पत्रकार अमित उप्रेती पर आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाई है। युवा अधिवक्ता स्निधा तिवारी की ओर से दायर याचिका में उन्होने अनेक ऐसे तर्क प्रस्तुत किए जिससे यह कार्यवाही द्वेषपूर्ण प्रतीत हो रही है। उन्होने न्यायालय में इसे एकतरफा कार्यवाही बताया।
ज्ञात हो कि इलैक्ट्राॅनिक मीडिया के पत्रकार अमित उप्रेती ने अपने एक समाचार चैनल में कोरोना काल में परेशान प्रवासी यात्रियों से जुड़ा समाचार प्रसारित किया था। जिसमें बाहर से आए प्रवासी यात्रियों की परेशानी और जिला प्रशासन की अनदेखी को उद्याटित किया था। फौजदारी कानून के तहत दर्ज इस मुकदमें में सात साल से कम सजा है। और जांच अधिकारी बिना तथ्यों की जांच कर आरोपित को हिरासत में नहीं ले सकता है।
अधिवक्ता कुमारी तिवारी ने इस मामले में बिहार राज्य बनाम अरनेश कुमार प्रकरण की नजीर प्रस्तुत की। और सिद्ध किया कि सीआरपीसी के सेक्शन 41 (ए) को नजर अंदाज किया जा रहा है। बिना ठोस तथ्यों और जांच के यह गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। इससे पूर्व याचिका कर्ता को आरोप पत्र/ एवं नोटिस देना अनिवार्य होता है। न्यायालय में जिला प्रशासन ने ठोस तथ्य और प्रमाणों के स्थान पर एक प्रकार से अपनी प्रशंसा रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसे न्यायालय ने नजर अंदाज किया। चलाए गए समाचार एवं उसकी सत्यता एवं तथ्यों को प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
नैनीताल हाई कोर्ट के माननीय न्यायाधीश लोकपाल सिंह द्वारा इस गिरफ्तारी को रोकते हुए जांच अधिकारी से ठोस जांच कर ठोस तथ्य प्रस्तुत करने को कहा है। यहां सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को प्राथमिकता दी गई है। जिसमें बिहार सरकार बनाम अरनेश मामले में वर्ष 2014 में निर्णय लिया गया था। ज्ञात हो कि भारतीय दंड संहिता सीआरपीसी की धारा 41 में स्पष्ट है कि पुलिस केवल संज्ञेय (गंभीर) अपराधों में ही आरोपी को सीधे गिरफ्तार कर सकती है।
वर्ष 2010 में सीआरपीसी संसोधन कर सीआरपीसी 41 (ए) में स्पष्ट कहा है कि सात साल से कम सजा वाले अपराध में आरोपी को गिरफ्तारी पूर्व नोटिस देना और उसका पक्ष सुनना और उसके खिलाफ तथ्य एकत्र करना अनिवार्य होता है। फर्जी एफआईआर पर लगाम लगाने के लिए यह संशोधन लाया गया है।