आज अखबारों के पन्ने इस जिम के स्तुति गान से भरे पड़े हैं। इसलिए कुछ विश्लेषण तो बनता है।
आखिर क्या अखबारों को पता नहीं था कि यह जिम बिना टेंडर के बनाया गया है !
इस जिम का नाम टीएसआर जिम रखा गया है। क्या किसी अखबार ने यह बताने की जरूरत महसूस नही की !
यह जिम जिस कंपनी ने बनाया है उस ने अभी तक कोई भुगतान नहीं लिया आखिर उसकी क्या प्लानिंग है !
इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यह जिम लगभग ₹42 लाख की लागत से बनाया गया है।
लेकिन इसके लिए नगर निगम ने कोई टेंडर आमंत्रित नहीं किए बल्कि अंदर खाने सेटिंग गेटिंग से इसका निर्माण करा डाला।
इसमें लगी मशीनें घटिया क्वालिटी की हैं और काफी ज्यादा दामों पर खरीदी गई हैं।
कोई सवाल न उठे इसलिए बाकायदा मुख्यमंत्री के हाथों इसका लोकार्पण भी करा दिया गया है।
इस मामले में नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। मेयर सुनील उनियाल गामा का दावा है कि टेंडर प्रक्रिया का पालन हुआ है लेकिन आधिकारिक पुष्टि इस बात की अभी तक नहीं हो पाई है।
पर्वतजन ने मुख्य नगर अधिकारी विनय शंकर पांडे से बात की तो उनका कहना था इस काम के लिए “नगर निगम से कोई भुगतान नही किया गया है। इसलिए किसी प्रकार के घोटाले या भ्रष्टाचार का सवाल ही खड़ा नहीं होता।”
पर्वतजन की जानकारी के अनुसार नगर निगम ने बड़ी तरकीब से ओपन जिम बनाने वाली कंपनी की एंट्री करने के लिए काम किया।
पहले उसे नगर निगम में गांधी पार्क 42लाख रुपए की लागत से ओपन जिम का निर्माण कराया गया। इसके बाद अगले कदम के तौर पर शहर में जितने भी पार्क है उनके निर्माण का ठेका दे दिया जाएगा। अथवा उन पार्क मे ओपन जिम का निर्माण बीओटी( बेल्ट ऑपरेट ट्रांसफर) पद्धति से इस संस्था से कराए जाने की तैयारी है। फिर बाद में जिम में लगाई गई मशीनों को वास्तविक कीमत से कहीं ज्यादा कीमतों पर भुगतान वसूल किया जा सकता है।
कंपनी को उपकृत करने के लिए चाहे कोई भी रास्ता निकाला जाए वह इसलिए अवैध होगा कि किसी न किसी तरीके से कंपनी को देहरादून के अन्य पार्को में निर्माण कार्य के लिए बिना टेंडर के काम भी दिया जाएगा। वरना इस बात का कोई आधार नहीं है कि कोई कंपनी देहरादून में बिना स्वार्थ के लगभग 42 लाख रूपए का एक ओपन जिम बना ले और इसका कोई फायदा भी ना ले। सवाल और संदेह है अभी और गहरे हैं जिनका खुलासा वक्त के साथ हो सकता है।