भारत के लिए यह खुशी की बात है कि उत्तराखंड में चीन सीमा की अंतिम चेकपोस्ट बाड़ाहोती तक भी सड़क पहुंच चुकी है।
इस सड़क का निर्माण बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ने कराया है। सेना के लिए अब राहें बेहद आसान हो गई है।
जोशीमठ से मलारी तक 60 किलोमीटर तक यह सड़क डबल लेन है तथा उससे आगे 40 किलोमीटर बाड़ाहोती तक कहीं कहीं डबल लेन तो कहीं सिंगल लेन है।
एक और मोटर मार्ग मलारी से 20 किलोमीटर नीति गांव तक बना है। यूं तो नीति गांव तक यह सड़क 2006 में ही बन चुकी थी, अब यह सड़क भी 40 किलोमीटर आगे नीति पास तक बन गई है। यहां पर सीमावर्ती चौकियां ग्यालडुंग आदि जुड़ी हुई है। यह सड़क भी कहीं डबल लेन तो कहीं सिंगल लेन है तथा अधिकांश हिस्सा पक्का हो चुका है।
अब सेना के लिए राशन और अन्य सैन्य उपकरण पहुंचाना काफी आसान हो गया है।
लद्दाख के गलवन घाटी में तनातनी के बाद उत्तराखंड के साढे तीन सौ किलोमीटर सीमा से सटे क्षेत्र आधारभूत सुविधाएं दुरस्त करने में तेजी आ गई है। 1962 के बाद से हमारे माणा और नीति पास जैसी अंतिम चेक पोस्ट तक सड़क पहुंचने के काफी बेहतर परिणाम होंगे। 1962 के युद्ध के बारे में लोग बताते हैं कि उस समय पीपलकोटी से लोगों ने सेना के उपकरण और रसद सामग्रियां अपने घोड़े खच्चर पर चेक पोस्टों तक पहुंचाई थी।
अंतिम चेकपोस्ट तक सड़क पहुंचने के बाद आसपास के सुदूर गांव को भी जल्दी ही सड़क मार्ग से जुड़ने की कार्यवाही शुरू हो सकती है। इससे सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा तंत्र और अधिक मजबूत हो सकेगा।