आयुर्वेद के पंचकर्मों में गिना जाता है। प्राचीनकाल से ही इस क्रिया का आयुर्वेद में प्रयोग किया जा रहा है, आज भी कुछ परंपरागत लोग रक्तमोक्षण यानि दूषित रक्त को बाहर निकालना, जिससे विभिन्न रोगों का तुरंत नाश हो जाता है।
संजीवनी आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सालय में डा. प्रीति जोशी (एम.डी. आयुर्वेद) द्वारा रक्तमोक्षण एवं पंचकर्म चिकित्सा द्वारा इलाज किया जा रहा है, वह भी बहुत ही सुरक्षित ढंग से।
रक्त मोक्षण से इन रोगों में बहुत ही आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होता है:-
ग्रधृसी यानि कुल्हे से टांग तक असहनीय दर्द होना (Sciatica)
वातरक्त यानि गठिया बाय, सीरम युरिक एसिड का बढऩा (Gout, Serum Uric acid )
उच्चरक्तचाप यानि ब्लड ्प्रैशर का अधिक होना (High blood Pressure)। विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों जैसे की सोरीओसिस, एक्जिमा, एलर्जी , चेहरे की फ़ुन्सीयां आदि। प्लीहावृद्धि यानि तिल्ली का बढऩा लीवर का बढऩा आदि।
रक्तमोक्षण के मुख्य दो प्रकार होते हैं। शस्त्र द्वारा रक्तमोक्षण यानि किसी शस्त्र द्वारा काटकर रक्त का निकलना और शस्त्र रहित यानि जलौका (जोंक) द्वारा रक्त का निकलना।
शरद ऋतु में रक्त का निकलना सबसे उत्तम होता है (in the months of Aswin and Karitka), फिर वैद्य किसी भी ऋतु में युक्तिपूर्वक रक्त मोक्षण करवा सकता है।
आपने अक्सर असहनीय पीड़ा से जूझते हुए रोगियों को कई बार देखा होगा। ऐसी ही एक वेदना सियाटिका नामक रोग में भी उत्पन्न होती है, जिसका नाम ही गृधसी है। अर्थात वेदना के कारण व्यक्ति की चाल वल्चर यानि गिद्ध के समान हो जाये। मूलतया यह पीड़ा पैरों में होती है, लेकिन इसके पीछे का मूल कारण कमर से निकलने वाली सियाटिक नर्व में उत्पन्न सूजन है। यह दर्द कुछ इस प्रकार का होता है कि व्यक्ति चलने फिरने उठने एवं बैठने में भी असमर्थ होता है। दर्द के साथ पैरों में सुन्नता उत्पन्न होना इसका एक विशेष लक्षण है। यह दर्द सामान्यतया कमर से होता हुआ पैरों के पिछले हिस्से से होते हुए अंगूठे तक जाता है। यह दर्द दोनों पैरों में भी हो सकता है, लेकिन प्राय: रोगी एक पांव में वेदना बताते हैं। रोगी दर्द से बैचेन हो कभी बैठता है अथवा कभी उठ खड़ा होता है। न चलने से उसे राहत मिलती है और न ही बैठने से। इन सब कारणों से वह यहां वहां चिकित्सकों के चक्कर काटता है, फिर भी वह परेशान ही रहता है। जिस कारण वह एक प्रकार के मानसिक तनाव से अकारण ही घिर जाता है।
अब आइए एक दूसरी अवस्था की चर्चा करते हैं, जिसका नाम ‘जोड़ों का दर्द’ है। यह दर्द भी संधिवात एवं आमवात के रूप में रोगियों को कष्ट देता है। हम इन रोगों की विशेष चर्चा न करते हुए यहां सिर्फ और सिर्फ इनके सरल इलाज की चर्चा करेंगे, जो बड़ी ही सरलता से चिकित्सक द्वारा प्रयोग कर लाभ देख सकते हैं। उस चिकित्सा विधि का नाम है अलाबू प्रयोग। अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो बड़ी जटिल प्रक्रिया होगी और इसमें बड़ा ही खर्च आता होगा। जी नहीं, यह अत्यंत सरल एवं प्रभावी चिकित्सा है।