जब देश और सारा विश्व कोरोना से जंग लड रहा है। मीडियाकर्मी अपनी जान को जोखिम में डाल कर खबरें एकत्रित कर रहे हैं। घर बैठे लोगों को जागरूक कर रहे हैं और सरकार की बात पहुंचा रहे हैं, सरकार उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर रही है। उत्तराखंड में अपने सीएम त्रिवेंद्र चचा और उनके मुंह लगे नौकरशाहों का हाल देखिए। नौकरशाहों ने बड़ी चालाकी दिखाते हुए मीडियाकर्मियों को अधिकृत और अनाधिकृत श्रेणी में बांट दिया।
सचिव अमित नेगी ने बताया कि मुख्यमंत्री की घोषणा के क्रम में कोरोना वारियर्स में अधिकृत मीडियाकर्मी भी सम्मिलित हैं।सीएम ने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे विभिन्न विभागों के लोगों को कोरोना वारियर घोषित करते हुए उनको मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष से सम्मान निधि के तौर पर दस लाख रुपये का कवर दिया। यानी कोई स्वास्थ्य, निगम, पुलिस या संबंधित विभाग का कर्मचारी कोरोना युद्ध में शहीद हो जाता है तो उसके परिजनों को दस लाख दिये जाएंगे। इसमें संविदा से लेकर आउटसोर्स कर्मी भी शामिल किये गये, लेकिन मीडिया कर्मियों को छोड़ दिया गया। मुख्यमंत्री की सचिव राधिका झा द्वारा आपदा प्रबंधन सचिव को जारी आदेश में मीडियाकर्मियों का उल्लेख नहीं था। इसके बाद सचिव अमित नेगी की ओर से प्रेस नोट में डेढ़ लाइन अलग से जोड़ी गयी कि अधिकृत मीडियाकर्मियों को भी दस लाख मिलेंगे।
गजब हाल हैं।
क्या मीडियाकर्मी पाकिस्तान के हैं? अधिकृत मीडियाकर्मियों से क्या आशय है? सरकार द्वारा अधिकृत या मीडिया हाउस द्वारा अधिकृत? या फिर जो आरएनआई या प्रसार भारती से संबंध हैं? या फिर जो सरकार की चाटुकारिता करते हैं? आखिर अधिकृत मीडियाकर्मियों का आशय क्या है? सरकार को स्पष्ट करना होगा।
हकीकत तो यह है कि सरकार ने जिनको अधिकृत किया है, उनमें से दस प्रतिशत मीडियाकर्मी फील्ड में नही जाते। वो अपने आप को सुपर जर्नलिस्ट समझते हैं और प्रेस नोट से काम चलाते हैं। दूसरे जिनको मीडिया हाउस ने पत्रकार बना कर फील्ड में उतारा है, उनमें से अधिकांश पे-रोल पर हैं ही नहीं। फोटोग्राफर, स्ट्रिंगर, कैमरामैन इस श्रेणी में आते हैं। यानी इनको अधिकृत माना ही न जाएं। अब जो सोशल मीडिया यानी पोर्टल वाले हैं, उनको किस श्रेणी में रखेंगे सरकार। और हां, जो प्राडक्शन टीम में हैं, जो सरकुलेशन में हैं और जो मार्केटिंग में हैं, उनका क्या?
साफ है कि त्रिवेंद्र चचा और उनकी सरकार के निकम्मे अधिकारियों को हम मीडियाकर्मियों की परवाह ही नहीं है। यानी हम मीडियाकर्मी आउटसोर्स और संविदा पर काम करने वाले लोगों से भी बदतर हैं। ऐसे में यदि पोर्टल का रिपोर्टर या फोटोग्राफर, या प्रिंट-इलेक्ट्रानिक का स्टिंगर यदि कोरोना का शिकार हो जाता है तो उसे और उसके परिवार को भगवान भरोसे रहना होगा। त्रिवेंद्र जी, मीडिया से इस तरह का सौतले व्यवहार क्यों? जवाब दो !