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खुलासा : लाॅकडाउन मे 59 लाख का घपला ! मंदिर सौंदर्यीकरण के नाम पर खुर्द-बुर्द करने पहुंचे। जनता ने दौड़ाया। गुपचुप स्वीकृति पर उठे सवाल

June 4, 2020
in पर्वतजन
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लॉक डाउन में सरकारी जमीन पर कब्जा।          नगर पंचायत की तहबाजारी क्षेत्र पर गुपचुप तरीके से हो रहे निर्माण कार्य को जनता की शिकायत पर पंचायत ने रोका।
दिनेशपुर( उधम सिंह नगर )  विशाल सक्सेना
 मंदिर निर्माण के लिए राज्य सरकार से प्राप्त एक करोड़ रुपयों के दुरुपयोग का मामला उस समय प्रकाश में आया जब एक विभाग के उधम सिंह नगर दिनेशपुर के कुछ लोग तहबाजारी क्षेत्र में गुपचुप तरीके से लिंटर की बुनियाद डालने पहुंचे। जहां वार्डवासियों ने जमकर विरोध किया और नगर पंचायत से शिकायत की। जिस पर मौके पर पहुंचे अधिशासी अधिकारी ने बिना अनुमति के काम कराए जाने की बात कही। तो विरोध के चलते टीम को बैरंग लौटना पड़ा।
दुर्गा मंदिर से खुला खेल
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री की एक गुपचुप स्वीकृति पर कुछ मंदिर के निर्माण के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने  58 लाख 64 हजार रुपए स्वीकृत किए थे। इसमें से दिनेशपुर नगर के दुर्गा मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए राज्य सरकार के संस्कृति विभाग से आर ई एस विभाग को साठ लाख रुपये प्राप्त हुए। लेकिन लोगों द्वारा  मंदिर निर्माण को लेकर विरोध हुआ तो मंदिर निर्माण रुक गया। लेकिन हलचल तब हुई जब उक्त कार्यदायी संस्था के लोग सोमवार को तहबाजारी क्षेत्र में एक लिंटर डालने के उद्देश्य से बुनियाद खड़ी करने लगे। जिस पर मोहल्ले की तमाम महिलाओं ने विरोध करना प्रारंभ कर दिया। किसी ने इसकी सूचना ईओ को दी।
 हंगामे के मध्य पहुंचे अधिशासी अधिकारी संजय कुमार ने कहा कि उक्त भूमि नगर पंचायत की है जबकि निर्माण मंदिर में होना था।
सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ रुपये झटके
बिना परमिशन के निर्माण पर सवाल
उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा बिना किसी सूचना के पंचायत की भूमि पर कार्य करना गलत है। वहीं लोगों का आरोप था कि प्राप्त राशि को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से पूजा कमेटी ने गुपचुप तरीके से योजना बनाकर खाली पड़ी भूमि पर निर्माण किया जाना था। विरोध होता देख आर ई एस के लोग वहां से खिसक लिए। जबकि दुर्गा पूजा कमेटी अध्यक्ष मौके पर नही पहुंचे। नहीं तो उनको भारी विरोध का सामना करना पड़ता, लिहाजा उन्होंने मामले से दूरी बनाए रखना ही ठीक समझा। लेकिन विभाग सहित कमेटी की कलई खुल गयी है। eo से जानकारी करने पर उन्होंने गोल मोल जबाब दिया।यहां बता दें कि इस अवैध निर्माण में नगर पचायत की स्थिति सन्दिग्ध नजर आती है।
स्वीकृति पर सवाल
संस्कृति विभाग से लाए एक करोड़। साठ लाख एक ही मंदिर के सौंदर्यीकरण पर खर्च !!
नगर के तह बाजारी क्षेत्र में एक दुर्गा मन्दिर लगभग 40 वर्षों से बना है, जिसको एक दुर्गा पूजा कमेटी संचालित करती है। प्रति वर्ष 2 बार पूजा होती है जिसमे मिट्टी की मूर्ति बनाई जाती है 5-6 दिन का भारी मेला लगता है। तत्पश्चात मूर्ति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। सार्वजनिक चंदे से बहुत ही सुंदर मन्दिर बना हुआ है।
कब और कैसे हुई स्वीकृति, पता नही
शिक्षा मंत्री जी के कुछ चेलों ने उक्त मन्दिर को तोड़ कर भव्य मन्दिर के नाम पर संस्कृति विभाग से इस मन्दिर के सौन्दर्यीकर्ण के नाम पर 59 लाख रुपया मंगवा लिया। इसकी स्वीकृति सीएम त्रिवेंद्र से 2018 में करा ली थीं चुपके से। इस घोषणा का भी किसी को पता नहीं चला और न ही कहीं न्यूज छपी।इसी घोषणा में दो मन्दिर और भी थे अब उन्ही चेलों ने मिल कर ये सारा पैसा RES विभाग को दिलवा दिया। उस विभाग ने टेंडर भी करा दिये।
 जब ठेकेदार काम शुरू करने आया तो जनता ने दौड़ा लिया कि यहां तो बाजार लगता है ये जमीन नगर पालिका की है।ईओ को भी बुला लिया उन्होंने भी कहा जमीन कमेटी की नहीं पालिका की तह बाजारी की है और इस निर्माण का हमे पता भी नहीं है। काम रुक गया। किन्तु अब पता चला है कि मन्दिर निर्माण फिर शुरू होने वाला है और इसको लम्बा चौड़ा भी किया जा रहा है। यह गरीब परिवारों को हटाया भी जा रहा है। जो कि गलत है।
दुर्गा मंदिर का इतिहास
यहां आपको बताते चलें कि सन 1947,के बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान के विस्थापित बंगाली समुदाय के लोगों को वर्ष 1951-52 में पुनर्वास विभाग द्वारा यहां पुनर्वासित किया गया था। तब नगर क्षेत्र में बसे लोगों के लिए 102 पट्टे स्वीकृत किये गये थे। उसी समय इस दुर्गा मन्दिर और इसके उत्तर की ओर काली मंदिर को भी भूमि दी गई थी। जिस पर विगत वर्षों से मन्दिर बने हुए हैं।पूर्व में ये क्षेत्र ग्राम सभा था तथा ND तिवारी जी का प्रिय चुनाव क्षेत्र था।
 UP के मुख्यमंत्री काल मे तिवारी जी ने इस नगर को 10 सितंबर 1984 को टाउन एरिया बना  दिया। और सारी सार्वजनिक सम्पत्तियाँ टाउन एरिया को स्थानांतरित हो गई जिसमें 102 पट्टे और तह बाजारी क्षेत्र भी सम्मलित है। उक्त तह बाजारी क्षेत्र में शनिवार को  हाट बाजार लगता है, जिसका ठेका नगर पंचायत देती है जो लगभग 6-7लाख रुपये प्रति वर्ष होता है।
 इस भूमि से दुर्गा पूजा कमेटी का केवल इतना सम्बन्ध है कि वो वर्ष में दुर्गा पूजा  आयोजन के समय   4,5 दिन का मेला लगाती है।किन्तु बिना कागजों के उक्त भूमि को कमेटी द्वारा अपना बता कर सरकार को गुमराह कर 59 लाख रु. की राशि स्वीकृत कराना आश्चर्यजनक है।
इस घपले घोटाले को लेकर बड़े सवाल
इन सब पर कई सवाल खड़े होते हैं
2018 में मुख्य मंत्री जी की उक्त घोषणा का समाचार किस अखबार में छपा ?
इतनी बड़ी घोषणाएं चुपचाप क्यों?
संस्कृति विभाग अल्मोड़ा को इस मंदिर के सौन्दर्यीकरण के लिए किसने प्रस्ताव भेजा ?
जैसा बताया जा रहा है कि भव्य मंदिर बनेगा तो अतिरिक्त भूमि भी घेरी जाएगी जो कि नगरपालिका की सरकारी भूमि है उसकी एनओसी न.प. से ली गई है ?
सरकार निकायों को निजी आय के स्रोत बढ़ाने को पत्र लिखती रहती है, लेकिन जब ये भूमि घिर जाएगी तो न.प. की आय घटेगी इसका जिम्मेदार कौन ?
निकाय में अधिशासी अधिकारी सरकार का नुमाइंदा होता है निकाय को हानि न हो ये उसकी जिम्मेदारी होती है यहां अधिशासी अधिकारी चुप क्यों हैं ?
मन्दिर के उत्तर दिशा में निवास कर रहे दो परिवारों को कमेटी द्वारा हटने का मौखिक फरमान जारी कर दिया गया है, जबकि उसमे एक परिवार की महिला विधवा है और उसके पुत्र का एक हाथ कटा हुआ है, वह विकलांग है और उस भूमि से मन्दिर कमेटी का कोई सरोकार नहीं है उसको हटाने का औचित्य क्या है ?
ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता  इस धनराशि की मांग संबधी कोई भी पत्र दुर्गा पूजा कमेटी को नहीं दिखा सके बल्कि उन्होंने कहा कि हमने उक्त भूमि सम्बधी पत्र कमेटी मागा था किन्तु कमेटी ने नहीं दिया क्यों?
ऐसा प्रतीत होता है कि नगर पंचायत की भी मिली भगत है इसीलिए अधिकारी चुप हैं।
इस मन्दिर निर्माण को रोक कर इस प्रकरण की जांच सरकार को करानी चाहिए।
कुल मिला कर देश मे इस संकट काल मे जनता की जान बचाने की प्राथमिकता होनी चाहिए न कि मन्दिर के नाम पर सरकारी धन को ठिकाने लगाना।

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