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परदाफाश : पकड़ा गया स्वरोजगार योजना का बड़ा भोकाल। ऐसे टरका रहे बेरोजगारों को

परदाफाश : पकड़ा गया स्वरोजगार योजना का बड़ा भोकाल। ऐसे टरका रहे बेरोजगारों को

मनोज तिवारी

Trivendra Singh Rawat जी , आप होटल लाइन मे काम करने वाले युवाओं को अपमानित करके बोल रहे थे कि बरतन मांजने की मानसिकता छोड़नी होगी। पर ये देखो ये है आपके रोजगार के जुमले।।

यही कसीदे गढ़ रहे थे आप , लेकिन यहां ये सच है जो आपके सामने है।

पौड़ी के कत्युर गांव के आनंदलाल ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत 9,50,000 के लोन के लिए अप्लाई किया था। भारतीय स्टेट बैंक चाकीसैण ने उनका लोन यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया कि आवेदक के पास वांछित स्वरोजगार योजना का एक्सपीरियंस नहीं है, इसलिए बैंक को नहीं लगता कि उनका उद्योग चल पाएगा।”

अहम सवाल यह है कि बैंक एक्सपीरियंस पर सवाल उठाने वाला कौन होता है !

उद्योग विभाग वांछित उद्योग के लिए बाकायदा प्रशिक्षण भी देता है। जब उद्योग विभाग ने लोन पास कर दिया तो फिर बैंक द्वारा लोन निरस्त करना बेरोजगारों के साथ कितना बड़ा मजाक है !

रोजगार के नाम पर मजाक

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की सच्चाई दिखाता ये रिजेक्शन लेटर, यहाँ तक पहुंचने के लिए क्या – क्या  कार्य किये:

1) ऑनलाइन आवेदन

2) प्रोजेक्ट रिपोर्ट

3) फिर इंटरव्यू

4) बैंक के पास फाइल गई, पूरी जांच पड़ताल हुई। बैंक से बताया अपने अकाउंट में 50 हजार रखो और एक-दो महीने बाद बताया कि आपके पास अनुभव नहीं। और ये बैंक बता रहा है।

योजनाएं केवल अपने चहेतों को ही देनी है तो बंद करो जनता के लिए ड्रामा। आजतक कितने लोगों को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का फायदा दिया और कौन हैं वो लोग?

भोले भाले लोगों समझा दिया जाता है कि भाई सरकार ने तो कर दिया लेकिन बैंक ने रोक दिया है तो हम क्या कर सकते हैं !

अहम सवाल यह है कि क्या बैंक सरकार के अधीन नहीं आते हैं !

क्या बैंकों पर सरकार का कोई जोर नहीं !

यदि बैंकों को इस तरह से खुला छोड़ दिया गया है तो फिर हर महीने होने वाली (एसएलबीसी) स्टेट लेवल बैंकर्स कमिटी की बैठकें क्यों होती हैं!

क्या उनमें इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जा सकता !

यदि कोई नहीं चुका पाए तो उसके लिए फिर लोन का बीमा क्यों कराया जाता है !

आखिर सब्सिडी की 30% रकम क्या बैंक के लिए एक तरह की गारंटी नहीं है !

क्या सरकार लोन देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बैंकों में अपने सरकारी खाते खुलवाने से लेकर अन्य सुविधाएं नहीं दे सकती !

क्या इन सब चीजों को मिलाकर बेरोजगारों को लोन देने के लिए प्रेशर नहीं बना सकती !

यदि सरकार यह सब नहीं कर सकती तो फिर सरकार अपनी चहेतों को सहकारी बैंकों में डायरेक्टर बनाकर प्रभावशाली लोग को बिना गारंटी के करोड़ों रुपए का लोन कैसे बंटवाती है !

सरकार अच्छे खासे सहकारी बैंकों को डुबोने पर क्यों तुली हुई है।

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