देहरादून: कोरोना से जंग के मोर्चे पर न केवल एलौपैथी विभाग ही डटा है, बल्कि आयुर्वेदिक विभाग के कर्मठ एवं जुझारू चिकित्सक एवं स्टाफ भी फ्रन्टलाइन पर काम कर रहे हैं। राजधानी देहरादून समेत प्रदेश के अन्य जिलों में बनाए गए क्वेरनटाइन सेंटरों में आयुर्वेदिक चिकित्सकों एवं स्टाफ को तैनात किया गया है।
देहरादून एवं नैनीताल के हाई रिस्क एरिया वनभूलपुरा क्षेत्र एवं मस्जिदों में भी आयुर्वेद विभाग की टीमों को तैनात किया गया है।
राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ, उत्तराखंड के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ० डी० सी० पसबोला द्वारा बताया गया कि प्रदेश में आयुर्वेदिक चिकित्सकों एवं कार्मिकों द्वारा वार रूम, आईडीएसपी, क्वेरनटाइन सेंटरों, आइसोलेशन वार्डस आदि टीमों में प्रशासन के निर्देशों के अनुरूप पूर्ण सहयोग दिया जा रहा है।
आयुर्वेद-यूनानी डॉक्टरों का बीमा नहीं
सरकार ने राज्य में कोरोना मरीजों के इलाज, सर्विलांस व स्क्रीनिंग में आयुर्वेद एवं यूनानी डॉक्टर व कर्मचारियों की ड्यूटी तो लगा ली। लेकिन इन विभागों के डॉक्टरों एवं कर्मचारियों को बीमा के दायरे में नहीं लिया गया है। आयुर्वेद, यूनानी डॉक्टरों एवं कर्मचारियों ने इसकी शिकायत की है। इसके बाद उत्तराखंड चिकित्सा परिषद ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इन डॉक्टरों एवं कर्मचारियों को भी बीमा के दायरे में लाने का अनुरोध किया है। उत्तराखंड चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष दर्शन कुमार शर्मा, परिषद के निर्वाचित सदस्य डॉ० महेन्द्र राणा, “डॉ० हरिद्वार शुक्ला ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा के डॉक्टर एवं कर्मचारी एलोपैथी डॉक्टरों वो अन्य कर्मचारियों की भांति ही कोरोना मरीजों के सम्पर्क में जा रहे हैं। कोरन्टाइन सेंटरों में काम कर रहे हैं।
ऐसे में इन स्वास्थ्य कर्मियों को भी सुरक्षा उपकरण एवं बीमा जैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए सभी सरकारी आयुर्वेद एवं यूनानी डॉक्टरों को मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के रखते हुए इलाज में लगाने का निर्णय लिया है। ऐसे में इन डॉक्टर कर्मियों को भी एलोपैथी के समान ही बीमा की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी संघ के प्रदेश महासचिव डॉ० हरदेव रावत*, उपाध्यक्ष डॉ० अजय चमोला ने भी सरकार से विभाग के डॉक्टरों एवं कर्मचारियों को बीमा व अन्य सुरक्षा देने का अनुरोध किया है।