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एक्सक्लूसिव : प्रवासियों की लाचारी, कहीं पड़ न जाए भारी

April 28, 2020
in पर्वतजन
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जगदम्बा कोठारी
देशव्यापी लाॅक डाउन को एक माह से जादा समय हो चुका है और अभी भी विदेशों सहित देश भर मे हजारों की तादात मे होटलियर कर्मी और अन्य कामगार प्रवासी उत्तराखंडी जगह जगह फंसे हैं। त्रिवेंद्र सरकार अपने इन फंसे हुए नागरिकों वापिस लाने मे पूरी तरह से नाकाम थी और रही है। अब स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि फंसे पड़े लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं लेकिन प्रदेश के मुखिया द्वारा इन लोगों की कोई सहायता न करना दुर्भाग्यपूर्ण और अमानवीय है। पर्वतजन लगातार इन लोगों की आवाज सरकार तक पहुंचा रहा है लेकिन जब मुखिया ही मौन तो सुध ले कौन! इन हजारों असहाय लोगों का अब त्रिवेंद्र सरकार से भरोसा उठ चुका है और इनके चिंतित परिजन जमकर त्रिवेंद्र रावत को खरी खोटी सुना रहे हैं।

पर्वतजन की जानकारी के अनुसार कई जनप्रतिनिधियों को उनके क्षेत्रों के दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए प्रवासी तथा उनके परिजन खूब खरी-खोटी सुना रहे हैं और उन्हें अगले चुनाव में परिणाम भुगतने की भी चेतावनी दे रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री को चारों ओर से घेरे हुए सलाहकार की टीम उनको कह रही है कि जो जहां है उसे वही रहने दो उनके फंसे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

सोशल मीडिया पर चौतरफा हो रही छीछालेदर के चलते एसडीआरएफ ने आज प्रयागराज में फंसे 75 छात्रों को वापस लाने के लिए 4 बसें रवाना की है।

लेकिन पिछले एक माह से देश के इंदौर, अहमदाबाद, मुंबई, हरियाणा आदि दर्जनों जगहों पर फंसे हुए उत्तराखंड के लोग एक माह से वापस लौटने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन उनकी न तो वहां पर कोई खाने पीने की व्यवस्था की जा रही है और ना ही उन्हें वापस लाने के लिए कोई आश्वासन तक ही दिया गया है।


लाॅक डाउन के कारण फंसे पड़े लोग लगातार पर्वतजन से संपर्क कर सहयोग की मांग कर रहे हैं। भुखमरी की कगार पर आये गुजरात मे फंसे एक युवक ने पर्वतजन को पत्र भेजकर मुख्यमंत्री से घर वापिसी की मांग की है। उनका कहना है कि अहमदाबाद और साबरमती जिले मे पचास से साठ युवक भूखे प्यासे दिन काट रहे हैं। वही मुंबई के गांवदेवी, मुलुंड, हनुमान नगर, ठाणे मे भी यह स्थिति है जहां कौथीग फाउंडेशन के सहयोग से लगभग 1400 लोगों को प्रतिदिन भोजन करवाया जा रहा है।

दिल्ली मे भी सामजिक संगठन उत्तराखंड आवाज लगभग हजार लोगों के खाने की व्यवस्था हर रोज कर रहा है। ऐंसे ही हजारों बेघर उत्तराखंडी अन्य राज्यों मे भी फंसे हैं। इन लोगों को उत्तराखंड सरकार से कोई सहायता न मिलने के कारण इनसे सरकार के प्रति भारी रोष पनपने लगा है। लोगों के परिजनों का भी रो रोकर बुरा हाल है और मुख्यमंत्री क्या मंशा लेकर बैठे हैं यह कोई नहीं जानता।

महामारी के इस दौर मे उत्तराखंड को लगातार एक कुशल नेतृत्व की कमी खलती रही है। सीएम रावत अब जनता को बोझ लगने लगे हैं और पहले भी लोग त्रिवेंद्र रावत को हटाने की कई बार मांग कर चुके हैं लेकिन संघ के करीबी होने का लाभ उन्हे हर बार मिलता रहा। त्रिवेंद्र रावत के अनुचित फैसलों की मार सीधे प्रदेश की गरीब जनता पर पड़ रही है। होटलियर कर्मियों के हितों के लिए कार्य करने वाले घनसाली विधानसभा के सामाजिक कार्यकर्ता बीर सिंह राणा सरकार और उनके विधायकों पर गुस्सा निकालते हुए कहते हैं कि ‘मेरा अपना भी दुर्भाग्य है कि मैं भी उत्तराखंड के उस सीमांत जिले से हूं जहां कि सांसद विलुप्तप्राय जीवों कि श्रेणी मे है और विधायक भी ऐसे जिन्हे खुद भी नही पता कि सोशल दूरी मे कितना दूर रहना है, मास्क मुंह पर पहनना है या गले मे लटकाना है विधानसभा घनसाली से अधिकांश लोग होटलों मे नौकरी करते हैं चुनाव हो या कोई अन्य कार्य सबसे पहले यही लोग अग्रपंक्ति मे मौजूद रहते हैं परंतु आज इनकी सुध लेने वाला कोई नही है, चंद मास्क बांटकर फोटो खिंचाकर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करने वाले प्रतिनिधियों से प्रवासी होटलियरों का रोष जायज भी है जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना होगा’।
प्रदेश के अन्य लोग भी अब सोशल मीडिया पर सीएम रावत के खिलाफ जमकर भड़ास निकाल रहे हैं। इसके लिए बाकायदा फेसबुक पर ‘त्रिवेंद्र हटाओ प्रदेश बचाओ’ नाम से पेज भी तैयार हो चुका है जिसमे हजारों की संख्या मे फाॅलोवर बन चुके हैं और सैकड़ों प्रतिदिन जुड़ रहे हैं। सोशल मीडिया मे लोग मुख्यमंत्री को कोस रहे हैं और इनके फैसलों का जमकर मजाक बनाया जा रहा है।राजनितिक पंडितों ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि अगले विधानसभा चुनाव मे सीएम अपनी विधान सभा सीट बचाना तो दूर भाजपा के बहुमत को भी संकट डाल देंगे और इनके लापरवाह रवैया का फायदा सीधे हरीश रावत को मिलेगा। वर्तमान समय मे प्रदेश के भीतर हजारों की संख्या मे प्रवासी होटलियर और अन्य कामगार लोग हैं जिनके परिवार सहित वोटों की संख्या लाखों मे हैं और ये सीधे तौर पर सीएम त्रिवेंद्र रावत से खफा हैं। ऐसे मे अगले विधानसभा चुनाव मे कहीं प्रवासी उत्तराखंडियों के कोप का भाजन उत्तराखंड भाजपा हो भी जाये तो इसमे कोई हैरानी नहीं होगी।


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