स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):- उत्तराखंड में भवाली की उजाला एकेडमी में मानव तस्करी और लिंग भेदभाव को लेकर हुए सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला न्यायालयों के जजों के साथ प्रदेशभर के संबंधित पुलिस उच्चाधिकारी भी मौजूद रहे। सेमिनार में मौजूद अच्छा काम कर रही कुछ एन.जी.ओ.ने मानव तस्करी से आजाद कराई महिला की लाइव ऑडियो आपबीती सुनवाई।
नैनीताल में भवाली के ज्यूडिशियल एवं लीगल एकेडमी ‘उजाला’ में सुप्रीम कोर्ट से न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट और न्यायाधीश सुधांशू धुलिया, मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी, वरिष्ठ न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी, न्यायमूर्ति आर.सी.खुल्बे और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा के साथ यू.पी.के पूर्व न्यायाधीश मेहबूब अली, पूर्व न्यायाधीश यू.सी.ध्यानी आदि मौजूद रहे।यहां प्रदेश के डी.जी.पी.अशोक कुमार भी अपने तीन से अधिक एस.एस.पी.के साथ सेमिनार में हिस्सा लेने आए थे।
वक्ताओं द्वारा मानव तस्करी और लिंगभेद न्याय पर अपने अपने विचार रखे गए। दो दिवसीय सेमिनार में समाज के कमजोर तबके के उत्थान के लिए पहले अतिथियों ने और फिर जिला एवं साथ न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपने विचार रखे। सेमिनार में वक्ताओं द्वारा कहा गया कि लड़कियों की तस्करी के लिए उत्तराखंड बहुत संवेदनशील है। देशभर में गलत कार्यों और अंग तस्करी के लिए लड़कियों को इच्छा के विरुद्ध शादियां कराई जाती हैं। सेमिनार में न्यायमूर्ति मनोज तिवारी, वरिष्ठ न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा, मुख्य न्यायाधीश विपिन संघी, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुधांशू धुलिया, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट ने अपने वक्तव्य में कहा कि मानव तस्करी इस समय की स्लेवरी है और इसे रोकने पर कार्यवाही की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सामान्य और शक्तिशाली लोग तो किसी न किसी तरीके से परेशानियों से बच जाते हैं, लेकिन उन्हें मिलकर कमजोर तबके के लोगों को अन्याय से बचाना है। न्यायाधीशों ने कविताओं के माध्यम से नन्हीं उम्र की बच्चियों की मानव तस्करी के बारे में सुनाकर मौजूद लोगों को झकझोर दिया। न्यायाधीशों ने कहा कि तस्करी के बाद पीड़ितों से सेक्स, मानव अंग तस्करी, चाइल्ड लेबर आदि कराए जाते हैं। गरीबी, शिक्षा की कमी, असुरक्षित माहौल, प्रलोभन आदि तस्करी के मुख्य कारण हैं, जिसमे से नौकरी और शादी का वादा करके फंसाया जाता है। न्यायाधीशों ने कहा कि उनका मकसद इन पीड़ितों को केवल बचाने का नहीं बल्कि उन्हें एक अच्छा माहौल देने का भी है। जेंडर क्राइम(लिंगभेद अपराध)पर भी न्यायाधीशों ने बात की। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट ने कहा कि
“लीगल ऐड टू दा पूअर शुड नॉट बी पूअर लीगल ऐड”(गरीबों को कानूनी मदद देनी न कि गरीब को कमजोर मदद देनी है)। सेमिनार कल रविवार को भी चलेगा।
इस मौके पर रजिस्ट्रार जर्नल विवेक भारती शर्मा, विभिन्न जिला जज, जिलाधिकारी नैनीताल, निदेशक वीमेन वेलफेयर आदि मौजूद थे।