गौरतलब है कि सिटी मजिस्ट्रेट देहरादून ने दो दिन पहले ही ट्रैफिक व्यवस्था तथा सुरक्षा संबंधी तर्कों का हवाला देते हुए इस धरना स्थल को अधोईवाला शिफ्ट करने संबंधी पत्र जारी किया था तथा ऐलान कर दिया था कि अब परेड ग्राउंड के बगल में स्थित इस धरना स्थल के लिए कोई अनुमति नहीं दी जाएगी।
इसके अलावा 9 तारीख की रात को पुलिस ने यह पूरा धरना स्थल जेसीबी की सहायता से खुदवा दिया था।
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विभिन्न सामाजिक संगठनों में और जनता में इस बात के प्रति आक्रोश है कि सरकार कुतर्कों का सहारा लेते हुए लोकतंत्र का गला घोंट रही है।
पहला तथ्य यह है कि लगभग 5 फीट चौड़ी इस रोड के किनारे पर यह धरना स्थल स्थित है और यह रोड भी वन वे है। ऐसे में ट्रैफिक संबंधी अव्यवस्था का तो सवाल ही खड़ा नहीं होता।
दूसरा तथ्य यह है कि इस धरना स्थल के बगल में हिंदी भवन के नाम से एक कम्युनिटी हॉल है, जहां पर कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं और भाजपा का महानगर कार्यालय भी इसी सड़क के किनारे पर स्थित है जहां आए दिन मीटिंग और जलसेआयोजन आदि होते रहते हैं।
तीसरा तथ्य यह है कि आज तक किसी ने भी सिटी मजिस्ट्रेट को इस रोड के किनारे ऐसे आयोजन के चलते ट्रैफिक की अव्यवस्था की शायद ही कोई शिकायत की होगी। ऐसे में ट्रैफिक व्यवस्था का तर्क देना किसी के भी गले नहीं उतर रहा।
पांचवा तथ्य यह है कि आमतौर पर इस तरह के धरना स्थल सचिवालय अथवा विधानसभा के ईद गिर्द ही बनाए जाते हैं, ताकि जिम्मेदार अधिकारियों की नजर में इस तरह के आयोजन लगातार बने रहें और भी इसको लेकर सोचें, किंतु शहर के एक किनारे पर स्थित अधोईवाला में धरना स्थल शिफ्ट किए जाने से जरूर ट्रैफिक संबंधी व्यवस्था और सुरक्षा संबंधी व्यवस्था पर सवाल खड़े हो जाएंगे।