गजब: इधर अनिवार्य सेवानिवृत्ति का झुनझुना, उधर रिटायर भ्रष्ट अफसरों को पुनर्नियुक्ति

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इधर अनिवार्य सेवानिवृत्ति का झुनझुना, उधर रिटायर भ्रष्ट अफसरों को पुनर्नियुक्ति

100 दिन के अंदर लोकायुक्त बनाने का वादा करके प्रचंड बहुमत में आई सरकार ने 3 साल तक जीरो टोलरेंस का ढोल बजाया और अब जब यह ढोल फट चुका है तो अब अनिवार्य सेवानिवृत्ति का झुनझुना बजाकर जनता के साथ दिल्लगी की जा रही है। सरकार ने तीन दिन पहले 13 जुलाई को एक बार फिर से अनिवार्य सेवानिवृत्ति के संबंध में एक शासनादेश निकाला है। इस शासनादेश के अनुसार अक्षम अथवा भ्रष्ट 50 वर्ष से ऊपर के कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का प्रावधान है किंतु हास्यास्पद बात यह है कि जो अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते स्वैच्छिक रूप से सेवानिवृत्त हो चुके थे, अथवा सकुशल रिटायर हो चुके थे, उन अफसरों को यह सरकार अपना सलाहकार बनाकर दोबारा से सेवा मे ला चुकी है।

भ्रष्टाचार को लेकर चर्चित ऐसे एक नहीं लगभग आधे दर्जन अफसर हैं जो सेवानिवृत्त हो चुके थे और उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं लेकिन सरकार ने उन्हें फिर से पुनर्नियुक्ति देकर अपनी सेवा में रख लिया है। यदि यही करना है तो फिर अनिवार्य सेवानिवृत्ति का झुनझुना क्यों बजाया जा रहा है ! हाल ही में जारी सचिवालय के पत्र के अनुसार सभी अपर मुख्य सचिव प्रमुख सचिव सचिव और प्रभारी सचिव सहित सभी अपर सचिवों को अपने अधीनस्थ निजी संवर्ग के कर्मचारियों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के संबंध में गोपनीय आख्या उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है।
मुख्य सचिव द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि ऐसे कार्मिक जिनकी उम्र 50 वर्ष पूरी हो गई है और वह अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पात्र हैं, जैसे कि यदि वे शासकीय कार्य करने में असमर्थ हैं, बीमार हैं, कार्यालय में अधिकतर अनुपस्थित रहते हैं, अपने उच्चाधिकारियों की अवहेलना करते हैं, राजकीय कार्यों के संपादन में विघ्न डालते हैं, अथवा उनकी सत्य निष्ठा संदिग्ध है, या फिर भी किसी जांच में आरोपी पाए गए हैं तो उनका नाम, कार्य दक्षता और सत्य निष्ठा की गोपनीय आख्या सचिवालय प्रशासन को उपलब्ध कराई जाए।

लेखा विभाग को भी कहा गया है कि वे अपने कर्मचारियों की इस तरह की आख्या उपलब्ध कराएं। इसके अंतर्गत स्क्रीनिंग कमेटी गठित करके ऐसे कर्मचारियों को नियुक्ति प्राधिकारी बिना कोई कारण बताए 3 महीने की नोटिस अथवा 3 महीने का वेतन देकर जनहित में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर सकता है। अहम सवाल फिर से वही है कि जब सरकार स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुकी है अथवा रिटायर हो चुके भ्रष्ट और अक्षम अफसरों को दोबारा से पुनर नियुक्ति दे रही है तो फिर ऐसे आदेशों का क्या मतलब रह जाता है, एक और मजेदार बात यह है कि, इस तरह के पत्र विगत एक डेढ़ साल से लगातार कुछ कुछ अंतराल में जारी होते रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दी गई है तो फिर मनसा पर तो सवाल खड़े होने ही है।

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