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मराठी समाज के बच्चों ने “रंगोली आंदोलन रचनात्मक मुहिम के तहत” मुम्बई राजभवन में मनाई फूलदेई

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने अपनी देहरी पर खड़े होकर नौनिहाल का किया स्वागत । बच्चों ने मुख्यमंत्री की देहरी पर बरसाए फूल। वर्ष 2004 से लगातार इस अनूठी परम्परा को बचाने में जुटे हैं समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी। हिमालय का अनूठा बालपर्व फूल-फूलमाई फूलदेई संरक्षण मुहिम के 16 वें वर्ष में देश व विदेश में भी मनाया जाने लगा है अब यह पर्व।

March 14, 2020
in पर्वतजन
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मनोज नौडियाल

देहरादून। फूलदेई “फूल-फूलमाई” का पर्व हर वर्ष चैत्रमास की संक्रांति से आरंभ होता है । फूल संक्रांति या मीन संक्रांति से आरम्भ होने वाले यह बाल पर्व प्रकृति और मनुष्य बीच पारस्परिक सम्बन्धों का प्रतीक भी है । इस पर्व पर बच्चे जंगलों से फूल एकत्रित कर सुबह सुबह घर-घर जाकर देहरियों / दरवाजों पर फूल डालते हैं । नौनिहालों द्वारा की जाने वाली यह पुष्पवर्षा सुख समृद्धि व संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। यही वजह है कि ऋतुराज के इस पर्व पर क्या आम व क्या खास सबको अपने-अपने घरों पर आने वाले बच्चों की टोली का इंतजार रहता है। और जब बच्चे द्वार पर आते हैं तो उन्हें उपहार में पारंपरिक रूप से गुड़, चावल, गेहूं या बच्चों के पसंद के अन्य उपहार भी बांटे जाते हैं।

आज इसी क्रम में देहरादून में “रंगोली आंदोलन एक रचनात्मक मुहिम” के तहत बच्चों की एक टोली मुख्यमंत्री आवास पहुंची । जहां मुख्यमंत्री ने अपने द्वार पर आए बच्चों को पहले टीका लगाया इस दौरान नौनिहाल भी फूल-फूलमाई दाल दे चौंल दे, खूब-खूब खज्जा ..! गाते हुए मुख्यमंत्री की देहरी को फूलों से सजाते रहे । मुख्यमंत्री रावत ने शगुन में बच्चों को परम्परानुसार एक एक मुट्ठी चावल व गेहूं भेंट किये व उनके मनपसंद अन्य उपहार भी भेंट किये।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत बच्चों के स्वागत में अपने द्वार पर खड़े रहे । मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि आज फूलदेई सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाई जा रही है, जिसके पीछे रंगोली आंदोलन के संस्थापक शशि भूषण मैठाणी की 16 वर्षों से लगातार चली आ रही उनकी जिद्द है । मुख्यमंत्री ने कहा कि शशि भूषण मैठाणी के प्रयासों से आज गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में फूलदेई एक हिमालयी पर्व पर्यावरण संरक्षण के तौर पर मनाया जा रहा है।
वहीं लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी शशि भूषण मैठाणी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि फूलदेई को मैठाणी ने पर्यावरण से जोड़कर हिमालयी पर्व प्रचारित कर न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के अन्य प्रांतों व विदेशों में रह रहे लोगों को इस लोकपर्व की ओर आकर्षित किया है । जिसकी सराहना की जानी चाहिए।

हुई एक और शुरुआत उत्तराखंड में मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र में राज्यपाल ने किया “रंगोली आंदोलन” पुष्प एवं फल वृक्षों के रोपण का शुभारम्भ शुभारंभ :

शशि भूषण मैठाणी पारस ने बताया कि इस बार से अब एक नई शुरुआत की जा रही । अब फूलदेई पर्व पर प्रत्येक वर्ष बच्चे घर घर जाकर लोगों से पुष्प वृक्ष व फल वृक्षों के रोपण कार्यक्रम को भी आगे बढ़ाएंगे । और इसकी शुरुआत उत्तराखंड में मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा बच्चों संग अमलताश, गुलमोहर, आड़ू आदि के पौधों के रोपण के साथ फूलदेई पर्व के शुभ अवसर कर दी गई है।
जबकि महाराष्ट्र राजभवन मुम्बई में मराठी समाज के बच्चों संग राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी अपने परिसर में फल एवं पुष्प वृक्षों (पौधों) के रोपण परम्परा का शुभारंभ किया।

फूलदेई के मौके पर कॅरोना वायरस से बचाव का संदेश । उपहार में बांटे सैनीटाइजर :

पूरी दुनिया कॅरोना वायरस की दहशत में इस बीच उत्तराखंड फूलदेई पर्व को इस बार बेहद सूक्ष्म एवं सांकेतिक रूप से ही मनाया गया। रंगोली आंदोलन के संस्थापक शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि फूलदेई में शामिल बच्चों को यूथ आइकॉन क्रिएटिव फाउंडेशन के संरक्षक डॉ. महेश कुड़ियाल द्वारा उपलब्ध कराई गई सैनीटाइजर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के हाथों बंटवाई गई । मुख्यमंत्री ने स्वयं बच्चों को सैनीटाइजर लगाने का तरीका अपने हाथों में सैनीटाइजर लगा कर बताया । मुख्यमंत्री ने कहा कि कॅरोना से डरने के बजाय सावधानी बरतने की जरूरत है । बच्चों के मार्फ़त संदेश दिया गया कि वह अपने आस-पास सबको साफ सफाई के लिए जागरूक करें।

इस वर्ष से महाराष्ट्र राजभवन में मराठी समाज के बच्चों द्वारा भी फूलदेई मनाने की परम्परा हुई शुरू :

इस बार हिमालयी फूलदेई पर्व की धूम समुद्र के तट पर रही । इस वर्ष से महाराष्ट्र के राज्यपाल महोदय के सहयोग से “रंगोली आंदोलन ” से जुड़े मराठी समाज के लोगों व बच्चों द्वारा राजभवन मुम्बई में भी फूलदेई पर्व धूम-धाम से मनाया गया। बच्चों की टोली हाथों में फूलों की टोकरी लेकर सुबह 9 बजे राजभवन पहुंचे । जहां उन्होंने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की मौजूदगी में महाराष्ट्र राजभवन की देहरी पर “फूल-फूलमाई दाल दे चौंल दे खूब खूब खज्जा !” गाते हुए पुष्प वर्षा की । इस बीच “रंगोली आंदोलन एक रचनात्मक मुहिम” की ओर से राज्यपाल को समौण में एक पुष्प वृक्ष व एक फल वृक्ष भेंट किए गए । जिन्हें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राजभवन में बच्चों के समक्ष ही रोपित भी किया । रंगोली आंदोलन के संरक्षक शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि अब प्रत्येक वर्ष फूलदेई के इस शुभ मौके पर पर्यावरण संरक्षण की मुहिम भी चलाई जाएगी जिसका शुभारंभ उत्तराखंड में मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र में राज्यपाल के हाथों करवा ली गई है।

मुम्बई में फूलदेई टोली में शामिल बच्चों ने नवीं मुम्बई के भिन्न-भिन्न घरों में भी जाकर फूल बरसाए। फूलों के इस पर्व को लेकर मराठी समाज के लोगों में भी खासा उत्साह देखने को मिला।
मुम्बई में समाजसेवी हितेश ओझा एवं आर. श्वेताल गीतांजलि के मार्गदर्शन में बच्चों की टोली राजभवन के अलावा अन्य क्षेत्रों में गए । इस मौके पर बच्चों को हिमालयी परम्परानुसार महाराष्ट्र के राज्यपाल व स्थानीय लोगों ने खूब उपहार भी भेंट करेंगे । जिसे पाकर बच्चे भी बेहद उत्साहित नजर आए । और उन्होंने अब हर साल पहाड़ की फूलदेई को मनाने का संकल्प भी लिय।

16 वर्ष पहले फूलदेई संरक्षण अभियान की शुरुआत हुई सीमांत जनपद चमोली से :

“रंगोली आंदोलन” मुहिम के विचारक व फूलदेई पर्व के संरक्षक शशि भूषण मैठाणी पारस ने बताया कि वर्ष 2004 में सीमांत जनपद चमोली में मैंने अपने गांव मैठाणा, के अलावा गोपेश्वर नगर क्षेत्र व आसपास के गांवों जैसे पपडियांणा, पाडुली, मंडल, सगर, वैरागणा व हळदापानी , सुभाषनगर से इस अनूठे पर्व को पुनर्जीवित करने की कोशिश में अपनी एक मुहिम चलाई, जिसमें कई स्कूलों का साथ मिला।
शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि लंबे समय तक कि गई कोशिशों के बाद भी जब बहुत ज्यादा उत्साह न स्थानीय लोगों ने दिखाया और न ही प्रशासन में या शासन में तो नतीजतन मैंने इस पर्व को प्रदेश के प्रथम द्वार राजभवन व मुख्यमंत्री आवास के अलावा वरिष्ठ अधिकारियों की देहरियों व मीडिया संस्थानों के कार्यालयों में बच्चों की टोली संग मनाने का संकल्प लिया।

वर्ष 2014 से राजभवन व मुख्यमंत्री आवास से नई परम्परा शुरू की

समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी ने जानकारी दी कि 10 साल बाद वर्ष 2014 में मेरे इस अभियान को मेरे एक मित्र रमेश पेटवाल ने 21 टोकरियों व 15 किलो फूल उपलब्ध कराने से की । और स्कूलों में मैपल बियर व दून इंटरनेशनल के बच्चों की टोली राजभवन व मुख्यमंत्री आवास पहुंचे । तब शहर में हर एक के लिए यह उत्सव नया था । मीडिया के संस्थानों में बच्चों की अलग-अलग टोली भेजने की परंपरा भी आरम्भ की । मीडिया ने भी बढ़-चढ़कर सहयोग किया । जिसका नतीजा आज यह हुआ कि वर्तमान में 27 स्कूल देहरादून के इस अभियान से जुड़ गए हैं।

अब देश विदेश तक विस्तार तक चर्चित हो गई फूलदेई

शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली के अलावा विदेशों में हिमालय के इस खूबसूरत पर्व को मनाने के लिए कहीं मैंने कहीं स्वयं लोगों ने भी मुझसे संपर्क कर अभियान में शामिल होने की इच्छा जताई । वर्ष 2015 में महाराष्ट्र के नागपुर में भारत पटेल व वर्ष 2017 में गुजरात में किरीट भाई मेहता के सहयोग पर्यावरण संरक्षण से जुड़े खूबसूरत पर्व फूलदेई को मनाने की शुरुआत की गई । जिसके बाद वहां भी बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना आरम्भ किया।

मिशन अभी पूरा नहीं हुआ, आगे और जिम्मेदारी पूर्वक देश व विदेशों तक हिमालय व पर्यावरण के सम्मान हेतु लोगों को जोड़ना है :

रंगोली आंदोलन के प्रणेता व फूलदेई पर्व के संरक्षक शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि अभी मिशन पूरा नहीं हुआ है । उन्होंने कहा मेरा संकल्प है कि एक न एक दिन इस खूबसूरत बालपर्व को राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर पर जन-जन के लिए स्वीकार्य बनाना। क्योंकि मेरा मानना है कि एक यही पर्व है कि जो एक ऋतु के आगमन व दूसरी ऋतु की विदाई पर प्रकृति व पर्यावरण के सम्मान में प्राकृतिक रूप से मनाया जाता है । खास बात यह है कि यह धरती मुकुट हिमालय से आरंभ है । इस पर्व को पर्यावरण के सम्मान के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए । हिमालय का सम्मान का मतलब है पूरी धरा का सम्मान।

मीडिया के रचनात्मक व सकारात्मक सहयोग के बिना इस मुकाम को हासिल करना असंभव था मेरे लिए :

सबसे पहले अपने सभी प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक, डिजिटल एवं सोशल मीडिया से जुड़े पत्रकार बंधुओ का विशेष धन्यवाद कि उन्होंने विगत 16 वर्षों में जो रचनात्मक व सकारात्मक सहयोग हिमालय की इस अनूठी परम्परा को देश विदेश में जन-जन तक पहुँचाने का काम किया। बिना मीडिया के सहयोग से इस मुकाम तक पहुंचना बेहद असम्भव था। आज खुशी होती है इस बात की कि, अब तमाम एन जी ओ भी रंगोली आंदोलन से प्रेरित होकर मुहिम का हिसा बन गए हैं । पहाड़ों में भी कुछ एक हिस्सों को छोड़कर इस पर्व को मनाने की परमपरा लगभग नब्बे के दशक से समाप्त होने लगी थी । लेकिन आज अब न सिर्फ पहाड़ी समाज बल्कि हर धर्म हर जाति हर क्षेत्र के बच्चे धीरे-धीरे इस पर्व के साथ जुड़ रहे हैं ।उत्तराखंड सहित गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, व उत्तर प्रदेश में भी मीडिया के मदद से मुझे लोगों को हिमालयी पर्व फूलदेई की खूबसूरती को समझाने में सहयोग मिला । और आगे भी मीडिया से हमेशा की तरह सहयोग अपेक्षा बनी रहेगी । यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि “रंगोली आंदोलन एक रचनात्मक मुहिम” यह कोई NGO नहीं है यह व्यक्तिगत विचार था जिसने समाज में एक मुहिम का आकार ले लिया है।

– शशि भूषण मैठाणी पारस, विचारक रंगोली आंदोलन एक रचनात्मक मुहिम


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