वापस लौटने लगे निराश प्रवासी। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना कागजों में सिमटी
उत्तराखंड में प्रवासियों के लिए बड़े शोर-शराबे के साथ शुरू की गई मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना फ्लॉप शो साबित हो रही है। उत्तराखंड के प्रवासी युवक जो भी प्रोजेक्ट उद्योग विभाग से पास करा के भेज रहे हैं वह अधिकांश बैंकों में जाकर रद्द हो जा रही है।
यही कारण है कि दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर प्राइवेट जॉब करने वाले प्रवासी तीन चार महीने गांव में बिताने के बाद आप वापस जाने को मजबूर हैं।
गांव में जो थोड़ा बहुत रोजगार मिला है, वहां मनरेगा के माध्यम से मिल रहा है इसके अलावा प्रवासियों को अपने रोजगार का कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है।
टिहरी मे मात्र एक को लोन
टिहरी गढ़वाल का उदाहरण देखें तो 5 महीने में मात्र एक व्यक्ति को ही योजना का लाभ मिल पाया है, जबकि जिले में मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के 54 प्रस्ताव अभी तक बैंकों में ही लंबित पड़े हैं।
टिहरी जिले को 125 प्रवासियों को लाभान्वित करने का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन मात्र 1 प्रवासी को ही लोन मिल पाया है।
इस योजना से प्रवासियों को काफी उम्मीदें थी। 470 लोगों ने इस योजना के अंतर्गत लोन के लिए आवेदन किया था, इनमें से 54 प्रस्ताव को पारित करके बैंकों को भेजा गया था लेकिन अभी तक मात्र एक व्यक्ति को ही ऋण उपलब्ध हो पाया है।
जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक महेश प्रकाश भी मानते हैं कि बैंक ऋण उपलब्ध कराने में धीमी गति से काम कर रहे हैं। लॉकडाउन के बाद लगभग दो से ढाई लाख प्रवासी उत्तराखंड लौटे थे।
इन प्रवासियों के रोजगार को लेकर पलायन आयोग के सर्वे जैसी खबरें दो-चार दिन अखबारों में छपवाने और आत्मनिर्भर बनने की विज्ञापन कुछ दिन चलाने के बाद सरकारी जोश भी ठंडा पड़ गया।
पौड़ी के प्रवासियों की पीड़ा
नरेंद्र नेगी कहते हैं कि एकमात्र मनरेगा की ध्याड़ी आखिर कितने दिनों तक प्रवासी भाई बहिनों को रोक सकते हैं सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है रोजगार देने की।
वह एक जन सेवक हैं और उनकी ग्रामसभा थनूल के कम से कम पंद्रह प्रवासियों ने रोजगार हेतु पंजीकरण कराया था लेकिन तीन चार माह बीतने पर भी उन्हें सरकार की तरफ से स्थाई रोजगार हेतु कुछ भी नहीं मिला।
नेगी कहते हैं,-“कोई भी सरकार का प्रतिनिधि या सरकारी बड़ा अफसर ब्लॉक स्तर पर कुछ भी बताने नहीं आए तो अब सबने धीरे धीरे रोजगार हेतु वापस जाना ही है।”
ऐसे लौट रहे प्रवासी
ग्रामीण पत्रकारिता के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम जगमोहन डांगी उदाहरण देते हुए बताते हैं कि कल्जीखाल के बटौली गांव में नरेगा के अलावा जब कोई रोजगार नहीं मिला तो मजबूरी में लोग वापस लौट रहे हैं।
डांगी कहते हैं कि इस गांव में राज्य वित्त से ना तो पिछले पंचायत कार्यकाल में कोई काम हुआ और ना ही इस पंचायत काल में अब तक कुछ हुआ है बकौल डांगी लो तीन-चार महीने घर में रहने के बाद पहाड़ी खीरा ककड़ी के साथ अब वापस दूसरे राज्यों में विदाई ले रहे हैं
धरातल पर प्रवासियों के रोजगार या स्वरोजगार के लिए योजनाएं परवान नही चढ पा रही हैं। यदि इस दिशा में गंभीरता से कार्य नहीं किया गया तो अनलॉक डाउन 4 तो शुरू हो ही गया है और आवागमन भी खुल गया है।
ऐसे में प्रवासी न चाहते हुए भी वापस काम धंधे की तलाश में दूसरे राज्यों की तरफ लौट सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो यह सरकार की बड़ी असफलता मानी जाएगी।
अपडेट
(खबर प्रकाशित होने के बाद जिला सूचना अधिकारी कार्यालय से दी गयी जानकारी के अनुसार )
नई टिहरी के महाप्रबंधक उद्योग महेश प्रकाश ने बताया( पूर्व मे कम्युनिकेशंस गैप की वजह से एक लाभार्थी का लोन स्वीकृत होना प्रसारित हुआ था )जबकि बैंकों को प्रेषित किये गए आवेदनों में से 54 को बैंकों द्वारा स्वीकृत किया जा चुका है।